अमरा सिल्पी जक्कन्ना एक तेलुगु फिल्म है जो दक्षिण भारतीय सिनेमा में 15 अप्रैल 1964 को रिलीज़ हुयी थी। इस फिल्म का निर्माण और निर्देशन विक्रम स्टूडियो के बैनर तले अनुभवी बी.एस.रंगा ने किया था। यह फिल्म कन्नड़ फिल्म अमरशिल्पी जक्कनचारी का रीमेक है।इसके “मल्लीगे होविंथा” गीत में, जयललिता जी ने नृत्य किया था और आज भी इस गीत को एक क्लासिक गीत के रूप में देखा और पसंद किया जाता है।
Story Line –
फिल्म शुरू होती है कर्नाटक राज्य के एक छोटे से गांव में एक बहुत प्रसिद्ध और महान मूर्तिकार मल्लन्ना रहता था। कुछ समय बाद मल्लन्ना के घर पर एक मालक का जन्म होता है , जिसका नाम सभी मिलकर जक्कन्ना रखते हैं। जक्कन्ना को बचपन से ही मूर्ति कलाकारी में दिलचस्पी थी और जब भी उसके पिता काम करते वह उनके साथ ही रहकर सब कुछ सीखता रहता।
धीरे – धीरे समय बीतता रहा और जक्कन्ना बड़ा हो गया और वह भी अपने पिता की तरह एक बहुत ही प्रसिद्ध मूर्तिकार बन गया। वह अपना ज्यादातर समय पत्थरों के साथ बिताता और एक महान मूर्ति बनाने के सपने के साथ भी। एक दिन जक्कन्ना की मुलाकात एक महान नर्तकी मंजरी से होती है। कुछ समय बीतने के साथ -साथ दोनों की पहचान प्यार में बदल जाती है। दोनों ही एक दूसरे की कलाओं से बेहद प्रेम करते थे और जल्द ही दोनों विवाह कर लेते हैं।
विवाह के बाद दोनों ने अपने सुखी जीवन की शुरुवाती की और कुछ समय तक सब कुछ सही चल रहा था। मगर तब से जब कुछ बदलने लगा जब से नगर के राजा गोपदेव ने नर्तकी मंजरी को देखा। उसकी खूबसूरती को देखकर राजा इतना मोहित हो जाता है कि वह मंजरी को पाने की कोशिश में लग जाता है।
मंजरी गोपदेव के महल में नृत्य करती थी और राजा किसी ना किसी बहाने से उसके करीब आने का प्रयास करता रहता था। यह बात जब जक्कन्ना को पता चली तो उसने मंजरी से यह काम छोड़ने की बात की मगर उसने मना कर दिया। और वह राजा के महल में रोज़ नृत्य करने जाने लगी। धीरे – धीरे जक्कन्ना अपनी पत्नी पर संदेह करना शुरू कर देता है और यह शक -संदेह उन दोनों के रिश्ते को ख़तम कर देता है। एक दिन जक्कन्ना मंजरी को छोड़कर चला जाता है और एक विशाल मंदिर के निर्माण में जुट जाता है।
मगर दुखी मन और घृणा से वह यह काम पूरा नहीं कर पात। जक्कन्ना अब सभी से महिलाओं की बुराइयां करता है और कहता है कि वह कभी सच्ची नहीं होती है, धोकेबाज़ होती है और उन्हें गलियां भी देता है। एक दिन वह भगवन रामानुजाचार्य द्वारा जक्कन्ना की जान बचायी जाती है और वह जक्कन्ना को सही दिशा दिखते हैं। और उन सही मार्गों पर चलकर जक्कन्ना फिर से मंदिर के निर्माण का काम शुरू करता है। वहीँ दूसरी तरफ गर्भवती मंजरी पति द्वारा चोदे जाने का दुःख बर्दाश्त नहीं कर पति और वह आत्महत्या करने की कोशिश करती है और, कुछ मछुआरों के द्वारा वह बचायी जाती है।
मंजरी एक बच्चे को जन्म देती है और उसका नाम डंकना रखा जाता है। डंकना की शिक्षा उसके दादा मल्लन्ना द्वारा दी जाती है और बहुत जल्दी वो भी अपने दादा और पिता की तरह एक बहुत बड़ा मूर्तिकार बन जाता है। होयसला के सम्राट विष्णुवर्धन रामानुजाचार्य की सलाह पर बेलूर में एक विशाल मंदिर बनाते हैं। वहां पर जक्कन्ना और डंकना की मुलाकात होती है।
डंकना सभी के सामने जक्कन्ना द्वारा बनायीं गयी मूर्ति कला में दोष बताता है। तभी जक्कन्ना यह सुनता है और चुनौती लेता है। इसके बाद जब डंकाना मूर्तिकला को हथौड़ा मारता है, तो उसमें से एक मेंढक निकलता है। उसी समय जक्कन्ना अपना हाथ काट लेता है। तभी मंजरी भी वहां आती है और यह सब देखकर दुखी होती है। मंदिर पूरा बन जाता है और पहली आरती के बाद रामानुजाचार्य के आशीर्वाद से जक्कन्ना के हाथ वापस आ जाते हैं और पूरा परिवार एक हो जाता है।
Songs & Cast –
इस फिल्म में संगीत दिया है एस राजेश्वर राव ने और इन सुरीले गीतों को लिखा है सी नारायणा रेड्डी, समुंद्राल और दशरधि ने – “थरमा वरदा తారామ వరధా”, “येचटिकोई नी पयनाम యెచటికోయి నీ పాణం”, “ई नालनी रैललो ఈ నల్లాణి రల్లాలో”, “मनसे विकाससिंचेरा మనసే వికాసిన్చెరా”, “निलुवुमा निलुवुमा నిలువుమా నీలుమా”, “येदो येदो యెడో యెడో”
फिल्म में अक्किनेनी नागेश्वर राव ने जक्कन्नाचार्य की भूमिका निभाई है और उनका साथ दिया है बी सरोजा देवी (मंजरी ), चित्तौड़ के वी नगैया (मल्लन्ना), हरनाथ (दनकन्ना), धुलिपला रामानुज (चारण), रिलंगी (सुंदरम), सूर्यकांथम (राजकम्मा), गिरिजा (गिरिजा) ने।
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 45 मिनट्स है।
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