फिल्मे जो हमें हमेशा आनंद देती हैं पर कभी – कभी यह हमें एक ऐसी सीख और सन्देश भी दे जाती है जो हमारी सोच में बदलाव लाती है। आनंद एक ऐसी ही फिल्म है, जिसने हमें जिंदगी का मूल्य समझाया।
आनंद – 1971 में रिलीज़ हुयी, कई अवॉर्ड विनिंग फिल्म है। इस फिल्म को ऋषिकेश मुखर्जी ने निर्देशित किया और साथ ही साथ सन्देश भी दिया, जो वो हमेशा अपनी फिल्मों में देते हैं।
Story –
फिल्म की कहानी शुरू होती है कैंसर विशेषज्ञ डॉ भास्कर बेनर्जी, जिनको साहित्य पुरुस्कार से नवाज़ा जाता है, उनकी लिखित किताब आनंद के लिए। डॉ भास्कर मानते हैं कि यह कोई किताब या उपन्यास नहीं है ये तो डायरी के वो जीवित पन्ने हैं, जो उनके जीवन में हमेशा रहेंगें। और इसी के साथ वो फ्लैशबैक में चले जाते है,जब वो मुंबई की झोपड- पट्टी में रहने वालों का इलाज करते थे, भुखमरी और बेरोज़गारी इस कदर फैली हुयी है वहां पर कि वो कोई भी मदद करने में असमर्थ है।
वहीँ दूसरी तरफ भास्कर का दोस्त डॉ प्रकाश कुलकर्णी, जिसका एक हॉस्पिटल है और वहां पर आने वाले हर मरीज़ से वो अच्छी खासी रकम लेता है। कुछ दिनों बाद, भास्कर के पास उसके एक दोस्त डॉ त्रिवेदी का खत आता है,वो अपने एक दोस्त (आनंद ) को भेज रहे हैं इलाज के लिए,क्योकि आनंद को इंटेस्टाइन कैंसर हैऔर वह सिर्फ ज्यादा से ज्यादा 6 महीने ही जी सकता है।
आनंद भास्कर से मिलने उस समय आता है जब भास्कर डॉ प्रकाश के साथ उसके हॉस्पिटल में होते हैंऔर आते ही आनंद हसी मज़ाक करने लगता है, जिससे भास्कर बहुत नाराज़ हो जाते हैं और आनंद से कहते हैं कि तुम्हे पता है कि तुम्हे क्या बीमारी है ?
उस पर आनंद कहता है, मुझे पता है कि कैंसर है और में 6 महीनो में मरने वाला हूँ। यह सुनकर भास्कर चकित रह जाता है कि मौत सामने होने के बाद भी आनंद कितना जिंदादिल है। आनंद का मानना होता है कि जिंदगी ख़ुशी से और हस्ते हुए जीनी चाहिए, चाहे वक्त कुछ कम ही क्यों न हो।
आनंद भास्कर के साथ उसके घर पर रहने लगता है। धीरे – धीरे आनंद को पता चलता है कि भास्कर एक लड़की रेनू से प्यार करता है मगर इज़हार करने से भी डरता है। इसके बाद आनंद एक पहलवान की मदद से रेनू की माँ से मिलता है और दोनों की शादी पक्की भी करवा देता है।
जैसे – जैसे दिन बीतते जाते हैं , आनंद की तबियत और बिगड़ती जाती है,भास्कर एक करिश्मे की ख्वाइश में होम्योपैथी में भी इसके इलाज की कोशिश में डॉक्टर से मिलने जाता है,मगर उसके लौटने तक आनंद इस दुनिया से रुक्सत हो जाता है और छोड़ जाता है भास्कर के लिए एक रिकॉर्डेड टेप और बहुत सारी यादें ……..
यहीं पर फिल्म का अंत हो जाता है। इस फिल्म ने हमें ये समझाया कि जीवन में हमेशा खुश रहना चाहिए , कभी डरना नहीं चाहिए। मौत सत्य है और इसके साथ जीवन की समाप्ति भी हो जाती है। …..मगर जीवन भी सच है और जब तक ये ख़तम नहीं होता तब तक हम इसके हर पल को खुशियों से भर सकते हैं, आने वाली हर चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
Songs & Cast – कहीं दूर जब दिन ढल जाये ……… ज़िन्दगी कैसी हैपहेली………..मैंने तेरे लिए ही। ऐसे ही कुछ बहुत खूबसूरत गीत है इस फिल्म में, जिसे मुकेश और मन्ना डे ने बड़ी हो खूबसूरती के साथ गाया है।
राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की हिट फिल्मों में से एक है आनंद।
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