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1920 के दशक की एक सर्द शाम, मुंबई के चांदनी चौक में एक भीड़ जमा है। बीच सड़क पर एक विशाल सफेद कैनवास लटका हुआ है, और उस पर छाया-नट की तरह नाचते हुए काले-सफेद चित्र… यह दृश्य नहीं, ध्वनिहीन सिनेमा का जादू था। उस ज़माने में डायलॉग नहीं होतेContinue Reading

Movie Nurture: उड़िया सिनेमा का उदय: एक नई फिल्म क्रांति की शुरुआत

एक सुबह, भुवनेश्वर के एक सिनेमा हॉल के बाहर कतार लगी थी। टिकट खिड़की पर युवाओं का हुजूम “सिनेमा हॉल झुक जाएगा” के नारे लगा रहा था। यह कोई बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर नहीं था, बल्कि उड़िया फिल्म “कला शंखा” (2023) का प्रीमियर था, जिसने पहले ही हफ्ते में 5 करोड़ काContinue Reading

Movie Nurture: 1940 का दशक: बॉलीवुड सिनेमा की वह उथल-पुथल जिसने रचा इतिहास

साल 1942 की एक गर्म रात, बम्बई के मोहन स्टूडियो के सेट पर बल्बों की रोशनी में एक कैमरामैन पसीना पोंछते हुए बुदबुदाया, “फिल्म स्टॉक ख़त्म हो रहा है, साहब। युद्ध के कारण इम्पोर्ट बंद है।” निर्देशक के. आसिफ़ ने चुपचाप अपनी पगड़ी सिर पर सही की और बोले, “तोContinue Reading

MOvie Nurture: मार्च ऑफ़ द फूल्स (1975)

साल 1975, दक्षिण कोरिया में सैन्य तानाशाही का दौर। युवाओं के सपनों पर लोहे के जूते चल रहे हैं, विरोध की आवाज़ें जेल की सलाखों में दबती जा रही हैं, और ऐसे में एक फिल्म आई — “मार्च ऑफ़ द फूल्स”। यह फिल्म सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि उस पीढ़ीContinue Reading

Movie Nurture: कलकत्ता 71 (1972): जब सिनेमा ने दिखाया समाज का आईना

1971 का साल, जब पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम की आग भड़क चुकी थी, और पश्चिम बंगाल की सड़कों पर नक्सलवादी आंदोलन का तूफान था। ऐसे उथल-पुथल भरे माहौल में मृणाल सेन ने “कलकत्ता 71” बनाई—एक फिल्म जो सिनेमाई कहानी नहीं, बल्कि समाज के घावों पर एक ऐसीContinue Reading

Movie Nnurture: मयूरा (1975): कन्नड़ सिनेमा का वो ऐतिहासिक रत्न जिसने गढ़ी नई परंपरा

साल 1975 भारतीय सिनेमा में ऐतिहासिक फिल्मों का दौर चल रहा था। हिंदी में “शोले” का जलवा था, तो दक्षिण में कन्नड़ सिनेमा ने भी एक ऐसी फिल्म बनाई जिसने न सिर्फ़ इतिहास को ज़िंदा किया, बल्कि दर्शकों के दिल में “मयूरा” के नाम से अमर हो गई। यह फिल्मContinue Reading

Movie Nurture: 1980s की बॉलीवुड फिल्में: जब सिनेमा था जादू जैसा

1980 का दशक। वह दौर जब टेलीविज़न धीरे-धीरे घरों में घुस रहा था, लेकिन सिनेमा हॉल्स अब भी भरे रहते थे। हर शुक्रवार को नई फिल्म रिलीज़ होती, और लोग टिकट के लिए लाइन में लगे नज़र आते। यह वह ज़माना था जब फिल्में “सिर्फ़ मनोरंजन” नहीं, बल्कि जीने काContinue Reading

Movie Nurture: हाउसबोट 1958: बच्चों की नज़र से एक प्यारा सफर

क्या आपने कभी सोचा है कि 1950 के दशक की एक फिल्म, जिसमें सोफिया लॉरन और कैरी ग्रांट जैसे सितारे हों, वह बच्चों के लिए क्यों दिलचस्प हो सकती है? “हाउसबोट” (1958) शायद उन फिल्मों में से एक है जो रोमांस और कॉमेडी के बीच एक पुल बनाती है… औरContinue Reading

Movie Nurture: बैंड वैगन (1940): वो ब्रिटिश कॉमेडी जिसने युद्ध के बीच में बिखेरी थी हँसी की चिंगारी

1940 का साल। यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध की आग धधक रही थी, और ब्रिटेन के आसमान पर जर्मन बमवर्षकों के छाये होने के बावजूद, सिनेमाघरों में लोग थोड़ी राहत की तलाश में जुटते थे। ऐसे ही माहौल में आई “बैंड वैगन”—एक ऐसी फिल्म जिसने न सिर्फ़ दर्शकों को हँसाया, बल्किContinue Reading

Movie Nurture: Five Golden Flowers (1959): चीन की वो फिल्म जिसमें खिले थे प्यार और समाजवाद के रंग

साल 1959 की बात है। चीन में ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ का दौर चल रहा था—जहाँ एक तरफ़ लोहे के कारख़ाने धुआँ उगल रहे थे, वहीं सिनेमा के परदे पर एक फिल्म ने प्रेम, संगीत और रंगों की बरसात कर दी। “Five Golden Flowers” (वू जिन हुआ) नाम की यह फिल्मContinue Reading