कभी सोचा है? आखिरी सीन खत्म होता है, थिएटर की लाइट्स जलती हैं, और आप उठकर चलने लगते हैं... पर...
Read moreसाल 1952 की बात है, सिनेमाघरों में पहली बार रंगीन रोशनी दिखी । दर्शकों ने देखा मीना कुमारी सफ़ेद घोड़े...
Read moreसिनेमा हॉल का अँधेरा, पर्दे पर चेहरा, वो आवाज़, वो अदाएँ, कुछ पल के लिए हम भूल जाते हैं कि...
Read moreआंखें मूंदो। कान खोलो। क्या सुनाई देता है? शायद दूर से आती कोई सीटी... या फिर रेडियो पर बजता कोई...
Read moreहम सबने देखा है वो पल। सिनेमा हॉल की अँधेरी कोख में, टीवी स्क्रीन की रोशनी में, या फिर मोबाइल...
Read moreकल्पना कीजिए, एक धुंधली सी स्क्रीन पर छाया-छवियाँ नाच रही हैं। कोई डायलॉग नहीं, सिर्फ़ एक पियानो या हारमोनियम की...
Read moreकिसी अभिनेता की महानता का पैमाना क्या है? क्या वो हिट फ़िल्में हैं, पुरस्कारों का ढेर, या फिर दर्शकों के...
Read moreकल्पना कीजिए एक घर जहाँ दीवारों पर पुराने चित्र लटके हैं, हवा में हल्की खुशबू है गुलाबजल की, और बैठक...
Read moreहँसी का जादू कुछ ऐसा है कि यह दिल के ताले को खोल देती है, और भारतीय सिनेमा व टेलीविज़न...
Read more1970 का दशक हो या आज का समय, राजेश खन्ना का नाम सुनते ही दिल में एक अजीब सी धड़कन...
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© 2020 Movie Nurture
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