खूबसूरत बॉलीवुड की एक कॉमेडी फिल्म है जिसका निर्देशन प्रसिद्ध निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी ने किया है। यह फिल्म 25 जनवरी 1980 को भारतीय सिनेमा में रिलीज़ हुयी। पहली बार रेखा को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था। इसमें उनके अभिनय की इतनी तारीफ हुयी किबहुत जल्द ही वह फ़िल्मी दुनिया का एक बड़ा सितारा बन गयी।
Story Line –
कहानी शुरू होती है एक परिवार से जहाँ पर निर्मला देवी नाम की महिला अपने पति द्वारकाप्रसाद गुप्ता और चार बच्चों के साथ रहती हैं। वह बहुत ही ज्यादा अनुशासित होती है और पूरे परिवार को अनुशासन में रखती हैं। उनके घर में अनुशासन का इतनी सख्ती से पालन होता है कि अगर कोई गलती से भी नियमों को तोड़ता है तो वह सजा का भागीदार होता है।
निर्मला देवी और द्वारकाप्रसाद गुप्ता अपने दूसरे बेटे के विवाह के लिए लड़कियां देखनी शुरू करते हैं। उन दोनों को एक लड़की अंजू बेहद पसंद आती है। अंजू शहर के एक अमीर आदमी राम दयाल की बेटी है और उसकी एक छोटी बहन मंजू बहुत ही चंचल और नटखट है। रिश्ता तय होता है और शादी करके अंजू अपने ससुराल चली जाती है। मगर मंजू का अंजू के बिना घर में मन ही नहीं लगता, वह अपनी बहन को बहुत याद करती रहती है।
कुछ समय बाद मंजू अपनी बहन अंजू के ससुराल में कुछ दिनों के लिए रहने आती है। मंजू को वहां आकर पता चलता है कि यहाँ का जीवा बिलकुल अलग है जैसा कि वह जीते हैं। यहाँ पर हर काम समय पर होता है। हर चीज़ को रखने की अपनी एक जगह भी तय होती है और आपको उसी जगह पर सब कुछ रखना होता है। आप अपने मन से कुछ भी नहीं कर सकते और ना ही कुछ सोच सकते।
यह माहौल मंजू को कैद जैसा लगता है। जहाँ पर मंजू अपने चंचल स्वाभाव से सभी के दिल में घर कर लेती है वहीँ पर निर्मला देवी उसको एक गैर ज़िम्मेदार इंसान समझती हैं। जो ना तो किसी की परवाह करती है और ना ही उसको किसी की कोई भी चिंता रहती है।
धीरे – धीरे सभी घरवाले मंजू की बातों को समझने लगते हैं और जो आज तक नियम चले आ रहे थे उनको वह सभी एक कैद समझने लगते हैं। इसी बीच अंजू का छोटा देवर इन्दर जो की एक डॉक्टर है मंजू को पसंद करने लगता है। मंजू की जिंदादिली सभी को पसंद आती है और वह द्वारका प्रसाद की बहुत जल्द ही लाड़ली बन जाती है।
एक दिन जब निर्मला देवी घर पर नहीं होती है तो वह निर्मला देवी के अत्याचार को उजागर करने वाला एक छोटा नाटक करती है। सभी नाटक का मज़ा ले रहे होते हैं उसी समय निर्मला देवी वहां आ जाती है और यह सब देख लेती है। यह सब देखकर वह आहत हो जाती है। क्योकि वह यह सब अपने परिवार की भलाई के लिए ही करती हैं मगर सभी को उनके बनाये गए नियम तानाशाही लगते हैं।
मंजू को अपनी गलती का अहसास होता है और वह निर्मला देवी से माफ़ी मांगती है मगर वह ना तो उसको माफ़ करती है और ना ही बात करती हैं। यह देखकर द्वारका प्रसाद अपनी पत्नी को समझने की बहुत कोशिश करते हैं मगर वह नहीं मानती। उसी समय पूरा परिवार किसी रिश्तेदार की शादी में शरीक होने के लिए शहर से बाहर जाते हैं। और घर पर मंजू, द्वारका प्रसाद और निर्मला देवी रह जाते हैं।
द्वारका प्रसाद निर्मला को समझने की फिर से कोशिश करते हैं मगर उनकी पत्नी के रूखे व्यव्हार से वह बहुत ही नाराज़ हो जाते हैं। और उन पर गुस्सा करने लगते हैं। गुस्सा करते – करते उनकी तबियत ख़राब हो जाती है और दिल का दौरा पड़ जाता है। निर्मला देवी बहुत घबरा जाती हैं मगर मंजू सही समय पर बेसिक इलाज करके डॉक्टर को बुलाती है और द्वारका प्रसाद का पूरा ध्यान दो दिनों तक रखती है।
पूरा परिवार दो दिन बाद घर आता है और जब उन्हें दिल के दौरे की बात पता चलती है तो सभी परेशां हो जाते हैं। इन दो दिनों में निर्मला देवी मंजू को बहुत अच्छी तरह से समझ पाती हैं कि मज़ाक मस्ती करने वाली मंजू पर जब जिम्मेदारियां आती हैं तो वह उन्हें बहुत अच्छे से निभाती हैं। उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है और वह अपने छोटे बेटे इन्दर का विवाह मंजू से तय कर देती हैं।
Songs & Cast –
इस बॉलीवुड सुपरहिट फिल्म का संगीत आर डी बर्मन ने दिया है और इनके गांव को आवाज़ आशा भोंसले, सपन चक्रवर्ती, रेखा और अशोक कुमार ने दिया है। इस फिल्म के गाने आज भी बेहद लोकप्रिय हैं जैसे – “सुन सुन सुन दीदी, तेरे लिए एक रिश्ता आया है ” , “क़ायदा क़ायदा”, “सरे नियम तोड़ दो, नियम पर चलना छोड़ दो “
इस फिल्म में रेखा ने एक चंचल और समझदार लड़की मंजू का किरदार निभाया है। अशोक कुमार ने द्वारका प्रसाद को और दीना पाठक ने निर्मला देवी को बहुत ही सहजता से सभी के सामने प्रस्तुत किया है। मंजू के प्रेमी इन्दर के रूप में हमें राकेश रोशन दिखे। बाकि सभी ककारों ने अपने अपने चरित्र को बेहद संजीदगी से निभाया है।
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