स्वर्णकमलम एक तेलुगु फिल्म जिसने भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की कला को दर्शाया है। और निर्देशक ने फिल्म के जरिये शास्त्रीय नृत्य और संगीत को विश्व के सामने प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया है। इसका निर्देशन के विश्वनाथ ने किया तहत और इस फिल्म की कहानी को उन्होंने हो लिखा था। यह फिल्म भारतीय दक्षिण सिनेमा में 15 जुलाई 1988 को रिलीज़ हुयी थी।
भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य के इस पहलू को देखकर सभी लोगों ने इस फिल्म की सराहना की और इसने उस साल के कई प्रसिद्ध अवार्ड्स भी जीते।
Story Line
कहानी शुरू होती है, एक प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत कलाकार शेषेंद्र शर्मा से , दो बेटियों सावित्री और मीनाक्षी के साथ रहते हैं। ज्यादा समृद्ध ना होने की वजह से वह अपनी बेटियों को पारम्परिक शिक्षा देने में असमर्थ हैं। मगर फिर भी उन्होंने अपनी कला के ज्ञान से बड़ी बेटी सावित्री को शास्त्रीय संगीत और छोटी बेटी मीनाक्षी को शास्त्रीय नृत्य में निपुण किया है।
जहाँ पर सावित्री अपनी कला और संगीत से संतुष्ट है और जीवन में हमेशा अपने संगीत और कला को निखारने का प्रयत्न करने रखती है। वहीँ मीनाक्षी उसके बिलकुल विपरीत शास्त्रीय नृत्य के अवसर की कमी उसको हमेशा ही खलती है और इस वजह से उसमे कड़वाहट आ गयी और वह यह चाहती है कि बहुत जल्द ही वह समृद्ध बन जाये।
दोनों बहनों में जमीन आसमान का फर्क होता है जहाँ एक बहन अपनी कला से खुश होती है तो दूसरी बहन को अपनी कला से दिक्कत। मीनाक्षी अपने दिल की हर एक बात सिर्फ सावित्री को ही बताती थी।
एक दिन पड़ोस में चंद्रशेखर नाम का एक किरायेदार रहने आता है। पेशे से चित्रकार चंद्रशेखर बहुत जल्द ही सभी का प्रिय बन जाता है। वह सभी को अपनी रूचि के अनुसार काम करने के लिए प्रेरित करता रहता है। जब वह मीनाक्षी से मिलता है तो पाता है कि अपनी कला के प्रति धीरे धीरे मीनाक्षी की रूचि कम होती जा रही है और उसकी वजह से उसकी निपुणता भी धीरे धीरे लुप्त हो जाएगी।
चंद्रशेखर मीनाक्षी की इस कला को जिन्दा रखने के लिए बहुत कोशिशे करता है। और वह मीनाक्षी को नृत्य की अपनी कला पर संदेह करने से लेकर उसमे भक्ति आने तक के सफर में उसका साथ देता है। इस सफर में चंद्रशेखर मीनाक्षी से प्रेम करने लगता हैं। और बहुत जल्द ही मीनाक्षी ओडिसी नर्तक शेरोन लोवेन की सहायता से एक कुशल नर्तक बन जाती है।
कुछ समय बाद मीनाक्षी को अमेरिका जाने और वहां पर परफॉरमेंस करने का मौका मिलता है। पूरा परिवार बहुत खुश होता है यह बात जानकर , मगर मीनाक्षी इस बात से खुश नहीं थी क्योंकि वह अमेरिका जाना ही नहीं चाहती थी , उसको अहसास होने लगा कि वह भी चंद्रशेखर से प्रेम करने लगी है । वह जाना ही नहीं चाहती है चंद्र शेखर को छोड़कर , मगर उसके समझाए जाने के बाद वह जाती है ।
Songs & Cast –
फिल्म में संगीत इलैयाराजा ने दिया है। फिल्म का संगीत शास्त्रीय संगीत और नृत्य को ध्यान में रखकर बनाया गया था, “घल्लू घल्लू ఘల్లు ఘలు “, “आकासामुलो ఆకాసములో “, “कोथागा रेक्का కోతగ రేక్కా”, “कोलुवाई वन्नडे కొలువై వున్నడే “, “अंडेला रवामिधि అండేలా రావమిధి “, “शिव पूजाकु శివ పూజకు”, “चेरी यासोदकु చెరి యశోదకు”, “अथ्मथवम ఆత్మాత్వం”, और इनको गाया है एस.पी. शैलजा, एस जानकी, पी. सुशीला, एस.पी. बालू, पी. सुशीला और एस. पी. बालासुब्रमण्यम ने।
फिल्म में वेंकटेश ने चंद्रशेखर के एक सुलझे हुए चित्रकार का किरदार निभाया है , और मीनाक्षी और सावित्री के रूप में भानुप्रिया और देवीललिता ने दो ऐसे कलाकारों का किरदार निभाया है , जिनमे से एक तो संतुष्ट है अपनी कला से मगर दूसरी को पसंद नहीं अपनी कला , क्योकि उस कला से जीवन सफल नहीं बनता। बाकी के कलाकारों में शनमुख श्रीनिवास ( श्रीनिवास ), साक्षी रंगा राव (ओंकारामो), एस के मिश्रो (सरकारी अधिकारी)
Location –
इस सुपरहिट फिल्म की शूटिंग देश के कई खूबसूरत हिस्सों में की गयी है जैसे बिहार के नालंदा जिले में स्थित शांति स्तूप और उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और पूर्वी उत्तरांचल के चमोली जिला नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और भुवनेश्वर के खाटूपाड़ा गांव में स्थित प्रसिद्ध भृंगेश्वर शिव मंदिर आदि ऐसे प्रसिद्ध स्थानों की खूबसूरती को दिखाया गया है फिल्म के जरिये।