सोचिए एक ऐसी दुनिया जहाँ समय रुक गया हो। जहाँ हवा में चमकते सितारों की बजाय बस धूल भरी यादें हों। जहाँ शीशे हर पल चेहरे से झुर्रियाँ गिनवाते हों। बिली वाइल्डर की 1950 की कालजयी फिल्म ‘सनसेट बुलेवार्ड’ कोई सिर्फ़ फिल्म नहीं—ये तो हॉलीवुड के उस डार्क साइड का शवपरीक्षण है जिसे दुनिया से छुपाया जाता था। ये वो दर्पण है जिसमें फ़ेम, पावर और पागलपन का असली चेहरा दिखता है। जब जो गिलिस (विलियम होल्डन) की लाश पूल में तैरती है और वो खुद ही बताता है कि उसकी मौत क्यों हुई, तो आप जानते हैं—ये कोई साधारण कहानी नहीं होगी। ये है हॉलीवुड की क्रूर सच्चाई का वो सिनेमाई दस्तावेज़ जो आज भी रोंगटे खड़े कर देता है।
प्लॉट: एक डूबते आदमी का सहारा बनी शैतान
कहानी की शुरुआत तो अंत से होती है—जब एक फेलियर स्क्रिप्ट राइटर जो गिलिस गोली खाकर मर चुका होता है। फ्लैशबैक में जाते हैं: जो पैसों की तंगी में घिसट रहा है। भागते हुए वो गलती से सनसेट बुलेवार्ड पर बनी एक विशाल, जर्जर हवेली में घुस जाता है। यहाँ मिलती है नॉर्मा डेसमंड (ग्लोरिया स्वानसन)—साइलेंट सिनेमा की दिवा जिसे दुनिया भूल चुकी है। उसका घर एक म्यूज़ियम है जहाँ उसकी पुरानी फिल्मों के कट-आउट, तस्वीरें और एकमात्र साथी है उसका ख़ास नौकर मैक्स (एरिक वॉन स्ट्रोहाइम)।
नॉर्मा जो को अपनी “कमबैक” स्क्रिप्ट लिखने का ऑफर देती है। गरीब जो हाँ कर देता है। यहीं से शुरू होता है एक भयानक साइकोलॉजिकल ड्रामा—जहाँ पैसों के लालच में जो धीरे-धीरे नॉर्मा का बंदी बन जाता है। वो उसे महँगे तोहफे देती है, उसके कपड़े बदलवाती है, और आखिरकार उससे प्यार की डिमांड करने लगती है। जब जो इस जाल से निकलना चाहता है तो नॉर्मा का पागलपन हिंसक हो उठता है। एंडिंग वो होती है जब नॉर्मा उसे गोली मार देती है—और खुद को पूरी दुनिया के सामने “दिखाने” के लिए तैयार हो जाती है।
किरदार: ग्लोरिया स्वानसन का वो अभिनय जिसने इतिहास बदल दिया
ये फिल्म नॉर्मा डेसमंड कैरेक्टर अध्ययन की मास्टरक्लास है। ग्लोरिया स्वानसन—जो असल ज़िंदगी में साइलेंट एरा की स्टार थीं—यहाँ खुद को जीती हैं। देखिए उनके अभिनय के परतें:
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झूठी शान: जब वो सीढ़ियों से उतरते हुए कहती है, “मैं तैयार हूँ अपनी क्लोज-अप के लिए!”—मानो कैमरे अभी भी उसका इंतज़ार कर रहे हों।
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नाजुक पागलपन: वो जिस तरह अपने पुराने फिल्मों को बार-बार देखती है, यकीन करती है कि दर्शक अभी भी उसे प्यार करते हैं।
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घिनौना निराशा: जब स्टूडियो हेड उसे सिर्फ़ कार उधार देने आता है, तो उसका चेहरा टूट जाता है।
विलियम होल्डन का जो गिलिस हमारा आँख-कान है। वो नॉर्मा को पहले मज़ाक समझता है, फिर डरता है, और आखिर में उस पर तरस खाने लगता है। उसकी आँखों में दिखता है हॉलीवुड के नए जमाने की कुटिलता—जहाँ टैलेंट से ज़्यादा कनेक्शन चलते हैं।
और फिर है मैक्स—नॉर्मा का पूर्व पति और नौकर। जो उसके पत्र लिखता है, उसकी झूठी दुनिया को ज़िंदा रखता है। वॉन स्ट्रोहाइम का शांत, दर्द भरा अभिनय पूछता है: “क्या प्यार किसी को पागल बनाने का हक़ देता है?”
थीम्स: वो सच जो हॉलीवुड कभी नहीं दिखाना चाहता था
ये फिल्म फेड हुई शोहरत की दास्तान से कहीं आगे जाती है। ये सवाल करती है:
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फेम की भूख कितनी खतरनाक हो सकती है? नॉर्मा शोहरत के लिए मार सकती है।
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क्या हमारी पहचान दूसरों की नज़रों से बनती है? जब दुनिया ने नॉर्मा को भुला दिया, तो उसका अस्तित्व ही खत्म हो गया।
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हॉलीवुड क्यों बूढ़े सितारों को कचरे की तरह फेंक देता है? वाइल्डर बेरहमी से दिखाता है कि यहाँ प्यार नहीं, सिर्फ़ उपयोगिता का कारोबार है।
सबसे कड़वा सच तो ये है कि नॉर्मा खुद हॉलीवुड सिस्टम की पैदाइश है। उसने वही सीखा जो स्टूडियो ने सिखाया—कि तुम्हारी कीमत तुम्हारे फैन्स के प्यार से है। जब प्यार खत्म हुआ, तो वो खंडहर हो गई।
सिनेमैटोग्राफी: जहाँ हवेली बन जाती है किरदार
जॉन एफ़. सीट्ज़ की कैमरा वर्क इस फिल्म की आत्मा है। देखिए कैसे:
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नॉर्मा का महल एक लिविंग ऑर्गन है: टूटी हुई बालकनियाँ, पिंजरे में बंद बंदर, पुराने पर्दे—सब चिल्लाते हैं कि यहाँ ज़िंदगी बस गई है।
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शैडोज़ ऑफ़ डेथ: जब जो पहली बार हवेली में घुसता है, उस पर पड़ती लंबी छाया बता देती है कि यहाँ से ज़िंदा निकलना मुश्किल है।
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क्लोज-अप्स ऑफ़ मैडनेस: नॉर्मा के चेहरे के क्लोज-अप में उसकी आँखें डरावनी लगती हैं—जैसे वो स्क्रीन के पार से आपको घूर रही हो।
फिल्म का स्कोर (फ्रांज वैक्समैन) भी एक किरदार है। वायलिन्स जब नॉर्मा के दर्द को बयान करते हैं, तब पियानो की कर्कश आवाज़ उसके पागलपन को उघार देती है।
ग्लोरिया स्वानसन: असली ज़िंदगी जो स्क्रीन पर उतर आई
ग्लोरिया स्वानसन का यादगार अभिनय इस फिल्म को अमर बनाता है। ये कोई एक्टिंग नहीं—ये तो उनकी अपनी ज़िंदगी का सच था। 1950 तक स्वानसन खुद हॉलीवुड की भुला दी गई स्टार थीं। जब वो स्क्रीन पर कहती हैं, “मैं अभी भी बड़ी हूँ! ये तो फिल्में छोटी हो गई हैं!”—तो ये उनका अपना दर्द था। उन्होंने नॉर्मा में वो हताशा भरी जो आपको रुला देगी।
सबसे मार्मिक सीन है वो जब वो चार्ली चैपलिन की पैरोडी करती है—जैसे अपने ही अतीत को मज़ाक बना रही हो। स्वानसन ने इस रोल के लिए खुद के पुराने कपड़े और ज्वैलरी पहनीं। ये हॉलीवुड की क्रूरता पर उनका तीखा प्रहार था।
बिली वाइल्डर: वो जीनियस जिसने हॉलीवुड को आईना दिखाया
बिली वाइल्डर की मास्टरपीस के पीछे एक कड़वा इतिहास है। स्टूडियो ने स्क्रिप्ट को “हॉलीवुड के खिलाफ़ बगावत” बताकर रिजेक्ट कर दिया था। पर वाइल्डर झुके नहीं। उन्होंने खुद हॉलीवुड के हाइपोक्रिसी को बेनकाब किया:
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जिस स्टूडियो ने नॉर्मा जैसी स्टार्स को बनाया, उसी ने उन्हें फेंक दिया।
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जो गिलिस जैसे राइटर्स को इस्तेमाल करके फेंक देता है।
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जहाँ क्रिएटिविटी से ज़्यादा पैसा मायने रखता है।
वाइल्डर का सबसे बड़ा हथियार था नोयर और हॉरर का मिक्स। ये फिल्म नोयर है क्योंकि ये क्राइम की कहानी है। ये हॉरर है क्योंकि ये दिखाती है कि कैसे एक इंसान का मन धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।
लीगेसी: आज भी क्यों जलती है ये आग?
सनसेट बुलेवार्ड हिंदी समीक्षा लिखते हुए सबसे हैरानी होती है ये जानकर कि 1950 में ये फिल्म फ्लॉप हुई थी! पर समय ने इसे सिनेमा के इतिहास की अमर फिल्म बना दिया। आज ये:
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हॉलीवुड के बारे में सबसे ईमानदार फिल्म मानी जाती है।
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डेविड लिंच से लेकर क्वेंटिन टैरेंटिनो तक ने इसे अपनी फिल्मों में होमाज दिया है।
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अमेरिकन फिल्म इंस्टीट्यूट ने इसे “100 ग्रेटेस्ट फिल्म्स” में शामिल किया।
पर सबसे बड़ा सच ये है कि आज के सोशल मीडिया युग में नॉर्मा डेसमंड हम सब हैं। जब इंस्टाग्राम स्टार्स लाइक्स के लिए तड़पते हैं, जब यूट्यूबर्स व्यूज़ खोने के डर से सो नहीं पाते—तब ये फिल्म और भी डरावनी लगती है। वाइल्डर ने 1950 में ही भविष्य देख लिया था!
वो डायलॉग जो इतिहास बन गए
फिल्म की ताकत है इसके संवाद—जो सीधे दिल में घुस जाते हैं:
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“तुम पहले राइटर हो? मैं तुम्हें बताती हूँ—मैंने तो साइलेंट फिल्मों में काम किया है। हमारे पास तो शब्द ही नहीं होते थे। हमारे चेहरे ही हमारी आवाज़ थे!” — नॉर्मा का ये लाइन साइलेंट सिनेमा की पूरी त्रासदी समेट लेता है।
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“दर्शकों ने मुझे नहीं छोड़ा—मैंने उन्हें छोड़ा! क्योंकि मैं उन पर थूकना चाहती थी!” — यहाँ नॉर्मा का घमंड और दर्द एक साथ दिखता है।
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“श्रीमती डेसमंड, आप तो वैसी ही हैं जैसी 20 साल पहले थीं—बस थोड़ी और परफेक्ट!” — जो का ये झूठ उसकी जान बचाता है और फिर उसकी जान लेता है।
क्यों देखें सनसेट बुलेवार्ड?
अगर आप सोचते हैं कि 1950 की कालातीथ फिल्म आज बोरिंग लगेगी, तो गलत हैं। ये फिल्म आपको:
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एक साइकोलॉजिकल हॉरर की तरह कांपाएगी।
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हॉलीवुड के गंदे राज़ बताएगी।
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ग्लोरिया स्वानसन के जलते हुए परफॉर्मेंस से आपकी आँखें नहीं हटने देगी।
ये हॉरर और नोयर का मिश्रण है जिसमें कोई भूत नहीं—बस एक औरत है जिसका दिमाग़ मर चुका है, और एक सिस्टम है जिसका दिल कभी ज़िंदा ही नहीं था।
आखिरी बात: जब नॉर्मा कैमरे की तरफ बढ़ती है…
फिल्म का आखिरी सीन सिनेमा के इतिहास का सबसे डरावना क्लाइमैक्स है। नॉर्मा, जिसे खबर लगती है कि उसके घर कैमरे आ गए हैं, सोचती है कि उसकी कमबैक शुरू हो रही है। वो धीरे-धीरे सीढ़ियों से उतरती है। उसकी आँखों में एक जंगली चमक है। वो कैमरे की तरफ बढ़ती है और बोलती है: “ऐल राइट मिस्टर डीमिल, आई एम रेडी फॉर माय क्लोज-अप…”
ये सीन हमें याद दिलाता है:
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फेम एक मादक पागलपन है जो इंसान को इंसान नहीं रहने देता।
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हॉलीवुड एक ऐसा मकड़जाल है जो पहले सपने देता है, फिर उन्हें खा जाता है।
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और सबसे बड़ा सच—हम सबके अंदर एक छोटी नॉर्मा डेसमंड बैठी है जो चाहती है कि दुनिया उसे देखे, उसे याद करे, उसे प्यार करे… चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो।
बिली वाइल्डर की ये मास्टरपीस सिर्फ़ फिल्म नहीं—ये तो हॉलीवुड के सड़े हुए सपनों पर लिखा गया मर्सिया है। और जैसे हवेली में लटके नॉर्मा के पुराने पोस्टर, ये फिल्म भी हमें चेतावनी देती है: “देखो, शोहरत की इस दौड़ का अंत कहाँ होता है।”
इसलिए जब भी कोई कहे कि हॉलीवुड जादुई जगह है, उन्हें सनसेट बुलेवार्ड दिखाइए। ये वो आईना है जिसमें टिनसेल टाउन का असली चेहरा दिखता है—बूढ़ा, झुर्रियों भरा, और खौफनाक तरीके से पागल।