राम पादुका पट्टाभिषेकम (अनुवाद- भगवान राम की चप्पलों का राज्याभिषेक) सर्वोत्तम बादामी द्वारा निर्देशित 1932 की भारतीय तेलुगु भाषा की पौराणिक ड्रामा फिल्म है। फिल्म में यादवल्ली सूर्यनारायण, सुरभि कमलाबाई, सी. एस. आर. अंजनेयुलु और अन्य मुख्य भूमिका में हैं। यह फिल्म रामायण के एक कथानक पर आधारित है जिसमें भगवान राम का वन में चौदह वर्ष का वनवास और राम के शासन के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व के रूप में सिंहासन पर भगवान राम की पादुकाओं का भरत का राज्याभिषेक शामिल है। फिल्म का निर्माण सागर मूवीटोन द्वारा किया गया था और यह तेलुगु सिनेमा की शुरुआती साउंड फिल्मों में से एक थी।
3 घंटे और 26 मिनट्स की यह फिल्म 1 जनवरी 1932 को दक्षिण भारतीय सिनेमा में रिलीज़ किया गया था।

स्टोरी लाइन
फिल्म की शुरुआत राजा दशरथ के उस दृश्य से होती है, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे राम को अयोध्या के सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में ताज पहनाने के फैसले की घोषणा की। हालाँकि, उनकी दूसरी पत्नी कैकेयी, जो अपनी दासी मंथरा से प्रभावित है, दशरथ से दो वरदान माँगती है जो उसने बहुत पहले उनसे देने का वादा किया था। वह उनसे राम को चौदह वर्ष के लिए वन में भेजने और उनके पुत्र भरत को राजा बनाने के लिए कहती हैं। दशरथ का दिल टूट जाता है लेकिन उन्हें अपना वादा पूरा करना होता है।
राम अपने पिता की आज्ञा को स्वीकार करते हैं और अपनी पत्नी सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ वन जाने की तैयारी करते हैं। वह अपनी मां कौशल्या और अपने गुरु वशिष्ठ से मिलते है और उनका आशीर्वाद लेते है।
राम तब अयोध्या छोड़ कर गंगा नदी के तट पर पहुँचते हैं, जहाँ वे निषादों के राजा गुहा से मिलते हैं, जो उन्हें आतिथ्य और मित्रता प्रदान करते हैं। वह एक ऋषि भारद्वाज से भी मिलते है, जो उन्हें जंगल में रहने के लिए चित्रकूट पर्वत पर जाने की सलाह देते है।
इस बीच, राम के जाने के बाद दशरथ दु: ख और शोक से मर जाते हैं। भरत अपने मामा के घर से लौटते है और आते ही दुखद घटनाओं के बारे में पता चलता है। वह सिंहासन को स्वीकार करने से इंकार कर देते है और कैकेयी को कभी ना माफ़ करने का फैसला लेते हैं। वह वन जाने और राम को वापस लाने का फैसला करते है।

भरत चित्रकूट पहुँचे और राम से मिले। वह उनसे अयोध्या लौटने और सिंहासन वापस लेने के लिए विनती करता है, लेकिन राम ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें अपने पिता की आज्ञा का पालन करना होगा और उनके वचन का सम्मान करना होगा। वह भरत को एक राजा और एक भाई के रूप में उनके कर्तव्य की याद दिलाते है और उनके लौटने तक उनकी ओर से अयोध्या पर शासन करने के लिए कहते है।
तब भरत ने राम से अपने अधिकार और भक्ति के प्रतीक के रूप में अपनी पादुकाएं (चप्पल) देने का अनुरोध किया। राम सहमत होते हैं और उन्हें स्नेह के साथ अपनी पादुकाएँ देते हैं। फिर भरत उन्हें वापस अयोध्या ले जाते हैं और उन्हें सिंहासन पर बिठाते हैं। वह घोषणा करता है कि जब तक राम वापस नहीं आएंगे तब तक वह महल में नहीं बल्कि सरयू नदी के पास एक झोपड़ी में रहेंगे। वह यह भी प्रतिज्ञा करता है कि वह किसी शाही सुख या आराम का आनंद नहीं लेगा बल्कि एक तपस्वी की तरह जीवन व्यतीत करेगा।
फिल्म भरत द्वारा राम की पादुकाओं की पूजा करने और उनकी भलाई के लिए प्रार्थना करने के एक दृश्य के साथ समाप्त होती है।
राम पादुका पट्टाभिषेकम एक क्लासिक फिल्म है जो तेलुगु सिनेमा की समृद्ध संस्कृति और परंपरा को दर्शाती है। यह तेलुगु भाषा की पहली साउंड फिल्मों में से एक है, जो उस समय तकनीकी सीमाओं और प्रशिक्षित अभिनेताओं की कमी के कारण एक चुनौती थी। फिल्म में एक मजबूत सामाजिक संदेश भी है जो धर्म, वफादारी, आज्ञाकारिता, त्याग और भक्ति के मूल्यों पर जोर देता है।