सुजाता एक क्लासिक बॉलीवुड फिल्म, जो 20 मार्च 1959 को भारतीय सिनेमा में रिलीज़ हुयी थी। इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक बिमल रॉय की एक सुपरहिट फिल्म थी। यह फिल्म बंगाली की एक लघु कहानी सुजाता पर आधारित है। इस फिल्म की सफलता को देखते हुए इसको 1960 के कान फिल्म महोत्सव में शामिल किया गया था।
सुजाता फिल्म समाज की एक बहुत ही बड़ी कुरीति को दर्शाती है कि पैदाइशी ही सब कुछ नहीं होती इंसान का अच्छा होना उसकी परवरिश पर निर्भर करता है।
Story Line
फिल्म की कहानी शुरू होती है उच्च समाज में रहने वाले एक ब्राह्मण युगल उपेन और चारु से,दोनों अपने जीवन में बहुत सुखी है मगर काफी समय से संतान ना होने का दर्द दोनों को है। एक दिन यात्रा के दौरान उन्हें एक अनाथ बच्ची मिलती है, जिसको वह गोद लेते हैं। उसका नाम सुजाता रखा जाता है। अछूत होने की वजह से सुजाता को बचपन से ही माँ का प्यार नहीं मिला। चारु हमेशा उसको उसकी छोटी जाति का याद कराती रहती थी।
मगर पिता की लाडली सुजाता, सिर्फ पिता की छांव में ही बड़ी होने लगी। माँ के होते हुए भी माँ के प्यार से वंचित सुजाता हमेशा दुखी रहने लगी। बचपन के इस एक दर्द के साथ सुजाता बड़ी हो गयी। ब्राह्मण घर में पालन पोषण होते हुए भी सरल स्वभाव की सुजाता को हमेशा बेज्जती का ही सामना करना पड़ता है। उसके लिए छोटी जाति में पैदा होना एक अभिशाप बन गया था।
सुजाता को हैरानी होती है समाज की सोच पर कि इंसान की परवरिश और संस्कार मायने नहीं रखते सिर्फ उसकी पैदाइशी ही सब कुछ है। इस गलत सोच के खिलाफ सुजाता कड़ी होने के बारे में सोचती है। एक दिन उसकी मुलाकात अधीर नाम के एक ब्राह्मण युवा से होती है, जो सुजाता की सोच जैसा ही है। अधीर को उच्च और निम्न जाति समझ नहीं आती , वह सभी को एक इंसान समझता है। यह जानकर सुजाता को बहुत अच्छा लगता है।
बहुत जल्द ही सुजाता और अधीर की दोस्ती प्यार में बदल जाती है। जिसको समाज की मंज़ूरी नहीं मिलती। दोनों प्रेम के लिए समाज से लड़ने का फैसला करते हैं। एक दिन सुजाता की माँ चारु सीढ़ियों से गिर जाती है, गंभीर अवस्था में उसको हॉस्पिटल ले जाया जाता है।
डॉक्टर चारु का इलाज करता है , कुछ समय बाद वह आकर सभी को बताता है कि चारु का जीवन बचाने के लिए खून की जरुरत है और चारु का ब्लड ग्रुप दुर्लभ है और वह आसानी से नहीं मिल रहा है। जब सुजाता को पता है कि उसका और उसकी माँ का ब्लड ग्रुप एक है तो वह अपनी माँ को बचाने के लिए अपना खून देने को तैयार हो जाती है।
समय पर मिलने वाले खून से चारु की जान बच जाती है और जब उसको पता चलता है कि सुजाता ने उसको जीवन दान दिया है तो उसको अपने किये गए गलत व्यव्हार का पछतावा होता है और वह सुजाता को अपनी बेटी मान लेती है। बेटी की सेवा से चारु बहुत जल्द ठीक हो जाती है। इसके बाद वह अपनी बेटी सुजाता का विवाह बड़ी ही धूमधाम से अधीर से करवाती है।
Songs & Cast
फिल्म में संगीत एस डी बर्मन ने दिया है और इन गीतों को मजरूह सुल्तानी ने लिखे थे – “जलते हैं जिसके लिए तेरी आंखों के दिए” , “काली घटा छाये मोरा जिया तरसाई”, “बचपन के दिन भी क्या दिन थे”, “तुम जियो हज़ारों साल, साल के दिन हो पचास हज़ार”, “सुनो मेरे बंधु रे, सुनो मेरे मितवा”, “नन्ही काली सोने चली हवा धीरे आना”, “अंधे ने भी सपने देखा क्या है जमाना… वाह भाई वाह” और इनको अपनी सुरीली आवाज़ से पिरोया है तलत महमूद, आशा भोंसले, गीता दत्त और एस. डी. बर्मन ने।
फिल्म में नूतन और सुनी दत्त ने मुख्य भूमिका निभाई है सुजाता और अधीर के किरदार के रूप में। शशिकला ने रमा चौधरी का किरदार और ललिता पवार ने गिरिबाला बुआजी का किरदार निभाया है। बाकि के कलाकारों में तरुण बोस (उपेंद्रनाथ चौधरी), सुलोचना लतकर (चारु चौधरी) असित सेन ( पंडित भवानी शंकर शर्मा ) ने अपनी अदाकारी से फिल्म को ब्लॉकबस्टर बनाया है।
Review
सुजाता मशहूर निर्माता, निर्देशक बिमल रॉय की 1959 में आयी एक सुपरहिट बॉलीवुड फिल्म थी। जिसने समाज में फैले उच्च और निम्न जाति के डिफरेंस को बताया है। फिल्म में नूतन ने सुजाता के किरदार से समाज के हर उस इंसान के दर्द को महसूस कराया है , जो इस अंतर के दर्द और बेज्जती को महसूस कर रहे थे। इस फिल्म ने अपार सफलता प्राप्त की, देश के साथ – साथ इसको अन्तर्राष्ट्रीय स्टार पर भी बहुत सराहना मिली।
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