Kanoon – एक बेगुनाह को बचाने की कोशिश

Bollywood Hindi Movie Review old Films

कानून हिंदी सुपरहिट फिल्म  मृत्युदण्ड जैसे कानून की और हमें यह सोचने ने लिए मज़बूर करती है कि अगर गवाह झूठे हो तो किसी भी बेगुनाह को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ जाता है मृत्युदण्ड पाकर। यह फिल्म 1 जनवरी 1960 में रिलीज़ हुयी थी और इसका निर्देशन बी आर चोपड़ा ने किया था। यह भारत की ऐसी दूसरी फिल्म बनी जिसमे ना तो कोई एक गाना है ना ही किसी प्रकार का संगीत दिया गया है, पहली ऐसी फिल्म अँधा नाल थी जिसमे एक भी गाना नहीं था।  

फिल्म में  दिखाया गया है कि एक हत्या के मामले की जाँच होती है,जहां जज के भावी दामाद हत्या के मामले में बचाव पक्ष का वकील होता हैं, जिसके लिए उसे अपने ही ससुर पर शक होता है।

Story –  फिल्म की कहानी शुरू होती है अदालत में हो रही एक कार्यवाही से जहाँ कालिदास नामक एक अपराधी को एक इंसान (गनपत ) के खून के लिए दोषी ठहराया जाता है लेकिन वह दावा करता है कि वह बेगुनाह है और अदालत उसको कोई और सजा नहीं सुना सकती क्योकि वह पहले से ही एक खून के इलज़ाम में सजा काट रहा है। वह न्यायधीश बद्री प्रसाद से पूछता है कि क्या कानून किसी बेगुनाह को यह हक़ देता है कि वह अपनी बेगुनाही साबित करके सुकून से जी सके।

 न्यायधीश बद्री प्रसाद के पास इन सवालों की कोई जवाब नहीं होते हैं मगर प्रेस ने इस मामले को इतना गरम कर दिया कि शहर में बस हर जगह इसी की चर्चा  हो रही है। इतना ही नहीं बद्री प्रसाद भी अपने दोनों न्यायाधीश मित्रों  श्री झा और श्री सावलकर के साथ इसी विषय में वार्तालाप कर रहे होते हैं अपने चेम्बर में

वहीँ दूसरी तरफ बद्री प्रसाद की बेटी मीना अपने प्रेमी बेरिस्टर कैलाश खन्ना के घर जाती है और फिर वह दोनों वहां से एक शो देखने जाते हैं जहाँ उन्हें मीना का भाई विजय प्रसाद मिलता है जो भी यह शो देखने आया है अपने मित्रों के साथ। जब दोनों शो देख रहे होते हैं तो कैलाश को ऊपर वाले केबिन में बद्री प्रसाद का किसी दूसरी महिल के साथ होने का भ्रम होता है, वह यह बात मीना को बताता है मगर वह अपने पिता के घर में होने की बात करती है।

वहीँ दूसरी तरफ मीना के भाई विजय ने एक साहूकार धनीराम से कुछ रकम उधार ली थी और वह अब विजय को धमकी दे रहा है कि वह यह सब कुछ विजय के पिता बद्री प्रसाद को बता देगा। इस डर से विजय कैलाश की मदद लेता है। कैलाश धनीराम को समझाने उसके घर पर जाता है और उसको बोलता है कि वह यह सब कुछ किसी से ना कहे, उतने में ही धनीराम के घर पर किसी के आने की आहट होती है और कैलाश परदे के पीछे छुप जाता है और वह देखता है कि एक आदमी कमरे के अंदर आता है, वह बद्री प्रसाद हैं और वह धनीराम की हत्या कर देते हैं। 

यह सब देखकर कैलाश हैरान हो जाता है, उसको विश्वास ही नहीं होता है कि उसके होने वाले ससुर किसी की हत्या भी कर सकते हैं। कैलाश वहां से चला जाता है। कुछ समय बाद वहां पर एक चोर कालिया चोरी करने की मंशा से आता है और धनीराम की हत्या के अपराध में पकड़ा जाता है, जो उसने किया ही नहीं था। 

जब कैलाश को यह सब पता चलता है तो वह उसके बचाव में केस लड़ने को तैयार हो जाता है और वह उस बेक़सूर को बचाने के लिए अपने गुरु और ससुर के विपरीत खड़ा हो जाता है। जहाँ कैलाश कालिया का केस लगता है वही बद्री प्रसाद का केस उनके परम मित्र लड़ते हैं।  इस केस से परेशां मीना एक दिन कालिया से मिलने जेल जाती है जहाँ उसको पता चलता है कि कैलाश सही है और कालिया ने धनीराम की हत्या नहीं की।

अदालत में सुनवाई होती है दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं, कैलाश यह मानने को तैयार ही नहीं होता है कि धनीराम की हत्या बद्री प्रसाद ने नहीं की। कुछ समय के तर्क वितर्क के बाद बद्री प्रसाद के वकील दोस्त एक महिला और एक मृत शरीर को लेकर आते हैं, यह महिला वही है जिसे कैलाश ने शो के बीच बद्री प्रसाद के साथ देखा था फिर वकील मृत शरीर को दिखता है तो वह देखकर सब हैरान हो जाते हैं। वह मृत व्यक्ति हूबहू बद्री प्रसाद की तरह दिखता है। 

फिर वकील साहब बताते हैं की यह महिला गणपत की पत्नी है और गणपत के जीवित रहते हुए ही इसने एक अमीर व्यक्ति से विवाह कर लिया था जो कि अवैध था और यह बात धनीराम को पता थी और वह इन दोनों को ब्लैकमेल कर रहा था, जिसकी वजह से ही धनीराम की हत्या हुयी। यह बात जानकर अदालत कालिया और बद्री प्रसाद को छोड़ देती है और कैलाश बद्री प्रसाद से माफ़ी मांगता है और बद्री प्रसाद बहुत खुश होते हैं ऐसा आदर्श दामाद पाकर और वह दोनों की शादी जल्दी करने का फैसला लेते हैं।  

Songs & Cast – इस फिल्म में एक भी गाना नहीं है और यह भारत की दूसरी ऐसी फिल्म है जो बिना गानों के सुपरहिट फिल्म साबित हुयी थी। 

फिल्म में अशोक कुमार ने एक जज बद्री प्रसाद का किरदार निभाया है, कैलाश का किरदार राजेंद्र कुमार ने निभाया और उनकी समझदार महबूबा मीना का किरदार नंदा ने निभाया और इन सब का साथ दिया है महमूद (विजय प्रसाद ), कालिदास (जीवन), नाना पलसीकर (कालिया), शशिकला ,रवि कांत , कैलाश शर्मा, ओम प्रकाश, मूलचंद आदि ने।  
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 30 मिनट्स है और इस फिल्म का निर्माण बी आर चोपड़ा ने किया था।  

1 thought on “Kanoon – एक बेगुनाह को बचाने की कोशिश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *