जिद्दी ضدی ۔ एक भारतीय फिल्म है, जिसका निर्देशन शहीद लतीफ ने किया है। यह फिल्म सिनेमाघरों में 1 जनवरी 1948 को रिलीज़ हुयी और इसमें देव आनंद और कामिनी कौशल ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। फिल्म एक व्यावसायिक सफक रही और इसे भारतीय सिनेमा का एक क्लासिक माना जाता है।
बॉम्बे टॉकीज़ द्वारा निर्मित यह भारतीय हिंदी भाषा की एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म की ताकत, इसका उम्दा प्रदर्शन है। देव आनंद ने पूरन के रूप में एक शक्तिशाली और भावनात्मक प्रदर्शन किया है और वह इस चरित्र के दृढ़ संकल्प और निराशा को कैप्चर करने में बेहद सफल हुए हैं। कामिनी कौशल आशा के किरदार के रूप में वो इमोशंस लेकर आती है जो बेहद प्रभावशाली है। दो प्रमुख अभिनेताओं के बीच की केमिस्ट्री भी उल्लेखनीय है, जो उनके रोमांस को विश्वसनीय और सम्मोहक बनाती है। अपनी भूमिका में प्राण भी उल्लेखनीय रहे , जो खलनायक और सहानुभूतिपूर्ण दोनों तरह की अच्छी प्रस्तुति देते हैं।
फिल्म का निर्देशन भी काबिलेतारीफ है। शहीद लतीफ़ दर्शकों को सीट से बांधे रखते हुए पूरी फिल्म में तनाव और निराशा से आशा की भावना को दर्शाते हैं। एक्शन दृश्यों को अच्छी तरह से कोरियोग्राफ किया गया है और फिल्म की पेसिंग अच्छी तरह से संतुलित है, जो इसे एक आकर्षक और आनंददायक फिल्म बनाती है।
फिल्म का निर्देशन भी काबिलेतारीफ है। शहीद लतीफ़ दर्शकों को सीट से बांधे रखते हुए पूरी फिल्म में तनाव और तात्कालिकता की भावना पैदा करते हैं। एक्शन दृश्यों को अच्छी तरह से कोरियोग्राफ किया गया है और फिल्म की पेसिंग अच्छी तरह से संतुलित है, जो इसे एक आकर्षक और आनंददायक फिल्म बनाती है।
Story Line
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक गरीब लड़की आशा से, जो इंतज़ार में होती है उसकी नानी के सेठ जी के आने का, मगर वहां पर जमींदार परिवार से उनका सबसे छोटा बेटा पूरन आता है। नानी बेसहारा आशा की जिम्मेदारी पूरन को सौंप कर इस दुनिया से रुक्सत ले लेती है।
आशा पूरन के साथ उसके घर आती है और नौकरानी के रूप में पूरे घर को संभल लेती है। वहीँ दूसरी तरफ आशा की अच्छाई और व्यव्हार पूरन को उसकी तरफ खीचता है और कुछ ही दिनों में दोनों प्रेम के अटूट बंधन में बंध जाते हैं।
मगर अमीरों को गरीब पसंद नहीं आते जिसके चलते पूरन और आशा के प्रेम को स्वीक़ृति नहीं मिलती और वह दोनों घर से भाग जाते हैं। मगर पूरन के बड़े भाई द्वारा दोनों पकडे जाते हैं, और गलती से आशा नदी में गिर जाती है और उसे मरा हुआ मानकर परिवार वाले जबरदस्ती पूरन का विवाह शांता नाम एक अमीर युवती से करवा देते हैं।
विवाह के बाद पूरन को पता चलता है कि आशा जीवित है। मगर आशा के ना अपनाने के दर्द को साथ लिए पूरन उसके बाद किसी भी रिश्ते को नहीं मानता। पुराण ज़िद की वजह से और शांता का उसको छोड़कर चले जाने की वजह से परिवार पूरन का विवाह अंत में आशा से करवा देते हैं।
फिल्म का एक मुख्य आकर्षण इसका मजबूत भावनात्मक चित्रण है। यह फिल्म प्यार, परिवार और बलिदान को इस तरह से समझाती हैं जो बेहद ही भरोसेमंद लगती है। फिल्म में युवा प्रेम के संघर्ष और अपने परिवार के लिए किए जाने वाले बलिदानों का चित्रण बहुत ही अच्छा है।
अंत में, “जिद्दी” एक क्लासिक बॉलीवुड फिल्म है जो देखने लायक है। मुख्य अभिनेताओं का प्रदर्शन, निर्देशन, छायांकन और संगीत उल्लेखनीय हैं। फिल्म में युवा प्रेम के संघर्ष और अपने परिवार के लिए किए जाने वाले बलिदानों का चित्रण बहुत ही मार्मिक है। पेसिंग और चरित्र विकास में कुछ खामियों के बावजूद, फिल्म प्रेम, परिवार और बलिदान के विषयों की एक भावनात्मक और शक्तिशाली खोज है।