बूट पोलिश 1954 में बनीएक ऐसी पारिवारिक फिल्म थी, जो दो छोटे – छोटे बच्चों पर आधारित थी। यह फिल्म 24 मार्च को बॉलीवुड सिनेमा में रिलीज़ हुयी थी। इस फिल्म को उस वर्ष की बेस्ट फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवार्ड से नवाज़ा गया था। फिल्म का बेहद लोकप्रिय गीत ” नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है” आज भी स्कूलों में गया जाता है।
फिल्म के निर्देशक प्रकाश अरोरा ने फिल्म में भोला और बेलु , जो कि बेहद ही छोटे हैं , बड़ी संजीदगी से उनके जीवन का संघर्ष दिखाया है। इस फिल्म के जरिये ये भी सन्देश दिया है कि चाहे जीवन में किसी भी परिस्थितिया आ जाये मगर जीवन में लिए गए अपने प्रण और वादों को नहीं भूलना चाहिए।
Story –
फिल्म की कहानी शुरू होती है दो छोटे भाई -बहन भोला और बेलु से, जो अपनी माँ के मरने के बाद कमला मौसी के घर में शरण लेते हैं। इसके बाद शुरू होता है कमला का अत्याचार और वह बच्चों से कहती है कि अब से तुम दोनों भीख मांगकर लाओगे इसके बाद ही तुम्हे खाना मिलेगा। भोला और बेलु पड़ोस में रहने वाले जॉन चाचा के अधिक प्रिय होते हैं। जब उन्हें यह पता चलता है कि कमला ने भीख मांगने का कहा है तो वह दोनों बच्चों को समझाते हैं कि भीख नहीं मांगनी चाहिए बल्कि तुम दोनों को कुछ काम करना चाहिए।
दोनों बच्चे भोला और बेलु भविष्य में कभी भी भीख ना मांगने का प्रण लेते हैं। मगर शुरुवात में भीख मांगकर कुछ पैसे बचाकर रखते हैं और बहुत जल्द ही वह एक बूट पोलिश का किट खरीद लेते हैं। अब भोला बूट पोलिश करके अपना और अपनी बहन और कमला मौसी की जीविका को चलाता है। सब कुछ सही चल रहा होता है तभी बरसात का मौसम आ जाता है। और उस मौसम में बूट पोलिश कोई भी नहीं करवाता तो भोला की कमाई बंद हो जाती है फिर भी वह बहुत प्रयत्न करता है।
कमला मौसी दोनों को घर से बाहर निकल देती है। जॉन चाचा दोनों को पनाह देते हैं और जीविका के लिए शराब बेचने का फैसला लेते हैं। और कुछ दिनों बाद ही वह पुलिस द्वारा गिरफ्तार हो जाते हैं। अब भोला और बेलु दोनों अकेले रह जाते हैं। मगर फिर भी वह भीख नहीं मांगते और काम की तलाश में इधर उधर भटकते रहते हैं।
एक दिन बेलु को गलतफहमी हो जाती है कि भोला ने भीख मांगी है और वह अपने भाई को एक थप्पड़ मारती है। पुलिस दोनों को चोर समझकर पीछे पड़ जाती है । दोनों भागते हैं और बेलु एक खड़ी ट्रेन में बैठ जाती है। भोला को पुलिस पकड़ लेती है और बेलु ट्रेन चलने के कारण अपने भाई से बिछड़ जाती है। ट्रेन में बेलु को रोता देख एक अमीर परिवार उसको अपना लेता है और अपने साथ बेटी बनाकर घर ले जाता है।
भोला कुछ समय बाद जेल से छूटता है और बहन की खोज में इधर उधर भटकता रहता है मगर उसको बेलु नहीं मिलती। कुछ समय अनाथाश्रम में रहने के बाद वह वहां से भी भाग जाता है रेलवे स्टेशन में ही भटकता रहता है। और अंत में जाकर वह भीख मांगने के लिए रेलवे स्टेशन जाता है। भोला और बेलु का सामना होता है, बेलु अपने माता पिता के साथ छुट्टियां मनाने जा रही है। बेलु को सामने देखकर शर्मिंदगी से भोला भागने लगता है और बेलु उसके पीछे भगति है उसको रोकने के लिए। जॉन चाचा भी रेलवे स्टेशन पर दोनों को देख लेते हैं और उनके पीछे भागते हैं।
थोड़ी दूर भागते – भागते जॉन चाचा गिर जाते हैं तभी भोला रुक जाता है और दोनों भाई बहन फिर से मिल जाते है। और बेलु के माता पिता भोला को भी अडॉप्ट कर लेते हैं और सभी ख़ुशी से रहने लगते हैं।
Songs & Cast – फिल्म में संगीत शंकर जयकिशन ने दिया है और इनको लिखा है शैलेन्द्र, दीपक और हसरत जयपुरिया ने – “में बहारों की नटखट रानी, सारी दुनिया है मुझपे दीवानी”, “नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है”, “तुम्हारे हैं, तुमसे दया मांगते हैं”, “चली कौन देस गुजरिया तू सज धजके”, “ठहर ज़रा ओ जानेवाले, बाबू मिस्टर गोरे काले”, “रात गयी, फिर दिन आया है”, “लपक झपक तू आ रे बदरवा”
रतन कुमार और कुमारी नाज़ ने इस फिल्म में दो ऐसे छोटे भाई बहनो का किरदार निभाया है, जिन पर पूरी कहानी बेस्ड है। जॉन चाचा (डेविड अब्राहम), चंद बुर्के ने कमला देवी का किरदार निभाया है।
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 29 मिनट्स हैं।
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