Movienurture :- Angulimaar

Angulimaal – बुद्धम् शरणम् गच्छामि

Bollywood Hindi Inspirational Movie Review old Films

Angulimaal 1960 में भारतीय सिनेमा में रिलीज़ हुयी एक सुपरहिट हिंदी फिल्म है, जिसका निर्देशन विजय भट्ट द्वारा किया गया था। यह फिल्म एक हिंदी पौराणिक कथा पर आधारित है। 

यह फिल्म एक ऐसी कथा पर आधारित है जो हमें सिखाती है कि किस तरह जीवन में बहुत बड़े कर्म करने पर भी जीवन हमें सुधरने और सब कुछ सही करने के लिए एक मौका जरूर देती है, मगर कुछ उस मौके को समझ लेते हैं और सही राहों पर चल पड़ते हैं।  यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति  की कहानी है जो बहुत प्रतिभाशाली होता है मगर कुछ हालातों के बहाव में हत्यारा बन जाता है और वो भी ऐसा जिससे सभी को डर लगता है।  फिर उसकी मुलाकात एक साधु से होती है जो उसके जीवन को एक अलग दिशा में मोड़ देते हैं और उसके जीवन का आधार ही बदल जाता है।

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Story – कहानी शुरू होती है एक महल के राज पुरोहित के घर से जिनके यहाँ एक बच्चे ने जन्म लिया है। जैसे ही राज पुरोहित उस बच्चे के गृह देखती है उसकी कुंडली बनाने के लिए तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि उनके बच्चे के भाग्य में एक बहुत बड़ा अपराधी और हत्यारा बनना लिखा है।

यह बात जब राजा को पता चलती है तो वह कहते हैं कि इतना छोटा शिशु किसी को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा सकता, मगर सभी सभागण उस शिशु को मारने का आग्रह करते हैं। राजा के आदेश पर राज गुरु उस शिशु को अपने साथ ले जाते अपने आश्रम में उसको शिक्षा देने के लिए और उसको एक होनहार युवक बनाने के लिए।  जाने से पहले राजा उस शिशु को अहिंसक नाम देता है, जिसका अर्थ शांतिप्रिय होता है।

महल के राज गुरु द्वारा निर्णय लिया जाता है कि यह शिशु 12 वर्षों तक गुरुकुल में ही रहेगा और प्रारंभिक शिक्षा के लिए वह शिशु राज गुरु के सर्वश्रेष्ठ आचार्य के साथ 8 वर्षों के लिए जाता है, जहाँ पर उसे सबसे प्रतिभाशाली में बदलने के लिए शिक्षा दी जाएगी।

अहिंसाक अपने 8 वर्षों की प्रारंभिक शिक्षा लेकर वापस गुरुकुल के लिए आचार्य के साथ जाता है जहां आचार्य की पत्नी गुरु माता सभी छात्रों को तीरंदाजी, एथलेटिक्स और घुड़सवारी की शिक्षा प्रदान करने में मदद करती हैं।
सभी कलाओं में अहिंसक उत्कृष्टता हासिल करता है, वहीँ गुरुकुल में एक और छात्र मारुति, जो राजा के सेनापति का पुत्र है जो कि अहिंसक से ईर्ष्या करता है।

समय बीतता जाता है और अहिंसक अपनी हर शिक्षा में निपुर्णता हासिल करता जाता है और वहीँ दूसरी तरफ मारुति अपने मित्रों धनपाल और कृष्ण के साथ मिलकर अहिंसक को परेशां करते रहते हैं। एक दिन राजकुमारी माया जंगल में शिकार करने जाती है मगर मारुति को यह डर है कि कहीं राजकुमारी अहिंसक के पास ना चली जाये।

राजकुमारी माया मारुति को छोड़कर अहिंसक के पास जाती है और वह बचपन में उसके साथ बिताये गए पलों को याद करती है।  माया अहिंसक से बचपन में मिली थी और तभी से वह उसको पसंद करती है, मगर उसका विवाह मारुति से पहले से ही तय होता है। राजकुमारी माया अहिंसक को अपने साथ अपने शिविर में ले जाती है और तभी गुस्से में मारुति वहां पर बंधे हुए बाघ को खोल देता है।

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बाघ  का सामना अहिंसक करता है और उसको भाले से मार देता है, इसके बाद अहिंसक रात भर शिविर में रहने को मजबूर हो जाता है, जबकि मारुति और उसके दोस्त गुरुकुल लौट आते हैं। रात बाहर बिताना, गुरुकुल के इस नियम को तोड़ने के कारण आचार्य नाराज हो जाते हैं और अहिंसक के स्पष्टीकरण को सुनने से इंकार कर देते हैं।

मारुति और उसके मित्र आचार्य को एक झूठ से भ्रमित करते हैं कि अहिंसक की विशेष रूचि गुरु माता में हैं और आचार्य इस भ्रमित बात पर विश्वास भी कर लेते हैं। गुरुकुल छोड़ने वाले समारोह में सभी हिस्सा लेते हैं और अपने घर जाने की बहुत ख़ुशी भी होती है मगर बुखार होने की वजह से गुरु माता अहिंसक को कुछ और दिन गुरुकुल में रहने को कहती है, मगर यह बात आचार्य को पसंद नहीं आती और वह बहुत नाराज़ होते हैं अहिंसक पर और उसी समय गुरुकुल छोड़ने का आदेश दे देते हैं।

अहिंसक को उकसाने के लिए धनपाल उसको गुरुमाता के साथ जोड़ता है और यह सुनकर क्रोधित अहिंसक धनपाल की हत्या कर देता है और वहां से भाग जाता है। आचार्य अब मानते हैं कि भविष्यवाणी सच हो गई है। मारुति ने महल आकर राजा को सारी कहानी बताई और यह भी बताया कि अहिंसक का गुरु माता के साथ संबंध है। राजा उसे पकड़ने के लिए सैनिकों को भेजता है और वहीँ दूसरी तरफ गुरु माता बुद्ध भगवन के एक भक्त द्वारा आत्महत्या से बचायी जाती हैं।

अहिंसक अब एक हत्यारा बन गया है और अब सभी को मरना उसको अच्छा लगने लगता है और वह मारकर उनकी उंगलियां काटकर गले में पहन लेता है  ऊंगलीमार के नाम से जाना जाता है। एक दिन वह बुद्ध भगवन से मिलता है और उन्हें मरने की कोशिश करता है मगर उनके तेज़ से वह ऐसा नहीं कर पाता और उनके बताये गए रस्ते पर निकल पड़ता है एक भिक्षु बनकर।

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Songs & Cast –  इस फिल्म का संगीत दिया है अनिल बिस्वास ने और इनको लिखा है भारत व्यास ने  – “बुद्धम् शरणम् गच्छामि”, “आये आये बसंती बेला”, “जब दुःख की घड़ियाँ आये “, “धीरे धीरे धरे चंदा “, “तेरे मन में कौन, जा रे ना “, और इन गीतों को गाया है मन्ना डे , लता मंगेशकर ,आशा भोसले , मीना कपूर और आरती मुखर्जी ने।

इस फिल्म में भारत भूषण ने  अहिंसक का किरदार निभाया है और उनका साथ दिया है निम्मी (राजकुमारी माया ), अनीता गुहा (गुरु माता ), मारुति  (चन्द्रशेखर), प्रेम अदीब (महाराजा ), धनपाल (राम मोहन), केसरी (कृष्ण)

इस  फिल्म की अवधि 2 घंटे और 4 मिनट्स है और इस फिल्म का निर्माण थाई इनफार्मेशन सर्विसेज ने किया था।

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