Movie Nurture:चिन्नमुल ছিন্নমূল

चिन्नमुल ছিন্নমূল: 1950 के पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) विभाजन के प्रभाव की कहानी

Bengali Films Hindi Movie Review old Films Top Stories

चिन्नमुल ছিন্নমূল 1950 में बनी बंगाली फिल्म है, जिसका निर्देशन नेमाई घोष ने किया है। फिल्म एक सामाजिक नाटक है जो शरणार्थी विभाजन के बाद आये कलकत्ता (अब कोलकाता), भारत में अपने जीवन के लिए संघर्ष पर प्रकाश डालती है। फिल्म की पटकथा एक प्रमुख बंगाली नाटककार स्वर्णकमल भट्टाचार्य द्वारा लिखी गई थी, और इसमें ज्यादातर पेशेवर अभिनेताओं की भूमिका है। किसान वर्ग के यथार्थवादी चित्रण के लिए फिल्म की प्रशंसा की गई है, और यह भारतीय सिनेमा का एक क्लासिक बना हुआ है।

यह पहली भारतीय फिल्म थी जो कि विभाजन जैसे सामाजिक और भावनात्मक विषय से सम्बंधित थी। 117 मिनट्स की यह फिल्म 1 जनवरी 1950 को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुयी थी, और उसी समय रूसी फिल्म निर्देशक वसेवोलॉड पुडोवकिन भारत के दौरे पर थे और जब उन्होंने यह फिल्म देखी और फिल्म से इतने प्रभावित हुए कि उसी समय इसके प्रिंट खरीद लिए और वापस जाकर इसको रूस में 188 थियेटरों में दिखाया।

Movie Nurture: चिन्नमुल ছিন্নমূল
Image Source: Google

स्टोरी लाइन

चिन्नमुल एक ऐसी कहानी है जो पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के विभाजन के बाद अपने पैतृक घरों को छोड़कर कलकत्ता जैसे शहर में आये हुए किसानो के संघर्ष के बारे में है। यह कहानी शुरू होती है पूर्वी पाकिस्तान में बसे एक छोटे से गांव से, जहाँ पर गोविंदा नाम का एक छोटा सा किसान अपनी गर्भवती पत्नी सुमति के साथ ख़ुशी से रह रहा होता है।

हालात तब बदलते हैं जब गोविंदा को पता चलता है कि देश का विभाजन हो रहा है और उसको और उसके जैसे सभी किसानों को अपनी जगह छोड़कर जाना पड़ेगा। अपनी पहचान और जीवन का अस्तित्व मिटते हुए देखकर सभी परेशान हो जाते हैं , मगर मजबूरन सभी को अपना घर, अपना गांव और अपनी जमीन छोड़नी पड़ती है।

और सब कुछ छोड़कर गांव के परिवेश से आये हुए किसान जब बड़े से शहर में आते हैं तो कुछ उम्मीदें और कुछ डर साथ लाते हैं , ऐसा ही कुछ गोविंदा और सुमति के साथ हुआ। वो शहर तो आ गए , मगर रहने और खाने का कोई इंतेज़ाम नहीं। परेशान गोविंदा और सुमति कभी रेलवे स्टेशन और कभी उसके आसपास के अस्थायी आश्रयों में रुकते। फिल्म में गोविंदा और सुमति जैसे कई शरणार्थियों की पीड़ा दिखाई है कि वह भी अपनी अस्थायी दैनिक जीवन से दुखी हैं और इस कोशिश में हैं कि उनका जीवन भी पहले जैसा हो जाये।

Movie Nurture: चिन्नमुल ছিন্নমূল
Image Source: Google

यथार्थवाद और सामाजिक टिप्पणी

चिन्नमुल को किसान वर्ग के यथार्थवादी चित्रण और सामाजिक टिप्पणी के लिए जाना जाता है। यह फिल्म विभाजन के बाद किसानों के समूह के जीवन की कठोर वास्तविकताओं को दर्शाती है, कैसे विभाजन का प्रभाव उनकी बुनियादी सुविधाओं तक को नुकसान पहुंचा जाता है। यह फिल्म भारत की पहली विभाजित सम्बंधित फिल्म थी, जिसने उस पीड़ा को दिखाया है जो विभाजन के बाद होता है आम नागरिकों को।

Movie Nurture: चिन्नमुल ছিন্নমূল
Image Source: Google

संगीत और ध्वनि डिजाइन

फिल्म का संगीत और ध्वनि डिजाइन भी उल्लेखनीय हैं। फिल्म के साउंडट्रैक की रचना एक प्रमुख भारतीय संगीतकार कलाबरन दास ने की थी। पारंपरिक भारतीय संगीत का उपयोग फिल्म की प्रामाणिकता को जोड़ता है और दर्शकों के लिए एक बेहद खूबसूरत अनुभव देता है। ध्वनि डिजाइन भी प्रभावशाली है, जिसमें फिल्म में परिवेशी ध्वनि और मौन का उपयोग इसके यथार्थवाद को जोड़ता है।

चिन्नमुल एक सिनेमाई कृति है जो किसान वर्ग के संघर्ष को उजागर करती है। फिल्म में विभाजित किसानों का यथार्थवादी चित्रण और बेहतर परिस्थितियों के लिए उनकी लड़ाई सिनेमा में सामाजिक यथार्थवाद की शक्ति का प्रमाण है। फिल्म में कई उम्दा अभिनेताओं और पारंपरिक भारतीय संगीत का उपयोग इसकी प्रामाणिकता को जोड़ता है, और सामाजिक न्याय और अधिकारिता का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1950 में था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *