Movie NUrture: Sangram

संग्राम 1950: क्लासिक बॉलीवुड सिनेमा में प्यार और मुक्ति की एक टाइमलेस कहानी

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बॉलीवुड दशकों से भारतीय दर्शकों के मनोरंजन का एक प्रमुख स्रोत रहा है। बॉलीवुड फिल्मों में सबसे लोकप्रिय शैलियों में से एक पुलिस-पिता-अपराधी-पुत्र, जो 1950 के दशक में बेहद लोकप्रिय था। संग्राम, 1950 की बॉलीवुड फिल्म, एक क्लासिक रोमांटिक ड्रामा है जिसे आज भी दर्शकों द्वारा याद किया जाता है और पसंद किया जाता है। ज्ञान मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म में अशोक कुमार, नलिनी जयवंत और नवाब मुख्य भूमिकाओं में हैं।

139 मिनट्स की यह फिल्म 1 जनवरी 1950 को भारतीय सिनेमा ने रिलीज़ हुयी और यह 1950 की छठी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी। इस फिल्म में अशोक कुमार नेगेटिव शेड में दिखे हैं , यह उनका बहुत बड़ा सफल एक्सपेरिमेंट था , क्योकि उस समय उनकी डिमांड मुख्य नायक के रूप में थी।

Movie Nurture: Sangram
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स्टोरीलाइन

फिल्म की कहानी शुरू होती है एक पुलिस वाले के साथ , जो अपनी माँ के बिना पला बड़ा हुआ है और पिता के बेशुमार प्यार ने उसको बिगड़ैल बना दिया। बिगड़ैल कुमार को जुएं की लत लग जाती है और एक दिन गुस्से में कुमार अपने पिता की पिस्टल से फायर कर देता है, मगर पिता के पुलिस में होने की वजह से वह जेल नहीं जाता।

धीरे – धीरे कुमार बड़ा होने लगता है और पिता के पैसों पर मजा करता है। कुमार दूसरे शहर में एक होटल खोलता है और उसकी आड़ में गैर कानूनी कसीनो का भी धंधा करता है। मगर एक दिन अपने विश्वासपात्र से धोका खाता है और केसिनो में पुलिस की रेड पड़ती है , मगर कुमार भागने में सफल होता है।

एक दिन कुमार की मुलाकात उसकी बचपन की दोस्त कांता से होती है और यह दोस्ती बहुत जल्द ही प्यार में बदल जाती है। मगर जल्द ही कुमार का खौफनाक अतीत पुराने साथी के रूप में उसके सामने आ जाता है और वह ब्लैकमेल करने लगता है। उसके बाद कुमार इस समस्या को सुलझाता है, मगर उसे पुलिस पकड़ लेती है। जब जेल में उसको पता चलता है कि कांता का विवाह किसी और से हो रहा है तो वह जेल से भाग जाता है और कांता को भगाकर ले जाता है।भागते – भागते अंत में कुमार अपने पिता के हाथ लग जाता है और वह अपने पिता की गोली से मर जाता है। 

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अभिनेता वर्ग

कुमार के रूप में अशोक कुमार ने असाधारण प्रदर्शन किया है। पिता के असीमित प्रेम की वजह से एक बिगड़ैल चरित्र की भावनाओं का उनका चित्रण सराहनीय है। कांता का किरदार निभाने वाली नलिनी जयवंत आकर्षक और रूपवती हैं। नवाब ने एक असहाय पिता और एक कर्मठ पुलिस वाले का किरदार प्रभावशाली है। साजन सहित सहायक कलाकार भी उल्लेखनीय प्रदर्शन दिया है।

डायरेक्शन

संग्राम का ज्ञान मुखर्जी का निर्देशन बेहतरीन है। वह रोमांस, ड्रामा और एक्शन सहित फिल्म के विभिन्न तत्वों को कुशलता से संतुलित करता है। जिस तरह से वह कहानी और किरदारों को पेश करते हैं वह पूरी फिल्म में दर्शकों को बांधे रखता है।

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संगीत
सी. रामचंद्र द्वारा रचित संग्राम का संगीत, फिल्म के मुख्य आकर्षणों में से एक है। “नज़र से नज़र जो” और “उल्फत के जादू का दिल में असर है” सहित गाने अभी भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं। लता मंगेशकर के इन गीतों की प्रस्तुति भावपूर्ण और दिल को छू लेने वाली है।

संग्राम एक खूबसूरत फिल्म है जो क्लासिक बॉलीवुड रोमांस का सार दिखाती है। फिल्म की कहानी, प्रदर्शन, निर्देशन और संगीत इसे टाइमलेस क्लासिक बनाते हैं जो आज भी लोकप्रिय है। अगर आप बॉलीवुड फिल्मों के फैन हैं तो आपको संग्राम जरूर देखना चाहिए।

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