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नर्क का नृत्य: ‘सक्कुबस’ (1968) – स्पेन की वह अजीबो-ग़रीब हॉरर फिल्म जो आपको झकझोर देगी

जहां भय कल्पना नहीं, बल्कि शरीर और आत्मा की अजीब यातना बन जाता है — एक फिल्म जो डर की परिभाषा ही बदल देती है।

Sonaley Jain by Sonaley Jain
August 7, 2025
in Horror, 1960, Films, Hindi, International Films, Movie Review, old Films, Top Stories
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Movie Nurture:'सक्कुबस' (1968)
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सोचिए… एक अँधेरा थिएटर। स्क्रीन पर लाल रंग के पर्दे फड़फड़ाते हैं। एक ख़ूबसूरत औरत, लोर्ना, मंच पर है। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक, चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान। वह गाने लगती है, लेकिन उसकी आवाज़ में जादू नहीं, एक अजीब सी डरावनी घुटन है। फिर वह नाचने लगती है – यह नृत्य आकर्षक नहीं, बल्कि परेशान कर देने वाला है। अचानक, दृश्य बदलता है। लोर्ना एक अजनबी आदमी के साथ एक अंधेरे कमरे में है। प्यार की बातें होती हैं,  और फिर… एक चाकू चमकता है। ख़ून बहता है। लोर्ना की आँखों में डर नहीं, बल्कि एक अजीब सी तृप्ति है। यही है ‘सक्कुबस’ (Succubus, 1968) की शुरुआत – स्पेनिश सिनेमा के विवादास्पद बादशाह जेस फ्रैंको (Jess Franco) की वह साइकोडेलिक, इरोटिक हॉरर फिल्म जो आपको सीधे एक अजीब से सपने या बुरे नशे में धकेल देती है। यह फिल्म सिर्फ डराने नहीं आती, बल्कि आपकी समझ और संवेदनाओं पर हमला करती है। आइए, उतरते हैं इस 1968 european erotic horror फिल्म की अंधेरी, टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में, जहाँ वास्तविकता और कल्पना और हिंसा का अजीबोगरीब मेलजोल है।

पृष्ठभूमि: फ्रैंको का जादुई-अंधेरा संसार

1968। यूरोप में सिनेमा उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा था। पुराने नियम टूट रहे थे। हॉरर सिर्फ गॉथिक महलों और पिशाचों तक सीमित नहीं रहा। मनोवैज्ञानिक भय का अंधेरा पहलू, और सपनों जैसी सरंचना ने जगह बनानी शुरू कर दी थी। और फिर था जेस फ्रैंको – एक ऐसा डायरेक्टर जिसने सस्ते बजट, तेज़ी से शूटिंग और अविश्वसनीय रचनात्मकता के साथ सैकड़ों फिल्में बनाईं। फ्रैंको की दुनिया अक्सर डार्क,  जैज़ संगीत से भरी और अस्त-व्यस्त कैमरा वर्क वाली होती थी। वह सीमाओं को तोड़ने, दर्शक को असहज करने में विश्वास रखते थे। ‘सक्कुबस’ (जिसे जर्मनी में ‘Necronomicon – Geträumte Sünden’ के नाम से भी जाना जाता है) उनकी इसी अजीबोगरीब और विशिष्ट शैली का एक उत्कृष्ट (या भयानक, आपके नज़रिए पर निर्भर करता है) उदाहरण है। यह फिल्म सिर्फ एक स्पेनिश हॉरर मूवी नहीं है; यह जेस फ्रैंको के दिमाग़ की एक सीधी झलक है।

MOvie Nurture:जेनिन रेनॉड

कहानी? या एक डरावना सपना? (Succubus Movie Story in Hindi)

‘सक्कुबस’ की कहानी को रैखिक (Linear) तरीके से समझ पाना मुश्किल है। यह एक साइकोडेलिक ट्रिप की तरह है, जहाँ वास्तविकता, सपने, यादें और कल्पना आपस में इस कदर घुलमिल जाती हैं कि पता ही नहीं चलता कि क्या सच है और क्या नहीं। फिर भी, कोशिश करते हैं Succubus फिल्म का मतलब और ending तक पहुँचने के लिए मोटे तौर पर समझने की:

  1. लोर्ना: स्ट्रिपर या शैतान?: फिल्म की नायिका (या खलनायिका?) लोर्ना है। वह बर्लिन में एक नाइटक्लब की स्टार परफॉर्मर है। उसका शो अजीबोगरीब, डरावना है। उसके आसपास के लोग – उसका प्रेमी/मैनेजर लेव (Jack Taylor), उसका थेरेपिस्ट डॉक्टर (Howard Vernon), एक रहस्यमयी अजनबी (Michel Lemoine) – सब उस पर किसी न किसी तरह का नियंत्रण चाहते हैं या उसके राज़ जानना चाहते हैं।

  2. हिंसक यादें और अजीब सपने: लोर्ना को बार-बार डरावने सपने और फ़्लैशबैक आते हैं। इनमें वह खुद को अलग-अलग पुरुषों के साथ देखती है – कभी प्यार करते हुए, कभी उन्हें प्रताड़ित करते हुए, कभी उनकी हत्या करते हुए। क्या ये उसके अतीत की वास्तविक घटनाएँ हैं? क्या वह एक सीरियल किलर है? या फिर ये उसके मन की टूटन और अपराधबोध की अभिव्यक्ति हैं?

  3. सक्कुबस का भूत: लोर्ना को संदेह होने लगता है कि वह खुद एक सक्कुबस है – पौराणिक कथा की वह दानव स्त्री जो पुरुषों के सपनों में आकर उनकी जीवन ऊर्जा (वीर्य/जीवनशक्ति) चूसकर उन्हें मौत के घाट उतार देती है। क्या यह उसकी कल्पना है? या फिर वह सचमुच एक अलौकिक शक्ति है? फिल्म कभी सीधे जवाब नहीं देती।

  4. मर्दों का दम घुटना: लोर्ना के संपर्क में आने वाले पुरुषों का अजीब ढंग से दम घुटने लगता है या वे मरने लगते हैं। क्या यह संयोग है? लोर्ना की काली जादू? या फिर सक्कुबस की शक्तियों का असर?

  5. अस्पष्ट संबंध और विश्वासघात: लोर्ना का अपने आसपास के लोगों से रिश्ता जटिल और विषैला है। वह उन पर शक करती है, उन्हें प्रताड़ित करती है, और कभी-कभी उन्हें मार भी देती है। उनका भी उस पर नियंत्रण पाने की कोशिश जारी रहती है। यह एक दुष्चक्र है।

  6. अंत की ओर…: फिल्म एक रहस्यमयी जगह पर जाकर ख़त्म होती है, जहाँ लोर्ना को एक अजीब सी ‘टेस्ट’ या ‘दीक्षा’ से गुजरना पड़ता है। वहाँ उसके अतीत के पुरुष दिखाई देते हैं। अंत में, वह एक बंद कमरे में फँसी दिखती है, उसके चेहरे पर एक अजीब सी अभिव्यक्ति – क्या यह मुक्ति है? क्या यह उसकी सज़ा है? क्या यह सब उसके दिमाग़ का खेल था? (यह हम Succubus फिल्म का मतलब और ending पर आगे चर्चा करेंगे)।

Movie Nurture: Succubus 1968

फ्रैंको की शैली: कैमरा, संगीत और माहौल का जादू (या अंधेरा?)

‘सक्कुबस’ को समझने के लिए उसकी कहानी से ज़्यादा ज़रूरी है उसकी शैली। यहीं जेस फ्रैंको की असली पहचान है और यही इस जेस फ्रैंको मूवी एनालिसिस हिंदी का मुख्य आधार है:

  1. हाथ में थामा कैमरा और ज़ूम का भूत: फ्रैंको अक्सर खुद कैमरा संभालते थे। यहाँ उनका कैमरा वर्क बेहद अस्थिर है। कैमरा हिलता रहता है, अचानक ज़ूम इन और ज़ूम आउट होता है (कभी-कभी बहुत तेज़ी से), फोकस धुंधला हो जाता है। यह अस्थिरता दर्शक को चक्कर जैसा महसूस कराती है, लोर्ना की टूटी हुई मानसिक स्थिति और फिल्म के सपनों जैसे माहौल को बढ़ाती है। ऐसा लगता है जैसे हम लोर्ना के दिमाग़ के अंदर घूम रहे हैं। यह तकनीकी “कमी” फिल्म को एक अजीब सी प्रामाणिकता और डिसओरिएंटिंग प्रभाव देती है।

  2. जैज़: नर्क का संगीत: फिल्म का संगीत (जर्मन जैज़ संगीतकार जेरी वैन रोयेन द्वारा) बेहद महत्वपूर्ण है। यह मूडी, डरावना और कभी-कभी पूरी तरह से बेमेल लगने वाला है। तेज़ सैक्सोफोन सोलो, भारी ड्रम बीट्स और अजीबोगरीब इलेक्ट्रॉनिक साउंड्स पूरे वातावरण को भर देते हैं। संगीत कभी तनाव पैदा करता है, तो कभी पूरी तरह से परेशान कर देता है। यह लोर्ना की अंदरूनी अराजकता का साउंडट्रैक है।

  3. रंग और रोशनी का खेल: फिल्म का रंग पैलेट गहरा और अक्सर एक्सप्रेसिव है। गहरा लाल (ख़ून,  ख़तरा), काला (रहस्य, मृत्यु), और हरा (बीमारी, अलौकिकता) प्रमुख हैं। रोशनी का इस्तेमाल नाटकीय ढंग से किया गया है – चेहरों पर तेज़ स्पॉटलाइट्स, गहरी छायाएँ, अंधेरे कमरों में टिमटिमाती रोशनी। यह विज़ुअल भाषा फिल्म के मनोवैज्ञानिक और अलौकिक तत्वों को बल देती है।

  4.  हिंसा का अजीब मेल: फ्रैंको ने कभी भी हिंसा से परहेज नहीं किया। ‘सक्कुबस’ में भी हिंसक दृश्य (चाकूघोंप, दम घुटना) हैं। लेकिन यहाँ ये दृश्य सस्ते थ्रिल के लिए नहीं हैं। उनका इस्तेमाल लोर्ना की शक्ति, उसकी टूटन, उसके डर और उसके अंदर के अंधेरे को दिखाने के लिए किया गया है। यौनिकता यहाँ प्यार या आनंद से जुड़ी नहीं, बल्कि नियंत्रण, हिंसा और विनाश से जुड़ी है – जो सक्कुबस की पौराणिक प्रकृति के अनुरूप है। यही इस 1968 european erotic horror फिल्म को विशिष्ट बनाता है।

  5. अरैखिक संरचना: फिल्म सीधी कहानी नहीं कहती। यह सपनों, फ़्लैशबैक्स, वर्तमान दृश्यों और अजीब दृश्यात्मक प्रतीकों (जैसे लाल पर्दे, साँप, आँखें) के बीच कूदती रहती है। यह दर्शक को भ्रमित करने के लिए नहीं, बल्कि लोर्ना की अस्त-व्यस्त मानसिक दुनिया में शामिल करने के लिए है। आपको पूरा ध्यान देना होगा, और फिर भी शायद आप पूरी तरह न समझ पाएँ।

जेनिन रेनॉड: फ्रैंको की म्यूज़ और सक्कुबस की आत्मा

‘सक्कुबस’ कोई स्टार-ड्रिवेन फिल्म नहीं है, लेकिन जेनिन रेनॉड का प्रदर्शन इसकी धड़कन है। फ्रैंको की जीवनसाथी और म्यूज़, जेनिन  यहाँ सिर्फ़ खूबसूरत चेहरा नहीं हैं। वह लिंडा के किरदार में एक अविश्वसनीय रहस्य और ख़तरा भर देती हैं। उनकी आँखें आकर्षित करती हैं और डराती भी हैं। वह कामुकता और निर्दयता, भेद्यता और शक्ति के बीच आसानी से घूमती हैं। उनके चेहरे के भाव बहुत कम बदलते हैं, लेकिन जब बदलते हैं, तो चौंका देते हैं। वह बिना ज़्यादा बोले, अपने शारीरिक अभिनय (विशेषकर उस अजीबोगरीब डांस के दौरान) और नज़रों से ही पूरी कहानी कह देती हैं। रोमे का लिंडा एक ऐसा किरदार है जिसे आप भूल नहीं पाएँगे – वह आपको परेशान करेगी, आकर्षित करेगी और डराएगी। वही इस स्पेनिश हॉरर मूवी succubus रिव्यू का केंद्रबिंदु है।

Movie Nurture: Succubus 1968

व्याख्या के घेरे: Succubus फिल्म का मतलब और Ending का रहस्य

फिल्म का अंत, और वास्तव में पूरी फिल्म, व्याख्या के लिए खुली है। यही इसकी सुंदरता (या निराशा) है। यहाँ कुछ प्रमुख व्याख्याएँ हैं:

  1. मानसिक बीमारी की कहानी: सबसे सीधी व्याख्या। लोर्ना गंभीर मानसिक बीमारी (शायद सिज़ोफ्रेनिया, गंभीर डिस्सोसिएशन, या ट्रॉमा से उपजा विकार) से ग्रस्त है। उसके सपने, हिंसक फ़्लैशबैक्स और सक्कुबस होने का भ्रम उसकी बीमारी के लक्षण हैं। उसके आसपास के पुरुषों की मौतें संयोग या उसकी हिंसक प्रवृत्ति के कारण हो सकती हैं। अंत में वह पूरी तरह अपनी मानसिक दुनिया में खो जाती है (वह बंद कमरा), जो उसकी वास्तविक सज़ा है। Succubus फिल्म का मतलब यहाँ एक रूपक है – वह खुद को एक ऐसी शक्ति मानती है जो पुरुषों को नष्ट करती है, जबकि वास्तव में वह अपने अंदर के अंधेरे और टूटन से लड़ रही है।

  2. वास्तविक सक्कुबस: शाब्दिक व्याख्या। लोर्ना वास्तव में एक अलौकिक सक्कुबस है। उसका क्लब में परफॉर्म करना, पुरुषों को लुभाना और उनकी जीवन शक्ति चूसना उसकी वास्तविक प्रकृति है। फिल्म के दृश्य उसके असली कारनामों और शिकार की प्रक्रिया को दिखाते हैं। अंत में वह जिस रहस्यमयी जगह पर है, वह नर्क या उसके जैसे अन्य दानवों का आयाम हो सकता है। वह ‘टेस्ट’ पास कर चुकी है और अब अपनी असली शक्तियों के साथ स्वीकार कर ली गई है। यह व्याख्या फिल्म के अलौकिक तत्वों और उसके शीर्षक को सीधे समर्थन देती है।

  3. पुरुष डर और स्त्री शक्ति का प्रतीक: एक फ़ेमिनिस्ट व्याख्या। लोर्ना पुरुषों द्वारा प्रताड़ित, नियंत्रित और भोग की वस्तु बनाई गई एक स्त्री का प्रतीक है। उसका ‘सक्कुबस’ बनना एक आंतरिक क्रांति है – वह उन्हीं हथियारों ( हिंसा) से पलटवार करती है जिनसे उसे कुचला गया। वह पितृसत्तात्मक व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक विकृत बदला लेती है। अंत उसकी मुक्ति या फिर उस प्रणाली द्वारा उसे फिर से कैद कर लेने का संकेत हो सकता है। फिल्म स्त्री कामुकता के ख़तरे से पुरुषों के डर को भी दर्शाती है।

  4. कलाकार की यातना: एक मेटा-व्याख्या। लोर्ना एक परफॉर्मर है। क्या पूरी फिल्म उसके शो का हिस्सा है? क्या उसके आसपास के लोग (लेव, डॉक्टर, अजनबी) दर्शक या उसके प्रबंधक हैं जो उसे एक खास इमेज में रखना चाहते हैं? क्या उसकी हिंसक कल्पनाएँ उसके किरदार में डूब जाने का परिणाम हैं? अंतिम दृश्य, जहाँ वह बंद कमरे में है, शायद मंच के पीछे का हिस्सा है, जहाँ कलाकार अपने असली जीवन से अलग हो जाता है।

  5. फ्रैंको का सिनेमाई खेल: सबसे सरल व्याख्या। जेस फ्रैंको ने एक डरावनी और अजीबोगरीब अनुभव बनाने के लिए जानबूझकर एक रहस्यमयी, अरैखिक कहानी गढ़ी। इसका कोई एक ‘मतलब’ नहीं है। इसका उद्देश्य दर्शक को भ्रमित करना,  डराना और एक अजीब से सपने जैसी दुनिया में डुबो देना है। अंत भी उसी भावना को बनाए रखता है – कोई साफ़ जवाब नहीं, बस एक अजीब सी भावना।

विरासत और प्रभाव: एक कल्ट क्लासिक

अपने रिलीज़ के समय ‘सक्कुबस’ ने शायद बॉक्स ऑफिस नहीं तोड़ा होगा, और आलोचकों ने इसे अश्लील या अराजक बताया होगा। लेकिन समय के साथ, यह फिल्म एक सच्ची कल्ट क्लासिक बन गई है। क्यों?

  • फ्रैंको की शैली का शिखर: यह फ्रैंको की सबसे महत्वाकांक्षी और शैलीगत रूप से सुसंगत फिल्मों में से एक मानी जाती है। कैमरा वर्क, संगीत, माहौल और रोमे का प्रदर्शन मिलकर एक अविस्मरणीय (हालाँकि अजीब) अनुभव बनाते हैं।

  • यूरोपीय अर्ली इरोटिक हॉरर का मील का पत्थर: यह उस दौर की एक प्रमुख फिल्म है जब यूरोपीय हॉरर सस्ते पिशाच किस्सों से आगे बढ़कर मनोवैज्ञानिक, कामुक और कलात्मक रूप से जोखिम भरे प्रयोग कर रहा था।

  • जेनिन रेनॉड का आइकॉनिक किरदार: लोर्ना का किरदार और जेनिन रेनॉड का उसे जीवंत करना यूरोपीय सिनेमा में स्त्री हॉरर आइकॉन में शुमार हो गया है।

  • रहस्य और बहस: फिल्म की खुली समाप्ति और व्याख्या के लिए उपलब्ध कई कोण इसे चर्चा और विश्लेषण का विषय बनाए रखते हैं। हर देखने वाला अपना अर्थ निकालता है।

MOvie Nurture: Succubus 1960

निष्कर्ष: क्या देखने लायक है? (Succubus 1968 फिल्म समीक्षा हिंदी का सार)

‘सक्कुबस’ एक आसान फिल्म नहीं है। यह परेशान करती है, भ्रमित करती है, और कभी-कभी ऊब भी पैदा कर सकती है। यह पारंपरिक हॉरर की तरह जंप स्केयर या स्पष्ट राक्षस नहीं देती। यह आपको एक अजीब सी मानसिक बेचैनी देती है। यह एक साइकोडेलिक, इरोटिक नाइटमेयर है।

अगर आप चाहते हैं:

  • एक सीधी, रोमांचक कहानी

  • पारंपरिक डर

  • उच्च बजट का प्रोडक्शन

  • स्पष्ट समाधान या अर्थ

तो ‘सक्कुबस’ आपके लिए नहीं है।

लेकिन अगर आप तैयार हैं:

  • जेस फ्रैंको की अद्वितीय (और विभाजनकारी) शैली में डूबने के लिए

  • एक ऐसी फिल्म का अनुभव करने के लिए जो एक डरावने, कामुक सपने जैसी है

  • जेनिन रेनॉड के आकर्षक और डरावने प्रदर्शन को देखने के लिए

  • जैज़, अस्थिर कैमरा और सपनों जैसी संरचना से बने वातावरण में खो जाने के लिए

  • एक ऐसी फिल्म देखने के लिए जिसके बारे में घंटों बहस हो सकती है कि इसका Succubus फिल्म का मतलब और ending क्या था

तो ‘सक्कुबस’ (1968) एक अवश्य देखने योग्य कल्ट क्लासिक है। यह सिर्फ़ एक स्पेनिश हॉरर मूवी नहीं; यह यूरोपीय सिनेमा के एक विशिष्ट, विवादास्पद और अविस्मरणीय दौर का एक जीवंत, सांस लेता हुआ, भयानक टाइम कैप्सूल है। बस ध्यान रखें: यह सफ़र अजीब होगा। आप शायद पूरी तरह न समझ पाएँ कि आपने क्या देखा। लेकिन अगर आप इसके लिए तैयार हैं, तो यह आपको छोड़ेगा नहीं। क्योंकि कुछ सपने, चाहे वे कितने भी डरावने क्यों न हों, हमेशा याद रह जाते हैं।

Tags: 1960s फिल्मेंइरोटिका मूवीक्लासिक फिल्म समीक्षाजेस फ्रैंकोमिस्ट्री मूवीसाइकोलॉजिकल हॉररस्पेनिश सिनेमाहॉरर थ्रिलरहॉरर फिल्में
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