खामोशी क्लासिक बॉलीवुड ब्लैक एंड व्हाइट हिंदी ड्रामा फ़िल्म है,जिसका निर्देशन असित सेनने किया। ख़ामोशी शब्द का अंग्रज़ी में अनुवाद साइलेंस है। 2 घंटे 7 मिनट्स की यह फिल्म भारतीय सिनेमा में 25 अप्रैल 1969 को रिलीज़ हुयी थी। यह फिल्म प्रसिद्ध बंगाली लेखक, आशुतोष मुखर्जी द्वारा लिखित नर्स मित्र नामक बंगाली लघु कहानी पर आधारित थी।
और यह फिल्म निर्देशक असित सेन की अपनी बंगाली फिल्म, दीप ज्वेले जय (1959) का रीमेक है, जिसमें सुचित्रा सेन ने अभिनय किया था।
Story line –
कहानी शुरू होती है द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक अस्पताल से , जहाँ पर एक वृद्ध चिकित्सक कर्नल साहब मनोरोग वार्ड के प्रमुख के रूप में दिखते हैं। जो स्वाभाव से सरल होते हैं और अस्पताल में सभी मरीजों का इलाज करते हैं। उसी वार्ड में एक नर्स राधा भी होती है।
स्वाभाव से भावात्मक राधा का दिल उस समय टूट जाता है जब एक रोगी देव कुमार, जिसको राधा ने अपने प्रेम और स्नेह से ठीक किया और वह बिना बताये अस्पताल छोड़ कर चला जाता है। राधा एक नर्स होने के साथ साथ एक महिला का भी दिल रखती है और वह अपनी भावनाओं को अपने पेशे से दूर नहीं रख पाती।
देव के चले जाने के बाद राधा बहुत उदास रहने लगती है। क्योकि उसका पेशा उसको किसी भी मरीज़ से प्रेम करने की इज़ाज़त नहीं देता। मगर फिर भी उसको देव से प्रेम हो जाता है। कुछ समय बाद उस अस्पताल में एक अरुण चौधरी नाम का मरीज़ आता है और उसका इलाज करने के लिए राधा को दिया जाता है।
पहले तो राधा मना कर देती है मगर अपनी ज़िम्मेदारी के तहत वह अरुण का इलाज करने को राज़ी हो जाती है। अरुण पेशे से एक कवि होता है और अपनी प्रेमिका गायिका सुलेखा द्वारा ठुकराए जाने के दर्द सहन नहीं कर पाता और वह मनोरोगी बन जाता है।
राधा जब भी अरुण के पास आती है तो उसको अपना अतीत याद आ जाता है कि किस तरह वह और अरुण की किस्मत एक जैसी ही है। हमेशा अरुण उसको अपनी कवितायेँ सुनाता है और वह भी अरुण को 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लद्दाख में तैनात होने पर घायल बहादुर सेना के सैनिकों की देखभाल कैसे करने की कहानी सुनती रहती है।
धीरे – धीरे अरुण ठीक होने लगता है , लेकिन इस बार भी राधा उससे भावनात्मक रूप से बहुत ही जुड़ जाती है। मगर इस बार वह अरुण के जाने का दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाती और वह जटिल भावनाओं को सँभालने में असमर्थ हो जाती है और एक मनोरोगी बन जाती है।
विडंबना यह होती है कि राधा को उसी वार्ड के उसी कमरे में भर्ती कराया जाता है जहाँ पर वह देव और अरुण का इलाज करती है। कर्नल को राधा को देखकर बहुत दुःख होता है कि उन्होंने राधा के रूप में हमेशा एक समर्पित नर्स को देखा। मगर वह हमेशा राधा के अंदर की महिला को देखना भूल गए।
कुछ समय बाद अरुण राधा से मिलने आता है और राधा को इस अवस्था में देखकर दुखी होता है। उसे अस्पताल से जाने के बाद राधा के प्रेम का अहसास होता है और वह राधा के ठीक होने की प्रतीक्षा करने का वादा करता है।
Songs –
फिल्म का संगीत हेमंत कुमार ने दिया और इसके सुपरहिट गीत गुलजार ने लिखे थे। “तुम पुकार लो.. तुम्हारा इंतजार है”, “वो शाम कुछ अजीब थी.. ये शाम भी अजीब है”, “हमें देखी है उन आंखों की महकती खुशबू”, “आज की रात चिरागों”, दोस्त कहां कोई तुमसा” और इन गानों को गाया है हेमंत कुमार, आरती मुखर्जी, किशोर कुमार, मन्ना डे और लता मंगेशकर ने।
फिल्म में मुख्य भूमिका में राजेश खन्ना और वहीदा रहमान नज़र आये हैं उन्होंने अरुण और राधा का किरदार निभाया है। वहीदा रहमान ने इस फिल्म में एक ऐसी महिला का किरदार निभाया, जिसका पेशा मरीज़ों से स्नेह रखने की इज़ाज़त नहीं देता मगर महिला होने के नाते वह जुड़ ही जाती है। इसके अलावा फिल्म में धर्मेंद्र ने देव कुमार और नज़ीर हुसैन ने डॉ. कर्नल साबी का किरदार निभाया है।
Interesting facts –
कमल बोस की बी एंड डब्ल्यू सिनेमैटोग्राफी वास्तव में इस फिल्म को सबसे अलग बनाती है, जिन्होंने फिल्म में अपने काम के लिए 18 वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफर जीता।
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