जीवन में हमें हल पहलु देखने को मिलते हैं , इस माया संसार में जब आपके पास कुछ नहीं होता है तो हर कोई आपसे दूर भागता है यहाँ तक कि आपको अपने परिवार की जिल्लत भरी नज़रों का भी सामना करना पड़ता है, जब आप जीवन में एक विशेष स्थान पर होते हैं तो हर कोई आपका हाथ थामकर चलना चाहता है। हर इंसान इन पहलुओं से राबरू जरूर होता है मगर सच्चा साथी वो होता है जो आपका साथ आपकी हर मुश्किलों में देता है। यह परख होनी जरुरी है वरना इस माया में हर कोई खुद को भूलकर खो जाता है।
प्यासा सुपरहिट फिल्म 19 फरवरी 1957 में भारतीय सिनेमा में आयी, इसका निर्देशन गुरुदत्त साहब ने खुद किया था। इस फिल्म एक ऐसे व्यक्ति के जीवन का ताना बाना है जहाँ उसको दोनों पहलू देखने को मिलते हैं। एक तरफ जहाँ उसको नकारा जाता है तो वही दूसरी तरफ हर कोई उससे रिश्ता बनाने को तैयार रहता है। इस फिल्म में गुरुदत्त की अदाकारी नायाब है।
Story – फिल्म की कहानी शुरू होती है एक ऐसे असफल कवि विजय के साथ जिसकी कविताओं को प्रकाशकों के द्वारा हमेशा नकारा जाता है और जिसकी वजह से विजय को घर में अपने भाइयों से हमेशा बेज़्ज़ती ही मिलती है। अपने घरवालों के तानों से परेशां विजय अक्सर घर से दूर ही रहता है और जब भी फुर्सत मिलती वह किसी ना किसी सड़क पर घूमने निकल जाता है।
एक दिन उसकी मुलाकात एक तवायफ गुलाबो से होती है जो विजय की सभी कविताओं की तारीफें करती है। विजय को ऐसा पहला दर्शक मिला जो उसको समझता तो था ही मगर उसकी कविताओं में छिपे गहरी भावनाओं के भी करीब था। विजय अब रोज़ गुलाबो से मिलता था और धीरे धीरे दोनों में प्रेम हो गया।
कुछ समय बाद एक दिन विजय मीना को एक कार से उतरते हुए देखता है , जो विजय की कॉलेज के दिनों की पूर्व प्रेमिका थी और विजय उन दिनों की यादों में खो जाता है। इसके बाद उसको को पता चलता है कि मीना का विवाह एक बहुत अमीर और शहर के प्रसिद्ध प्रकाशक घोष बाबू से हुआ है।
एक दिन घोष बाबू विजय को अपने ऑफिस में बुलाते हैं विजय इस सोच के साथ मिलने जाता है कि शायद वह उसकी नज़्म छापने वाले हैं मगर ऐसा कुछ नहीं होता घोष बाबू उसको एक नौकरी देते हैं जिसके लिए वह हामी भर देता है और दूसरे दिन से काम पर लग जाता है। मगर घोष बाबू को पता होता है कि विजय की नज़्म बहुत बेहतरीन हैं मगर गुमनाम होने की वजह से वह छापना नहीं चाहता हैं।
घोष बाबू अपने घर की पार्टी में विजय को बुलाते हैं और मीना के सामने उसकी बेज़्ज़ती भी करते हैं, मीना आज भी विजय से प्रेम करती है मगर विजय उसको याद दिलाता है कि पैसों के लिए उसने ही विजय को छोड़ा था। दूसरी तरफ गुलाबो विजय का रात दिन इंतज़ार ही करती रहती है मगर वह नहीं आता।
दुखी विजय नदी के किनारे सो जाता है और जब उठता है तो देखता है कि उसके दोनों भाई नदी में क्रियाकरम की विधि कर रहे होते हैं , वह उनसे पूछता है तो बड़ा भाई बताता है कि उसे क्या पड़ी है माँ का देहांत हो गया है और अब उसकी आवारागर्दी की वजह से सारे नाते टूट चुके हैं, वह यह भी कहते हैं कि अब तू हमारा भाई नहीं। यह सुनकर विजय का दिल टूट जाता है और वह पूरा दिन इधर उधर घूमता रहता है।
रात के समय जब वह रेलवे स्टेशन जाता है तो वहां बैठे हुए एक भिखारी को वह अपना कोट दे देता है और भिखारी उसका पीछा करना शुरू कर देता है और जब विजय रेल की पटरियों से निकल रहा होता है तो पीछा करते हुए उस भिखारी का पैर पटरियों में फस जाता है। उसी समय ट्रेन भी आ रही होती है तो विजय भिखारी को बचने की बहुत कोशिश करता है मगर वह मर जाता है।
यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल जाती है मीना गुलाबो के घर आती है उसको यह बताने के लिए और दोनों उसकी कविताओं को छपवाने का निर्णय लेती हैं जिसके लिए मीना गुलाबो को घोष बाबू से मिलवाती है और यह कविताये छपवाने की बात करती है गुलाबो, घोष बाबू मान जाते हैं क्योकि एक तो ये सभी कविताये बेहद अच्छी थी और दूसरा विजय की मौत की खबर शहर में अभी ठंडी नहीं हुयी थी और यह उनके व्यापर के लिए फायदेमंद सौदा था।
कविताये छपती हैं, जिन्हे बहुत पसंद किया जाता है। गुलाबो कविताओं को हाथ में लेकर विजय को याद करती है और विजय अस्पताल में भर्ती होता है और अपनी नज़्मों को सुनकर देखता है कि वह छप चुकी हैं वह यह बात वहां के डॉक्टर को बताता है मगर डॉक्टर को लगता है कि वह पागल हो गया है क्योंकि यह किताब जिस विजय की है वह तो मर चुका है। विजय को मनोचिक्त्सालय में भर्ती करवा दिया जाता है , जहाँ उसको उसका बचपन का दोस्त और भाई नहीं पहचानते, क्योंकि उन सभी को घोष बाबू ने पैसों से खरीद लिया था ।
विजय गुलाबो के दोस्त अब्दुल की मदद से वहां से भागने में कामियाब हो जाता है। उसी दिन विजय के सम्मान में एक सभा का आयोजन होता है, विजय वहां पहुंचने के लिए जिस जिस रस्ते से जाता है पाता है कि उसे कोई नहीं जानता मगर शायर विजय को सभी लोग जानते हैं, किसी का वह बेहद करीबी मित्र था तो किसी ने शायर बनने में उसकी मदद की थी, यह जानकर उसको बेहद दुःख होता है।
विजय सभा में पहुंचता है तो वह अपनी पहचान बताता है सभी को मगर कोई उसका विश्वास नहीं करता फिर उसके भाई और मित्र जब कहते हैं कि यही विजय है तो, सब उसको सुनना चाहते हैं मगर अब विजय खुद को विजय नहीं मानता और वहां से चला जाता है। मीना उस पर नाराज़ होती है मगर वह कहता है कि अगर वह आज विजय बन जाता है तो वह कभी खुश नहीं रह पायेगा क्योकि सच्ची ख़ुशी इस माया में नहीं है वो तो सच्चे प्रेम में होती है।
विजय वापस लौटकर गुलाबो के पास आ जाता है उसको समझ में आ जाता है कि यह अपने पन का दिखावा नकली है और इसके सहारे वह अपना जीवन नहीं बिताना चाहता, सच्चे तो गुलाबों और उसके मित्र हैं जिन्होंने हर समय साथ दिया विजय का।
Songs & Cast – फिल्म में एस डी बर्मन ने संगीत दिया है समय इसके सभी गाने सुपरहिट साबित हुए और उनको लिखा था साहिल लुधियाविनी ने – “आज साजन मोहे अंग लगाओ “, “ये दुनिया अगर मिल भी जाये “, ” हम आपकी आँखों में”, “सर जो तेरा चकराये और दिल डूबा जाये “, “जान क्या तूने कही “, “जाने वो कैसे लोग “, “तंग आ चुके हैं ये कश्म में कश्म जिंदगी से “, और इन सुरीले गीतों में आवाज़ दी है गीता दत्त , मोहम्मद रफ़ी और हेमंत कुमार ने।
इस फिल्म में इंडिया के मेगा स्टार गुरुदत्त ने विजय का किरदार निभाया है और उनका साथ दिया है माला सिन्हा ने मीना के किरदार के साथ और वहीदा रहमान ने गुलाबो के किरदार में , बाकी अन्य कलाकार जैसे – रहमान (मिस्टर घोष ), जॉनी वॉकर (अब्दुल सत्तार), कुमकुम (जूही ), टुन टुन (पुष्पलता ) ने।
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 33 मिनट्स है और इसका निर्माण गुरुदत्त फिल्म्स के द्वारा गुरुदत्त साहेब ने किया था।
Location – इस फिल्म की शूटिंग कलकत्ता के बेहद खूबसूरत जगहों पर हुयी है।
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