साइलेंट सिनेमा और लोकेशन का अनोखा रिश्ता: पर्दे के पीछे की कहानी
1920 के दशक की एक सर्द शाम, मुंबई के चांदनी चौक में एक भीड़ जमा है। बीच सड़क पर एक ...
1920 के दशक की एक सर्द शाम, मुंबई के चांदनी चौक में एक भीड़ जमा है। बीच सड़क पर एक ...
एक सुबह, भुवनेश्वर के एक सिनेमा हॉल के बाहर कतार लगी थी। टिकट खिड़की पर युवाओं का हुजूम "सिनेमा हॉल ...
गर्मी की एक सुबह, टोक्यो की सड़कों पर चलते हुए, एक युवती ने स्टूडियो के गेट पर खड़े होकर सपने ...
1980 का दशक मलयालम सिनेमा के इतिहास में एक स्वर्णिम युग के रूप में याद किया जाता है। यह वह ...
साल 1943, न्यूयॉर्क के एक थिएटर में कैसाब्लांका का प्रीमियर चल रहा है। स्क्रीन पर इंग्रिड बर्गमैन की आँखों में ...
सुबह के चार बजे। बंबई के दादर इलाके में एक मकान के बाहर बैलगाड़ी रुकी। ड्राइवर ने ढेर सारे लकड़ी ...
साल 1942 की एक गर्म रात, बम्बई के मोहन स्टूडियो के सेट पर बल्बों की रोशनी में एक कैमरामैन पसीना ...
साल 1975, दक्षिण कोरिया में सैन्य तानाशाही का दौर। युवाओं के सपनों पर लोहे के जूते चल रहे हैं, विरोध ...
अगर आपसे कोई पूछे कि 1950 के दशक की वह बॉलीवुड फिल्म कौन सी है जिसमें मधुबाला की मासूमियत, गुरु ...
1971 का साल, जब पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम की आग भड़क चुकी थी, और पश्चिम बंगाल की ...
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