सिनेमा हॉल का अँधेरा। चलचित्रों की रुपहली रोशनी। पर्दे पर चेहरे भाव बदल रहे हैं – हँस रहे हैं, रो...
Read moreकल्पना कीजिए। धुंध से ढकी सर्द शंघाई की सुबह। सड़क के किनारे, फुटपाथ की ठंडक पर, एक छोटा सा बच्चा।...
Read moreउस पुराने प्रोजेक्टर की खरखराहट याद है? वो ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में जहां चेहरे के हर भाव को कैमरा पकड़...
Read moreसोचिए, सिनेमा हॉल में अंधेरा होता है। सफेद पर्दे पर चलचित्र नाचने लगते हैं, लेकिन कोई आवाज़ नहीं होती। न...
Read moreकल्पना कीजिए: बिजली कड़कती है, एक पागल वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला में कुछ बना रहा है, और फिर... वो पल आता...
Read moreहो सकता है आपने चार्ली चैपलिन की मूक फिल्में देखी हों, लेकिन क्या आप जानते हैं भारत की पहली मूक...
Read moreकल्पना कीजिए, एक धुंधली सी स्क्रीन पर छाया-छवियाँ नाच रही हैं। कोई डायलॉग नहीं, सिर्फ़ एक पियानो या हारमोनियम की...
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© 2020 Movie Nurture
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