1940 में रिलीज़ हुई बॉलीवुड फिल्म अछूत एक क्लासिक सामाजिक फिल्म है जो जातियों में हो रहे भेदभाव के चलते हो रहे अत्याचार की कहानी बताती है। फिल्म उस युग के दौरान प्रचलित जातिगत भेदभाव और सामाजिक मानदंडों के विषयों की और इंगित करती है।
यह फिल्म पहली बार गुजराती में 23 दिसंबर 1939 को रिलीज़ हुयी थी और इसको सरदार वल्लभभाई पटेल ने देखा और कहा कि “यदि फिल्म भारत को इस अभिशाप को दूर करने में मदद करती है, तो यह कहा जा सकता है कि इसने स्वराज को जीतने में मदद की है क्योंकि अस्पृश्यता आजादी की प्रमुख बाधाओं में से एक है ” यह फिल्म “अस्पृश्यता के खिलाफ गांधी के आंदोलन को बढ़ावा देने” के लिए बनाई गई थी।

Story Line
यह फिल्म एक ग्रामीण गांव में सेट की गई है जहां एक हरिजन की बेटी लक्ष्मी एक दिन मंदिर से पानी लेने जाती है तभी मंदिर का पुजारी यह देखकर सर पर रखी उसकी मटकी को फोड़ देता है। गांव में हर दिन ऐसा अत्याचार और अपमान देखने को मिलता था। कुछ लोग जबरदस्ती करके लक्ष्मी के पिता को ईसाई धर्म अपनाने पर मज़बूर कर देते हैं। मगर जब लक्ष्मी की माँ धर्म परिवर्तन के लिए मना कर देती है और अपने बेटे के साथ उन्हें छोड़कर चली जाती है, तो लक्ष्मी और उसके पिता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है।
अपनी बेटी को पालने में असमर्थ पिता पर दया उसके सेठ हरिदास को आ जाती है और वह लक्ष्मी को गोद ले लेता है। हरिदास लक्ष्मी का लालन – पालन अपनी बेटी सावित्री की तरह ही करता है। दोनों बेटियों की शिक्षा बहुत अच्छे से होती है और देखते ही देखते दोनों बड़ी हो जाती है।
लक्ष्मी और सावित्री दोनों को ही एक ऊंची जाति के खूबसूरत युवक मधुकर से प्रेम हो जाता है। जब यह बात हरिदास को पता चलती है तो अपनी बेटी का जीवन सँवारने और उसकी खुशियों के लिए वह मधुकर और उसके परिवार को लक्ष्मी की जाति के बारे में बताता है, जिसकी वजह से मधुकर सावित्री कर लेता है। लक्ष्मी वह घर छोड़कर अपनी माँ के पास आ जाती है।
जहाँ उसकी मुलाकात रामू नमक युवक से होती है और उसको पता चलता है कि बचपन में ही उसका विवाह रामू से हो गया था। अब दोनों मिलकर गांव में हो रहे जाति भेदभाव और अछूतों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ एक लड़ाई छेड़ते हैं। और फिल्म के अंत में मंदिर में जाने की अनुमति सभी को मिल जाती है।

Cast & Cinematography
मुख्य अभिनेताओं में, मोतीलाल और गौहर ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और अपने पात्रों में गहराई और भावना लाई। मोतीलाल ने सामाजिक मानदंडों के खिलाफ हुए विद्रोह में एक ऐसे आदमी के संघर्ष को संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया, जबकि गौहर ने भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाली एक निचली जाति की लड़की के रूप में अपनी भूमिका में उस अहसास को दिखाया , जो उस समय में लोगों द्वारा सहा जा रहा था। सितारा देवी, मजहर खान, नूर मोहम्मद चार्ली, वसंती और राजकुमारी सहित अन्य अभिनेताओं ने भी अपने हिस्से को अच्छी तरह से निभाया और फिल्म के समग्र प्रभाव को जोड़ा।
अछूत की सिनेमैटोग्राफी प्रभावशाली है, यह देखते हुए कि इसे 1940 में बनाया गया था जब तकनीक आज की तरह उन्नत नहीं थी। फिल्म ग्रामीण भारत की सुंदरता को प्रभावी ढंग से जोड़ती है, और खेतों और गांवों में फिल्माए गए दृश्य यथार्थवादी और प्रामाणिक अनुभव प्रदान करते हैं। प्राकृतिक प्रकाश और छाया का उपयोग भी फिल्म की समग्र सौंदर्य अपील में जोड़ता है।
अछूत भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण फिल्म है क्योंकि इसने जातिगत भेदभाव के मुद्दे को संबोधित किया था, जो उस समय समाज में प्रचलित था। फिल्म ने निचली जाति के लोगों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार पर ध्यान आकर्षित किया। फिल्म ने मुख्य अभिनेताओं की प्रतिभा को भी प्रदर्शित किया ।