बलराज सहानी हिंदी सिनेमा का एक ऐसा नाम है जिसने अपनी अदाकारी से सभी के दिलों में एक पहचान कायम की और उन्होंने अपने जीवन में कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरुस्कार भी जीते। एक साधारण जीवन जीने वाले बलराज ने कामयाबी की वो बुलंदियां छुई, जो अविस्मरणीय हैं।
उनका जन्म रावलपिंडी के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनकी प्रसिद्धि एक अभिनेता के रूप में होने के साथ एक बहुत बेहतरीन लेखक के रूप में भी रही। 80 से ज्यादा बेहतरीन फिल्मे देने के साथ -साथ उन्होंने कई फिल्मो की पटकथा भी लिखी। बलराज साहनी का पैदाइश नाम युधिष्ठिर था।
Early Life – बलराज सहानी का असली नाम युधिष्ठर था और उनका जन्म 1 मई 1913 में रावलपिंडी , पंजाब में हुआ था। बचपन से ही युधिष्ठर बहुत बुद्धिमान थे और उन्होंने लाहौर विष्वविधालय से अंग्रेजी से मास्टर्स की डिग्री ली और उसके बाद वह वापस रावलपिंडी चले आये और अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गए। व्यवसाय के साथ -साथ युधिष्ठर ने हिंदी साहित्य में भी डिग्री हासिल कर ली।
शीघ्र ही उनका विवाह हो गया और उसके कुछ समय बाद युधिष्ठिर और पत्नी दमयंती को बंगाल के विश्व भारती विष्वविधालय में अंग्रेजी शिक्षक और हिंदी शिक्षक की नौकरी मिली और वह रावलपिंडी छोड़कर कलकत्ता आ गए। 1 वर्ष तक बलराज ने महात्मा गाँधी जी के साथ भी काम किया था और उसके बाद वह बीबीसी – लन्दन के रेडिओ में हिंदी सलाहकार के रूप में शामिल हुए और 4 वर्षों तक इंग्लैंड में रहे। 1943 में भारत आने के बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा में अभिनय की शुरुवात की।
Professional Life – बलराज सहानी को अभिनय में रूचि बचपन से ही थी और उन्होंने अपने अभिनय की शुरुवात इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) से की जहाँ पर उनकी पत्नी दमयंती पहले से ही एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के रूप में जानी जाती थी।
फ़िल्मी करियर की शुरुवात बलराज ने 1946 में आयी फिल्म इंसाफ से की थी और इस फिल्म में उन्हें एक संजीदा कलाकार के रूप में पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने 1946 में अपनी पत्नी दमयंती की पहली फिल्म “धरती के लाल ” में उनका साथ दिया।
इसके बाद बलराज का अभिनय करियर आगे ही बढ़ता चला गया और इस कड़ी में एक और बड़ी फिल्म जुडी “दो बीघा ज़मीन ” जो उन्होंने 1953 में की थी और इस फिल्म को कान्स फिल्म समारोह में अंतराष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला।
उन्होंने उस समय की सभी अभिनेत्रियों जैसे नूतन , मीना कुमारी ,वैजंतीमाला ,नरगिस के साथ कई हिट फिल्मों में काम किया। मगर उनको सबसे बड़ी पहचान 1965 में रिलीज़ वक्त फिल्म के गाने “ऐ मेरी ज़ोहरा जबीन , तुझे मालूम नहीं ” से मिली।
हिंदी के साथ -साथ बलराज ने पंजाबी क्लासिक फिल्म नानक दुखिया सब संसार (1970 ) में भी काम किया था। बलराज की गरम हवा उनके अभिनय की हर कसौटी पर खरी उतरी थी और सभी ने उनके इस अभिनय को सर्वश्रेष्ठ अभिनय माना। मगर रिकॉर्डिंग ख़त्म होते ही और रिलीजिंग से पहले ही बलराज साहनी की दिल का दौरा पड़ने से 13 अप्रैल 1973 को मृत्यु हो गयी थी।
Personal Life – बलराज सहानी ने दो विवाह किये थे पहला विवाह उनका दमयंती सहानी जो एक अभिनेत्री थी और उन्होंने बलराज के साथ गुड़िया और धरती के लाल में काम किया था और उनका विवाह बलराज से 1936 में हुआ था और उनकी मृत्यु 1947 में हो गयी थी।
इसके बाद बलराज ने 1949 में दूसरा विवाह संतोष के साथ किया, जो कि पेशे से एक लेखिका हैं और उनके 3 बच्चे (दो बेटे और एक बेटी ) हैं और पोते -पोतियां हैं। इसके अलावा बलराज को लिखने का बहुत शोक था और उन्होंने लेखक के तौर पर बहुत साड़ी पुस्तिकें भी लिखी है।
Films – “बाज़ी (1951 )”, “जलिया वाला बाग़ (1977 )”, “भाभी (1957 )”, कबुलीवाला (1961 )”, “गर्म हवा (1974 )”, “हिंदुस्तान की कसम (1973 )”, “प्यार का रिश्ता (1973 )”, “दामन और आग (1973 )”, “मँगेतर (1972 )”, “पराया धन (1971 )”, “पहचान (1970 )”, “मेरे हमसफ़र (1970 )”, “जस्टिस (1946 )”, “दूर चलें (1946 )”, “गुंजन (1948 )”, ” धरती के लाल (1950 )”, “मालदार (1951 )”, “हम लोग (1951 )”, “हलचल (1951 )”, बदनाम (1952 )”, “आकाश (1953 )”, “नौकरी (1954 )”, “औलाद (1954 )”, “ज़वाब (1955 )”, “कठपुतली (1957 )”,”परदेसी (1957 )”, लाल बत्ती (1957 )”, “दो रोटी (1957 )”, “छोटी बहन (1959 )”, सट्टा बाजार (1959 )”, “नयी माँ (1960 )”, “दिल भी तेरा हम भी तेरे (1960 )”,”सपने सुहाने (1961 )”,”मै भी लड़की हूँ (1964 )”
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