कल्पना कीजिए उस ज़माने की, जब सिनेमा हॉल में घुसते ही आपको महसूस होता था कि आप सिर्फ एक फिल्म नहीं देखने जा रहे, बल्कि […]
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केवल प्रेम कहानी नहीं—‘अनमोल घड़ी’ में छुपा समाज और वर्ग का संदेश!
कल्पना कीजिए। साल 1946। देश आज़ादी की लड़ाई के आख़िरी दौर से गुज़र रहा है। हर तरफ उथल-पुथल, अनिश्चितता और बदलाव की हवा बह रही […]
हर फिल्म की एक अधूरी कहानी होती है
कभी सोचा है? आखिरी सीन खत्म होता है, थिएटर की लाइट्स जलती हैं, और आप उठकर चलने लगते हैं… पर मन में एक खलिश सी […]
1950 का दशक: वो समय जब बॉलीवुड की हर फ़्रेम ने रचा इतिहास!
साल 1952 की बात है, सिनेमाघरों में पहली बार रंगीन रोशनी दिखी । दर्शकों ने देखा मीना कुमारी सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर “आन” की […]
क्लासिक स्टार्स की आखिरी फिल्में: वो अंतिम चित्र जहाँ रुक गया समय
सिनेमा हॉल का अँधेरा, पर्दे पर चेहरा, वो आवाज़, वो अदाएँ, कुछ पल के लिए हम भूल जाते हैं कि ये हमारे और हमारे बीच […]
इन गानों को ना भूल पाये हम – ना भूल पायेगी Bollywood!
आंखें मूंदो। कान खोलो। क्या सुनाई देता है? शायद दूर से आती कोई सीटी… या फिर रेडियो पर बजता कोई पुराना सा सुर… और अचानक, […]
क्लासिक जोड़ी: ऑनस्क्रीन रोमांस और ऑफस्क्रीन हकीकत
हम सबने देखा है वो पल। सिनेमा हॉल की अँधेरी कोख में, टीवी स्क्रीन की रोशनी में, या फिर मोबाइल की छोटी सी दुनिया में। […]
भारत में साइलेंट फिल्मों को कैसे संरक्षित किया जा रहा है?
कल्पना कीजिए, एक धुंधली सी स्क्रीन पर छाया-छवियाँ नाच रही हैं। कोई डायलॉग नहीं, सिर्फ़ एक पियानो या हारमोनियम की धुन, और कभी-कभी दर्शकों की […]
दिलीप कुमार: वो पांच फ़िल्में जहाँ उनकी आँखों ने कहानियाँ लिखीं
किसी अभिनेता की महानता का पैमाना क्या है? क्या वो हिट फ़िल्में हैं, पुरस्कारों का ढेर, या फिर दर्शकों के दिलों पर छोड़ी गई वो […]
आशीर्वाद (1968): एक पिता के वज्र की कहानी
कल्पना कीजिए एक घर जहाँ दीवारों पर पुराने चित्र लटके हैं, हवा में हल्की खुशबू है गुलाबजल की, और बैठक में बूझे हुए सिगार की […]