Sonaley Jain

Lights, camera, words! We take you on a journey through the golden age of cinema with insightful reviews and witty commentary.

1920 के दशक की एक सर्द शाम, मुंबई के चांदनी चौक में एक भीड़ जमा है। बीच सड़क पर एक विशाल सफेद कैनवास लटका हुआ है, और उस पर छाया-नट की तरह नाचते हुए काले-सफेद चित्र… यह दृश्य नहीं, ध्वनिहीन सिनेमा का जादू था। उस ज़माने में डायलॉग नहीं होतेContinue Reading

Movie Nurture: उड़िया सिनेमा का उदय: एक नई फिल्म क्रांति की शुरुआत

एक सुबह, भुवनेश्वर के एक सिनेमा हॉल के बाहर कतार लगी थी। टिकट खिड़की पर युवाओं का हुजूम “सिनेमा हॉल झुक जाएगा” के नारे लगा रहा था। यह कोई बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर नहीं था, बल्कि उड़िया फिल्म “कला शंखा” (2023) का प्रीमियर था, जिसने पहले ही हफ्ते में 5 करोड़ काContinue Reading

Movie Nurture: हिदेको ताकामाइन

गर्मी की एक सुबह, टोक्यो की सड़कों पर चलते हुए, एक युवती ने स्टूडियो के गेट पर खड़े होकर सपने देखे होंगे। उसकी आँखों में चमक थी, मगर चेहरे पर एक गहरी समझदारी—ऐसी समझदारी जो उम्र से बड़ी होती है। यह थी हिदेको ताकामाइन, जिसने सिर्फ पाँच साल की उम्रContinue Reading

Movie Nurture: मलयालमसिनेमा

1980 का दशक मलयालम सिनेमा के इतिहास में एक स्वर्णिम युग के रूप में याद किया जाता है। यह वह दौर था जब फिल्में सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं, बल्कि समाज का आईना बनकर उभरीं। राजनीतिक उठापटक, सामाजिक बदलाव, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की हलचलें—ये सभी तत्व पर्दे पर ऐसे उतरेContinue Reading

Movie Nurture: हॉलीवुड एक्ट्रेसेस

साल 1943, न्यूयॉर्क के एक थिएटर में कैसाब्लांका का प्रीमियर चल रहा है। स्क्रीन पर इंग्रिड बर्गमैन की आँखों में जो दर्द है, वह दर्शकों के दिल में उतर जाता है। फिल्म ख़त्म होते ही एक शख़्स खड़ा होकर चिल्लाता है, “मैंने आज तक इतना सच्चा प्यार नहीं देखा!” यहContinue Reading

Movie Nurture: 1930s में फिल्मों की शूटिंग कैसे होती थी?

सुबह के चार बजे। बंबई के दादर इलाके में एक मकान के बाहर बैलगाड़ी रुकी। ड्राइवर ने ढेर सारे लकड़ी के डिब्बे उतारे—कुछ में बल्ब थे, कुछ में कांच के प्लेट, और एक में तारों का गुब्बारा। अंदर, एक युवक ने हाथ से क्रैंक किए जाने वाले कैमरे को साफ़Continue Reading

Movie Nurture: 1940 का दशक: बॉलीवुड सिनेमा की वह उथल-पुथल जिसने रचा इतिहास

साल 1942 की एक गर्म रात, बम्बई के मोहन स्टूडियो के सेट पर बल्बों की रोशनी में एक कैमरामैन पसीना पोंछते हुए बुदबुदाया, “फिल्म स्टॉक ख़त्म हो रहा है, साहब। युद्ध के कारण इम्पोर्ट बंद है।” निर्देशक के. आसिफ़ ने चुपचाप अपनी पगड़ी सिर पर सही की और बोले, “तोContinue Reading

MOvie Nurture: मार्च ऑफ़ द फूल्स (1975)

साल 1975, दक्षिण कोरिया में सैन्य तानाशाही का दौर। युवाओं के सपनों पर लोहे के जूते चल रहे हैं, विरोध की आवाज़ें जेल की सलाखों में दबती जा रही हैं, और ऐसे में एक फिल्म आई — “मार्च ऑफ़ द फूल्स”। यह फिल्म सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि उस पीढ़ीContinue Reading

Movie Nurture:मिस्टर एंड मिसेज़ '55": 1950 के दशक की वह फिल्म जिसने प्यार और पर्दे के पीछे की राजनीति को एक साथ बुना

अगर आपसे कोई पूछे कि 1950 के दशक की वह बॉलीवुड फिल्म कौन सी है जिसमें मधुबाला की मासूमियत, गुरु दत्त का व्यंग्य, और समाज की दोहरी मानसिकता पर एक तीखा प्रहार हो… तो जवाब होगा — “मिस्टर एंड मिसेज़ ’55”। यह फिल्म सिर्फ़ एक रोमांटिक कॉमेडी नहीं, बल्कि उसContinue Reading

Movie Nurture: कलकत्ता 71 (1972): जब सिनेमा ने दिखाया समाज का आईना

1971 का साल, जब पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम की आग भड़क चुकी थी, और पश्चिम बंगाल की सड़कों पर नक्सलवादी आंदोलन का तूफान था। ऐसे उथल-पुथल भरे माहौल में मृणाल सेन ने “कलकत्ता 71” बनाई—एक फिल्म जो सिनेमाई कहानी नहीं, बल्कि समाज के घावों पर एक ऐसीContinue Reading