“अंकुर: द सीडलिंग” समीक्षकों द्वारा प्रशंसित एक भारतीय ड्रामा फिल्म है जो 2 सितम्बर 1974 को रिलीज़ हुई थी। श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित, यह फिल्म ग्रामीण भारत में रहने वाले एक निःसंतान दंपति की कहानी बताती है। लक्ष्मी नाम की लड़की फिल्म में भारतीय समाज में प्रचलित वर्ग, जाति, लिंग और शक्ति के उन सामाजिक धारणाओं को बताती है।
यह फिल्म अभिनेता अनंत नाग और अभिनेत्री शबाना आजमी की पहली फीचर फिल्म थी। अंकुर फिल्म की पूरी शूटिंग हैदराबाद में हुई थी। हालाँकि शबाना आज़मी ने इससे पहले कई फिल्मों में काम कर लिया था, मगर यह उनकी पहली रिलीज़ फिल्म थी।
Story Line
फिल्म की कहानी भारत के एक सुदूर और छोटे से गाँव से शुरू होती है, जहाँ एक गरीब बहरा शराबी किश्तय्या अपनी पत्नी लक्ष्मी (शबाना आज़मी) के साथ रहता है। यह दम्पति नीच दलित जाति से संबंध रखता है। इस दंपति के काफी समय से बच्चा नहीं हुआ होता है और लक्ष्मी के सिर्फ एक ही मनोकामना होती है किउसके भी बच्चा हो। वहीँ दूसरी तरफ सूर्या गांव के जमींदार का बेटा है, जो शहर से अपनी पढ़ाई पूरी करके गांव वापस आता है। जहाँ उसको अपने पिता के नाज़ायज़ रिश्ते के बारे में पता चलता है और किस तरह से उसके पिता सब कुछ अपने नाजायज रिश्ते कौशल्या और उसके बेटे प्रताप पर लुटा देते हैं।
जमींदार अपने बेटे सूर्य का विवाह उसकी बिना मर्जी के सुरु से बाल विवाह करवा देते हैं। इन सब बातों से दुखी वह अकेले एक अलग घर में रहने चला जाता है। कुछ समय बाद लक्ष्मी और किश्तय्या उसके यहाँ नौकरों के रूप में काम करने आते हैं।
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, सूर्या लक्ष्मी की ओर आकर्षित होता है, और कुछ समय में ही लक्ष्मी गर्भवती हो जाती है, और जब वह एक बच्ची को जन्म देती है उसी समय सुरु सूर्य के साथ रहने आ जाती है। सुरु शुरू से ही लक्ष्मी को पसंद नहीं करती और हर समय मौका ढूंढती रहती है लक्ष्मी को काम से निकलवाने का , और एक दिन मौका पाकर वह लक्ष्मी को काम से निकाल देती है। सूर्या की ख़ामोशी लक्ष्मी को उसके साथ हुए धोखे का अहसास करवाती है। तब तक लक्ष्मी का पति सुधारकर वापस आ जाता है, जो सूर्य के घर चोरी करके भागा था।
उसके बाद कई परिस्थितियों का सामना करते हुए दोनों यह तय करते हैं कि वह अपनी बच्ची को एक अच्छी परवरिश देंगे।
फिल्म ग्रामीण भारत में जाति, वर्ग और लिंग के जटिल विषयों को बेहद बारीकी से बताती है। निर्देशक, श्याम बेनेगल, ने कुशलता से उन दमनकारी सामाजिक संरचनाओं को चित्रित किया है , जो निचली जातियों और महिलाओं को अपने अधीन में रखते थे। फिल्म इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि शक्ति और विशेषाधिकार का उपयोग अक्सर कमजोर लोगों का शोषण करने के लिए किया जाता है।
फिल्म का प्रदर्शन असाधारण है, विशेष रूप से शबाना आज़मी का लक्ष्मी का चित्रण। आज़मी चरित्र में वो गहराई पैदा करती है जो काबिले तारीफ है। वह एक ऐसी महिला को चित्रित करती हैं जो अपने पति के लिए अपने प्यार और नैतिकता की भावना के बीच फंसी हुई है। फिल्म की छायांकन भी उत्कृष्ट है, जिसमें कैमरा ग्रामीण भारत की सुंदरता, सरलता और कठोरता को कैप्चर करता है।
कुल मिलाकर, “अंकुर: द सीडलिंग” एक शक्तिशाली और विचारोत्तेजक फिल्म है जो भारतीय समाज में महत्वपूर्ण विषयों की और इंगित करती है। यह भारतीय सिनेमा या सामाजिक मुद्दों में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक अच्छी फिल्म हो सकती है। फिल्म के जटिल चरित्रों का सूक्ष्म चित्रण, उत्कृष्ट प्रदर्शन और असाधारण सिनेमैटोग्राफी इसे एक सच्ची कृति बनाती है।
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