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Home 1960

परख: जीवन की कसौटी, उम्मीदों का इम्तिहान

Sonaley Jain by Sonaley Jain
July 17, 2024
in 1960, Bollywood, Films, Hindi, Movie Review, old Films, Top Stories
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Movie Nurture: परख: जीवन की कसौटी, उम्मीदों का इम्तिहान
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फिल्में हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा होती हैं। वे न केवल हमारा मनोरंजन करती हैं बल्कि हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सोचने के लिए भी प्रेरित करती हैं। आज हम एक ऐसी ही क्लासिक हिंदी फिल्म “परख: जीवन की कसौटी, उम्मीदों का इम्तिहान” की समीक्षा करेंगे। यह फिल्म अपनी गहरी कहानी और शानदार अभिनय के लिए जानी जाती है।

Movie Nurture: परख: जीवन की कसौटी, उम्मीदों का इम्तिहान
Image Source: Google

कहानी (Plot)

“परख” एक छोटे से गांव की कहानी है, जहां के निवासियों के जीवन में एक नया मोड़ आता है। एक दिन गांव के पोस्टमास्टर को एक अनाम पत्र मिलता है, जिसमें लिखा होता है कि गांव का सबसे ईमानदार व्यक्ति 5 लाख रुपये का इनाम पायेगा। गांव के सभी लोग इस रकम को पाने के लिए अपने-अपने तरीके से खुद को ईमानदार साबित करने की कोशिश करते हैं। गांव के मुखिया, डॉक्टर, शिक्षक, और अन्य लोग इस दौड़ में शामिल हो जाते हैं। इस सबके बीच, फिल्म का मुख्य पात्र रजत , जो एक गरीब शिक्षिक है, इस प्रतियोगिता से खुद को दूर रखता है। फिल्म की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि सच्ची ईमानदारी क्या है और इसे कैसे परखा जा सकता है।

अभिनय (Acting)

फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में नजीर हुसैन, साधना , और बसंत चौधरी ने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया है। नजीर हुसैन ने पोस्टमास्टर की भूमिका निभाई है, जो अपनी सरलता और ईमानदारी से सभी का दिल जीत लेते हैं। साधना ने सीमा के किरदार को बहुत ही सजीव और प्रभावशाली ढंग से निभाया है। बसंत ने गांव के शिक्षक की भूमिका निभाई है और उनके अभिनय की गहराई को सराहा गया है। सभी कलाकारों ने अपने किरदारों को इतनी बखूबी निभाया है कि वे दर्शकों के दिल में बस जाते हैं।

Movie Nurture: परख: जीवन की कसौटी, उम्मीदों का इम्तिहान
Image Source: Google

निर्देशन (Direction)

फिल्म का निर्देशन बिमल रॉय ने किया है, जो हिंदी सिनेमा के एक महान निर्देशक माने जाते हैं। बिमल रॉय ने “परख” को बहुत ही संजीदा और सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है। उन्होंने फिल्म की कहानी और पात्रों को इस प्रकार गढ़ा है कि दर्शक उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी और संगीत का भी विशेष ध्यान रखा गया है, जो फिल्म के माहौल को और भी प्रभावशाली बनाता है। बिमल रॉय ने इस फिल्म के माध्यम से समाज की कुरीतियों और सच्चाई को बखूबी उकेरा है।

फिल्म का संदेश (Film Message)

“परख” एक गहरा और प्रभावशाली संदेश देती है। फिल्म हमें यह सिखाती है कि सच्ची ईमानदारी को पैसे या इनाम से नहीं परखा जा सकता। ईमानदारी एक ऐसी मूल्यवान गुण है, जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं खोना चाहिए। फिल्म यह भी दर्शाती है कि समाज में बहुत से लोग अपने स्वार्थ के कारण खुद को ईमानदार दिखाने का प्रयास करते हैं, लेकिन अंततः सच्चाई सामने आ ही जाती है। “परख” हमें यह भी सिखाती है कि उम्मीदों का इम्तिहान हमेशा कठिन होता है, लेकिन अगर हम अपने मूल्यों और सच्चाई के साथ खड़े रहते हैं, तो हमें सफलता अवश्य मिलती है।

लोकेशन (Location)

फिल्म की शूटिंग एक छोटे से गांव में की गई है, जो फिल्म की कहानी और माहौल को और भी सजीव बनाता है। गांव की प्राकृतिक सुंदरता, वहां के लोगों का सरल जीवन और उनकी कठिनाइयों को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से फिल्म में प्रस्तुत किया गया है। गांव के खेत, घर और गलियाँ सभी ने फिल्म को एक वास्तविकता का अहसास दिलाया है।

Movie Nurture: परख: जीवन की कसौटी, उम्मीदों का इम्तिहान
Image Source: Google

अज्ञात तथ्य (Unknown Facts)

स्रोत उपन्यास: “परख” फिल्म एक बंगाली उपन्यास पर आधारित है, जिसे मनोहर श्याम जोशी ने लिखा है। इस उपन्यास का नाम “मास्टर माणिक” है।

बिमल रॉय का अद्वितीय निर्देशन: बिमल रॉय ने इस फिल्म को केवल 30 दिनों में शूट किया था, जो उस समय के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।

संगीत: फिल्म का संगीत सलिल चौधरी ने दिया है, जिन्होंने बहुत ही सुन्दर और मेलोडियस गाने कंपोज किए हैं। “ओ सजना बरखा बहार आई” गीत आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।

पुरस्कार: “परख” को 1960 में फिल्मफेयर अवार्ड्स में कई श्रेणियों में नामांकित किया गया था और इसने सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार भी जीता।

फिल्म का नाम: फिल्म का नाम “परख” इस बात को दर्शाता है कि किस प्रकार जीवन में ईमानदारी और सच्चाई की परख की जाती है। फिल्म का नाम ही इसके मुख्य संदेश को स्पष्ट करता है।

अभिनेता नजीर हुसैन का योगदान: नजीर हुसैन ने पोस्टमास्टर की भूमिका को इतने प्रभावशाली ढंग से निभाया कि यह उनकी सबसे यादगार भूमिकाओं में से एक मानी जाती है।

निष्कर्ष

“परख: जीवन की कसौटी, उम्मीदों का इम्तिहान” एक ऐसी फिल्म है जो न केवल मनोरंजन करती है बल्कि दर्शकों को गहरे संदेश भी देती है। यह फिल्म हमें सच्चाई, ईमानदारी और नैतिकता के महत्व को समझने पर मजबूर करती है। बिमल रॉय का निर्देशन, कलाकारों का शानदार अभिनय, और फिल्म का सुन्दर संगीत सभी ने मिलकर “परख” को एक क्लासिक फिल्म बना दिया है। अगर आपने यह फिल्म अभी तक नहीं देखी है, तो इसे जरूर देखें और जीवन की कसौटी और उम्मीदों के इम्तिहान का अनुभव करें।

Tags: 1960 की फिल्मेंक्लासिक हिंदी फिल्मनैतिकता और सच्चाईफिल्म समीक्षाबिमल रॉय
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