• About
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
Tuesday, October 14, 2025
  • Login
Movie Nurture
  • Bollywood
  • Hollywood
  • Indian Cinema
    • Kannada
    • Telugu
    • Tamil
    • Malayalam
    • Bengali
    • Gujarati
  • Kids Zone
  • International Films
    • Korean
  • Super Star
  • Decade
    • 1920
    • 1930
    • 1940
    • 1950
    • 1960
    • 1970
  • Behind the Scenes
  • Genre
    • Action
    • Comedy
    • Drama
    • Epic
    • Horror
    • Inspirational
    • Romentic
No Result
View All Result
  • Bollywood
  • Hollywood
  • Indian Cinema
    • Kannada
    • Telugu
    • Tamil
    • Malayalam
    • Bengali
    • Gujarati
  • Kids Zone
  • International Films
    • Korean
  • Super Star
  • Decade
    • 1920
    • 1930
    • 1940
    • 1950
    • 1960
    • 1970
  • Behind the Scenes
  • Genre
    • Action
    • Comedy
    • Drama
    • Epic
    • Horror
    • Inspirational
    • Romentic
No Result
View All Result
Movie Nurture
No Result
View All Result
Home 1940

Late Spring: ओज़ू की वो फिल्म जो दिल के किसी कोने में घर कर जाती है

खामोशी, रिश्तों की गहराई और विदा की मीठी कड़वाहट को ओज़ू ने जिस सादगी से परदे पर उतारा, वह सीधे दिल को छू जाती है।

Sonaley Jain by Sonaley Jain
July 11, 2025
in 1940, Films, Hindi, International Films, Movie Review, old Films, Top Stories
0
Movie Nurture: LAte Spring
0
SHARES
6
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

कल्पना कीजिए एक ऐसी फिल्म जिसमें कोई भीषण एक्शन नहीं, कोई जोरदार ड्रामा नहीं, कोई भावुक भाषण नहीं। बस जीवन है। रोज़मर्रा की साधारण सी लगने वाली घटनाएँ: चाय पीना, साइकिल चलाना, कमरे में बैठकर बातें करना, किसी शादी में जाना। पर इन्हीं साधारण पलों के बीच, धीरे-धीरे, एक ऐसा भावनात्मक भूचाल आता है जो आपको अंदर तक हिलाकर रख देता है। यही है यासुजिरो ओज़ू की 1949 की कालजयी कृति, ‘Late Spring’ (Banshun / 晩春)। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं; यह जीवन के कटु-मधुर सत्य का एक ऐसा चित्रण है जो अपनी सादगी में भी अथाह गहराई रखता है, और देखने के बाद लंबे समय तक आपके मन-मस्तिष्क में गूंजता रहता है।

पृष्ठभूमि: युद्ध के बाद के जापान में एक सांस

फिल्म 1949 में आई, द्वितीय विश्व युद्ध की भयावह तबाही के ठीक बाद। जापान खंडहरों से उबर रहा था, पारंपरिक मूल्य और आधुनिकता के बीच संघर्ष चल रहा था। ओज़ू, जो खुद युद्ध के अनुभव से गुजरे थे, ने इस फिल्म में उस उथल-पुथल को सीधे तौर पर नहीं, बल्कि एक परिवार के बेहद निजी, शांत संघर्ष के जरिए पकड़ा है। यह युद्धोत्तर जापान के मानसिक लैंडस्केप का एक नाजुक, बेहद संवेदनशील चित्र है। यहाँ कोई भी चीखता-गरजता नहीं; दर्द भी एक गहरी चुप्पी में समाया हुआ है।

Movie Nurture: Late Spring

कहानी का सार: पिता की चिंता, बेटी का प्रेम, और समाज का दबाव

कहानी सरल है, लेकिन उसकी परतें अनंत हैं। प्रोफेसर शुकिची सोमिया (चिशू रयू) विधुर हैं और अपनी बेटी नोरिको (सेत्सुको हारा) के साथ शांत, सुखद जीवन जी रहे हैं। नोरिको उम्र में काफी हो चुकी है (तब के हिसाब से), लेकिन शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती। वह पिता के साथ रहने में पूरी तरह संतुष्ट और खुश लगती है। उसकी चाची मासा (हारुको सुगिमुरा) और पिता के एक दोस्त, प्रोफेसर ओनोदेरा, उसे समझाते हैं कि उसे शादी कर लेनी चाहिए, यहाँ तक कि पिता के लिए भी यही अच्छा होगा। शुकिची, जो नोरिको से बेहद प्यार करते हैं, आखिरकार इस दबाव के आगे झुक जाते हैं। वे नोरिको को बताते हैं कि वे खुद दूसरी शादी करने वाले हैं (जो सच नहीं है), ताकि नोरिको को लगे कि अब उसके रहने की जगह नहीं रही और वह एक सुझाए गए रिश्ते (सातारो, एक युवक जिससे नोरिको की कोई खास लगाव नहीं) को स्वीकार कर ले। नोरिको, जिसका पिता के प्रति प्रेम और लगाव गहरा और शुद्ध है, इस “छल” के बाद दिल टूटकर शादी के लिए हाँ कर देती है। फिल्म का क्लाइमेक्स नोरिको की शादी और उसके बाद पिता के अकेलेपन में है।

ओज़ू की कला: साधारण में छिपा असाधारण

‘देर से आई बहार’ की महानता उसकी कहानी में नहीं, बल्कि उसे कहने के ढंग में है। ओज़ू एक सच्चे कवि हैं, जो दृश्यों और शब्दों का इस्तेमाल बेहद कंजूसी से, पर असरदार तरीके से करते हैं।

  1. “तातामी” शॉट्स (Tatami Shots): ओज़ू का सबसे पहचाना हुआ अंदाज। कैमरा अक्सर जमीन के बेहद करीब, जापानी तातामी मैट के लेवल पर रखा जाता है। यह दर्शक को घर के भीतर बैठे एक मेहमान की तरह महसूस कराता है। यह दृष्टिकोण शांति, स्थिरता और रोज़मर्रा की घरेलू दुनिया के प्रति सम्मान दर्शाता है।

  2. “पिलर शॉट्स” और फ्रेमिंग: ओज़ू फ्रेम में दरवाज़ों, खिड़कियों, स्क्रीन्स और यहाँ तक कि फर्नीचर के पिलर्स का बड़ी सूझ-बूझ से इस्तेमाल करते हैं। ये चीज़ें अक्सर पात्रों को आंशिक रूप से ढक लेती हैं, जैसे उनकी भावनाएँ या उनके बीच की दूरी दर्शाने के लिए। यह एक तरह की दृश्य कविता है।

  3. गहरी चुप्पी और साधारण संवाद: संवाद बेहद साधारण हैं – मौसम, खाना, रोज़ के काम। पर इन संवादों के बीच की चुप्पी ही असली कहानी कहती है। नोरिको की आँखों में छिपा दर्द, शुकिची के चेहरे पर आई झुर्रियों में समाई चिंता – ये सब शब्दों से कहीं ज्यादा बोलते हैं। ओज़ू समझते हैं कि कभी-कभी सबसे गहरी भावनाएँ अनकही रह जाती हैं।

  4. प्रतीकों का खेल: फिल्म प्रतीकों से भरी है:

    • नोरिको की साइकिल: उसकी आजादी और युवा ऊर्जा का प्रतीक। शादी के फैसले के बाद वह इसे बेच देती है – एक तरह से उस आजादी का समर्पण।

    • क्योटो की यात्रा: पिता-बेटी की आखिरी साझा यात्रा। प्राचीन मंदिरों और शांत वातावरण में उनके रिश्ते की सुंदरता और आने वाले विछोह की छाया दोनों दिखाई देते हैं। जिस पल में नोरिको समुद्र को देखकर कहती है, “यह बहुत सुंदर है,” वह पल एक अद्भुत शांति और आसन्न विदाई के दर्द का मिश्रण है।

    • शादी के बाद पिता द्वारा सेब छीलना: फिल्म का अंतिम दृश्य। अकेले घर लौटे शुकिची एक सेब छीलते हैं। छिलका धीरे-धीरे नीचे गिरता है। यह दृश्य अकेलेपन, खालीपन और जीवन के निरंतर चलते रहने का इतना मार्मिक और शक्तिशाली प्रतीक है कि शब्द कम पड़ जाते हैं। यह सिनेमा के इतिहास के सबसे यादगार अंतों में से एक है।

Movie Nurture: Late Spring

अभिनय: सेत्सुको हारा का अमर प्रदर्शन

‘Late Spring’ सेत्सुको हारा के कैरियर की एक ऊँचाई है। उन्हें “सदाबहार विरगिन” (Eternal Virgin) का टैग मिला, और यह भूमिका बताती है क्यों। नोरिको की भूमिका में हारा एक अद्भुत विरोधाभास पेश करती हैं। वह बाहर से चमकदार मुस्कान, उत्साह और आज्ञाकारिता दिखाती हैं – पारंपरिक जापानी महिला का आदर्श रूप। पर उनकी आँखों में, उनकी मुस्कान के पीछे, एक गहरा दर्द, एक आशंका और पिता के प्रति अगाध प्रेम झलकता रहता है। जब वह पिता की “दूसरी शादी” की बात सुनती हैं, तो उनके चेहरे पर आया झटका और टूटन बिना शोर मचाए दिल दहला देती है। उनका अभिनय सूक्ष्म, नियंत्रित और इसलिए अविस्मरणीय है। चिशू रयू, ओज़ू के अक्सर सहयोगी, पिता की भूमिका में पूरी गरिमा और दबी हुई भावनाओं के साथ खरे उतरते हैं। उनका चेहरा एक ऐसी किताब है जिसके हर पन्ने पर पितृत्व का प्यार और त्याग लिखा है।

विषय: त्याग, कर्तव्य और बदलाव का दर्द

फिल्म कई गहन विषयों को छूती है:

  1. पारिवारिक प्रेम बनाम सामाजिक अपेक्षाएँ: शुकिची और नोरिको का प्रेम सच्चा और गहरा है। पर समाज (चाची, पारिवारिक मित्र) उन पर दबाव डालता है कि नोरिको की शादी होनी चाहिए, भले ही वह खुश न हो। पिता अपनी खुशी (बेटी का साथ) का त्याग करता है क्योंकि वह मानता है कि यह बेटी के भले के लिए है। यह त्याग का एक कटुतम रूप है।

  2. पारंपरिक मूल्यों का बोझ: फिल्म जापानी समाज में ओमोटेनाशी (Omotenashi – अतिथि सत्कार) और गिरी (Giri – सामाजिक कर्तव्य/ऋण) के बोझ को दर्शाती है। नोरिको को अपनी इच्छा दबाकर सामाजिक मानदंडों के आगे झुकना पड़ता है। उसकी शादी उसकी निजी खुशी के लिए नहीं, बल्कि एक सामाजिक अनिवार्यता के रूप में होती है।

  3. बदलाव की अनिवार्यता और उसका दर्द: फिल्म का शीर्षक ‘Late Spring’ ही एक प्रतीक है। नोरिको का विवाह जीवन के एक चरण (कुंवारापन) के अंत और दूसरे (विवाहित जीवन) की शुरुआत का प्रतीक है, जैसे देर से आई बहार गर्मियों का संकेत देती है। यह बदलाव सुंदर भी है और दर्दनाक भी। पिता और बेटी दोनों को इस बदलाव की कीमत चुकानी पड़ती है।

  4. माता-पिता और बच्चों का रिश्ता: फिल्म माता-पिता के उस सार्वभौमिक दर्द को छूती है जब उन्हें अपने बच्चों को जाने देना पड़ता है, यह जानते हुए भी कि यही जीवन का नियम है। शुकिची का अकेलापन इसी दुख की अभिव्यक्ति है।

Movie Nurture: Yasujirō Ozu films

क्यों देखें? एक कालजयी अनुभव

‘Laate Spring’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है; यह एक ध्यान की अवस्था है। यह आपको धीमा करने, विवरणों पर गौर करने और उन भावनाओं को महसूस करने के लिए मजबूर करती है जो अक्सर शोर-शराबे में दब जाती हैं। ओज़ू हमें दिखाते हैं कि सच्चा ड्रामा चीखने-गरजने में नहीं, बल्कि एक टूटी हुई मुस्कान में, एक लंबी चुप्पी में, या एक अकेले आदमी द्वारा छीले जा रहे सेब में भी हो सकता है।

यह फिल्म उन लोगों के लिए है जो सिनेमा की शक्ति में विश्वास रखते हैं। जो समझते हैं कि कैसे एक कुशल निर्देशक बिना किसी भड़कीलेपन के भी दर्शक के दिल तक पहुँच सकता है। यह उनके लिए है जो परिवार, प्रेम, त्याग और समय के बीतने के सुख-दुख को महसूस कर सकते हैं।

अंतिम शब्द:

‘Late Spring’ देखकर ऐसा लगता है जैसे आपने कोई उपन्यास नहीं, बल्कि जीवन का एक हिस्सा देख लिया हो। यह फिल्म आपको रुलाती नहीं, बल्कि आपके भीतर एक गहरी उदासी भर देती है, जो किसी सुंदर याद की तरह आपके साथ लंबे समय तक रहती है। सेत्सुको हारा की वो मुस्कान, चिशू रयू की वो उदास आँखें, और वो अकेला छिलता हुआ सेब – ये सब मिलकर एक ऐसा अनुभव बनाते हैं जो सिनेमा की शक्ति का एक उज्ज्वल उदाहरण है। ओज़ू ने कहा था कि वे “साधारण लोगों के साधारण जीवन” की कहानियाँ कहना चाहते थे। ‘देर से आई बहार’ में उन्होंने साधारण को असाधारण बना दिया। यह फिल्म मानवीय भावनाओं का एक शांत, पर अमर गीत है, जो हर पीढ़ी को छूता रहेगा। इसे देखिए, और अपने भीतर उस शांत गूंज को महसूस कीजिए जो लंबे समय तक आपका साथ निभाएगी। यह सिर्फ फिल्म नहीं, जीवन का एक टुकड़ा है।

Tags: Classic Japanese DramaEmotionally Powerful MoviesGolden Era of Japanese CinemaJapanese Classic CinemaLate Spring MovieYasujirō Ozu Filmsदिल को छू जाने वाली फिल्में
Previous Post

इन गानों को ना भूल पाये हम – ना भूल पायेगी Bollywood!

Next Post

जब तक फिल्म चुप थी, लोग दूर थे…जब बोली, सबके दिल से जुड़ गई!

Next Post
Movie Nurture: जब तक फिल्म चुप थी, लोग दूर थे...जब बोली, सबके दिल से जुड़ गई!

जब तक फिल्म चुप थी, लोग दूर थे...जब बोली, सबके दिल से जुड़ गई!

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Facebook Twitter

© 2020 Movie Nurture

No Result
View All Result
  • About
  • CONTENT BOXES
    • Responsive Magazine
  • Disclaimer
  • Home
  • Home Page
  • Magazine Blog and Articles
  • Privacy Policy

© 2020 Movie Nurture

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In
Copyright @2020 | Movie Nurture.