भाभी एक पारिवारिक हिंदी बॉलीवुड फिल्म है, जो 1957 में रिलीज़ हुयी। यह फिल्म उस साल की आठवीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी। यह फिल्म 1954 में आयी एक बंगाली फिल्म बंगा कोरा का रीमेक है और यह कहानी प्रभाती देवी सरस्वती के उपन्यास बीजिला पर आधारित है। यह फिल्म बंगाली से पहले तमिल में कुला धीवम के नाम से और कन्नड़ में जेनु गुडु के नाम से बनायीं गयी थी और पंडरी बाई ने बंगाली आलावा बाकी सभी फिल्मों में शांता का किरदार निभाया था।
फिल्म एक ऐसी पारिवारिक पृष्टभूमि पर आधारित है जहाँ पर बड़ों की जिम्मेदारियों और छोटों की नादानियों का समावेश है और जहाँ पर परिवार की महत्ता को बताया गया है।Story –
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक युवा रतन से जो अपने बीमार पिता की देखभाल करता है और पिता छोटे भाई, बहनों की जिम्मेदारी सौप कर इस दुनिया से चले जाते हैं। रतन बहुत मेहनत करके एक व्यापर खड़ा करता है और अपने भाई बहनो को अच्छी शिक्षा देता है। वक्त गुजरता जाता है और रतनलाल का व्यापर बहुत बढ़ जाता है, कुछ समय बाद उसका विवाह हो जाता है और पुत्र को जन्म देते ही उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाती है।
वहीँ दूसरे गांव की एक सुशील और शिक्षित शांता का विवाह रतनलाल से तय हो जाता है, कम पढ़ा लिखा होने के बावजूद भी रतनलाल का व्यव्हार और स्वभाव शांता को बहुत आकर्षित करता है। विवाह के कुछ समय बाद ही शांता अपनी सास, देवर रमेश , राजन और बलदेव , ननद और रतनलाल का बेटा मिट्ठू की प्रिय बन जाती है।भाइयों के बड़े होने पर रतन लाल रमेश का विवाह एडवोकेट मोतीलाल की बेटी तारा से और राजन का विवाह मुंशीराम की बेटी मंगला से कर देते हैं।
शादी के कुछ समय बाद ही मंगला सभी भाइयों को एक दूसरे से अलग करने के लिए में गलतफहमी पैदा करती है और उसका साथ देती है तारा। गलतफहमियाँ इतनी बढ़ जाती है कि बात बटवारे तक आ जाती है और घर और व्यापर का बटवारा हो जाता है। रमेश तारा और उसके भाई, जीवन और उसकी पत्नी के साथ रहने लगते हैं, वहीँ राजन ने मंगला को छोड़ दिया और अपनी मेडिकल की पढ़ाई बंद कर के दिन भर सिर्फ शराब में ही डूबा रहता है। और बलदेव सब कुछ छोड़कर वापस से बॉम्बे लौट आता है।
वक्त गुजरता जाता है और सभी को अपना जीवन व्यतीत करने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है और सभी को अपने बड़े भाई और भाभी की याद सताने लगती है क्योकि उन्हें वो प्रेम और सम्मान नहीं मिलता जो भाई और भाभी के साथ मिलता था। वहीँ दूसरी तरफ रतनलाल अपनों से बिछड़ने का गम बर्दाश्त नहीं कर पते और बीमार रहने लगते हैं।
जब सभी को अपने बड़े भाई की बीमारी का पता चलता है सभी रतनलाल से मिलने आते है अपनी गलतियों के पछतावे के साथ, अंत में रतनलाल सभी को माफ़ कर देता है और इस दुनिया से रुखसत ले लेता है।
Songs & Cast – इस फिल्म का संगीत चित्र गुप्ता ने दिया है और इन गानों को लिखा है राजेंद्र कृष्ण ने -“चल उड़ जा रे पंछी”, “जा रे जादूगर देखी तेरी जादूगरी “, “चली रे चली रे पतंग मेरी चली रे “, “छुपाकर मेरी आँखों को”, इनको गाया है लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने।
फिल्म में बलराज साहनी ने रतनलाल की भूमिका निभाई है और उनकी आज्ञाकारी पत्नी शांता का किरदार पंडरी बाई ने निभाया और अन्य कलाकारों में नंदा (लता ), डेज़ी ईरानी (मिट्ठू ), जवाहर कौल (एडवोकेट रमेश), श्यामा (तारा ), जगदीप ( बलदेव ), बिपिन गुप्ता (एडवोकेट मोतीलाल), राजा गोसावी ( राजन )
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