दासी 1952 में रिलीज हुई एक तेलुगु भाषा की फिल्म है, जिसका निर्देशन सी. वी. रंगनाथ दास ने किया था और सी. लक्ष्मी राज्यम ने राज्यम पिक्चर्स के बैनर तले इसका निर्माण किया था। फिल्म में एन. टी. रामा राव, सी. लक्ष्मी राज्यम और एस. वी. रंगा राव हैं। यह फिल्म एक ड्रामा फिल्म है जो कमलाक्षी नाम की एक बंधुआ महिला की कहानी बताती है, जिसे 1920 के दशक में हैदराबाद राज्य के तेलंगाना क्षेत्र में दासी के नाम से जाना जाता था। उसे उसके परिवार ने पैसे के लिए एक अमीर जोड़े की नौकरानी बनने के लिए बेच दिया है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह उनके घर का हर कल्पनीय काम करेगी। फिल्म की कहानी अच्छी है और इसका निर्देशन भी अच्छा है। सी. आर. सुब्बुरामन और सुसरला दक्षिणामूर्ति द्वारा रचित संगीत मधुर है।

स्टोरी लाइन
फिल्म में अच्छे कलाकार हैं और एन. टी. रामा राव ने रमैया की भूमिका में उत्कृष्ट काम किया है। फिल्म की कहानी एक घोड़ा-गाड़ी चालक रमैया और उसकी पत्नी लक्ष्मी के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक अमीर आदमी बद्रीनाथ के घर पर नौकरानी के रूप में काम करती है। रमैया और लक्ष्मी का एक बेटा सुब्बाडु है। बद्रीनाथ, जो निःसंतान है, बच्चे पैदा करने के लिए पुनर्विवाह करने का फैसला करता है और वह दुल्हन की तलाश में है। उनकी पत्नी पर्वतम्मा को उनके बड़े भाई रामाराव ने नकली गर्भधारण करने की सलाह दी है, वह इस बात से सहमत नहीं होती है। चूंकि लक्ष्मी फिर से गर्भवती है, रामाराव का विचार बद्रीनाथ को उसके बच्चे को पर्वतम्मा के बच्चे के रूप में दिखाना और उसे दूसरी शादी करने से रोकना है। वहीँ दूसरी तरफ रमैया को लक्ष्मी पर बेवफाई का संदेह होता है और वह उसे घर से निकाल देता है। लक्ष्मी पर्वतम्मा के घर में आश्रय लेती है, एक बच्ची को जन्म देती है, और पर्वतम्मा बच्चे को चुराकर वहां से भाग जाती है।
रमैया दुर्गी नामक एक लड़की से पुनर्विवाह करता है, जो अपने सौतेले बेटे सुब्बादु को नदी में फेंकने के बाद एक स्टेज अभिनेता के साथ भाग जाती है। दूसरी तरफ अपने दोनों बच्चों के ना मिलने पर निराश होकर, लक्ष्मी, जो नदी में कूदकर अपना जीवन समाप्त करने का फैसला करती है, मगर डॉक्टर की मदद से उसे बचा लिया जाता है। दुर्गी के चले जाने के बाद, रमैया एक सन्यासी बन जाता है। साल बीतते जाते हैं. लक्ष्मी की बेटी कमला, जिसका पालन-पोषण पर्वतम्मा द्वारा किया जा रहा है, अब एक युवा महिला है और रामाराव के बेटे, प्रेमनाथ से प्यार करती है। लेकिन प्रेमनाथ की माँ, जो सच्चाई जानती है, अपने बेटे की नौकरानी की बेटी से शादी करने पर आपत्ति जताती है। वहीँ दूसरी तरफ लक्ष्मी का बेटा सुब्बाडू अब सुब्बाराव, एक प्रतिष्ठित वकील बन गया हैं। यहां से कहानी में कुछ और मोड़ आने के बाद सब कुछ ठीक हो जाता है। रमैया घर लौट आता है, और परिवार फिर से एकजुट हो जाता है।

यह फिल्म समाज के एक ऐसे पहलू को दर्शाती है जहाँ पर चाहे अमीर हो या फिर गरीब सभी को अपने जीवन का संघर्ष करना पड़ता है। निर्देशक में फिल्म का यह सन्देश बहुत अच्छे से प्रतुत किया है। इस फिल्म में कुल मिलकर 11 गाने हैं और उनको के. प्रसाद राव, पिथापुरम नागेश्वर राव और पी. लीला ने गाया है।