इकीरू (1952): कागजों के पहाड़ में दफन एक आदमी, और जीने की वजह ढूंढने की कोशिश
सोचिए, एक दिन डॉक्टर आपको बता दे कि आपको गैस्ट्रिक कैंसर है, और बस कुछ ही महीने बाकी हैं। अब...
सोचिए, एक दिन डॉक्टर आपको बता दे कि आपको गैस्ट्रिक कैंसर है, और बस कुछ ही महीने बाकी हैं। अब...
साल 1952 की बात है, सिनेमाघरों में पहली बार रंगीन रोशनी दिखी । दर्शकों ने देखा मीना कुमारी सफ़ेद घोड़े...
1920 का दशक, लंदन के एक छोटे से थियेटर में अँधेरा छा गया। स्क्रीन पर सफेद-काले रंगों में एक नाव...
क्या आपको कभी लगता है कि आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कुछ खो सा गया है? वो सादगी, वो...
आज जब हम 'अवतार' में नीले नावी जाति को पंडोरा के जंगलों में उड़ते देखते हैं, या 'जंगल बुक' में...
उस चेहरे को देखो, गहरी नज़रें जिनमें एक अजीब सा दर्द समाया है, मगर उसके ऊपर सवार एक अटूट इंसाफ...
सिनेमा हॉल का अँधेरा, पर्दे पर चेहरा, वो आवाज़, वो अदाएँ, कुछ पल के लिए हम भूल जाते हैं कि...
सिनेमा हॉल का अँधेरा। चलचित्रों की रुपहली रोशनी। पर्दे पर चेहरे भाव बदल रहे हैं – हँस रहे हैं, रो...
कल्पना कीजिए एक ऐसी फिल्म जिसमें कोई भीषण एक्शन नहीं, कोई जोरदार ड्रामा नहीं, कोई भावुक भाषण नहीं। बस जीवन...
आंखें मूंदो। कान खोलो। क्या सुनाई देता है? शायद दूर से आती कोई सीटी... या फिर रेडियो पर बजता कोई...
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© 2020 Movie Nurture
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