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Home Bollywood

Gurudutt – जहाँ से मुझे फिर दूर ना जाना पड़े

Sonaley Jain by Sonaley Jain
October 18, 2020
in Bollywood, Hindi, Super Star, Top Stories
2
Gurudutt –  जहाँ से मुझे फिर दूर ना जाना पड़े
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गुरुदत्त भारतीय सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे जिनकी संजीदा अदाकारी ने सभी के दिलों में एक अलग पहचान बनायीं है। 20 वर्ष के अपने छोटे से फ़िल्मी सफर में गुरुदत्त ने बहुत सारी नायब और ब्लॉक बस्टर फिल्मे की, जिनमे उनकी अदाकारी को आज भी याद किया जाता है।

गुरुदत्त का जन्म 1925 में बेंगलोर, कर्नाटक में हुआ था और उनकी मृत्यु 10 अक्टूबर 1964 ज्यादा स्लीपिंग पिल्स खाने से और एल्कोहल के सेवन से हुयी थी और वह महज 39 वर्ष के थे। उनके कई बेहद प्रसिद्ध फ़िल्मी डायलॉग है जो आज भी पसंद किया जाते हैं।

मुझे किसी इंसान से कोई शिकायत नहीं है 
मुझे शिकायत है समाज के उस ढांचे से, जो इंसान से उनकी इंसानियत 
छीन लेता है, मतलब के लिए अपने भाई को बेगाना बनाता है ,दोस्त को 
दुश्मन बनाता है….
मुझे शिकायत है उस तहजीब से, उस संस्कृति से  जहाँ मुर्दों को पूजा जाता है 
और जिन्दा इंसानों को पैरों तले रोंदा जाता है …..
जहाँ किसी के दुःख दर्द में दो आंसू बहाना बुजदिली समझा जाता है, झुक के 
मिलना एक कमजोरी समझा जाता है…… 
ऐसे माहौल में मुझे कभी शांति नहीं मिलेगी, मीना कभी शांति नहीं मिलेगी 
इसलिए मै दूर जा रहा हूँ…….. 
Early Life – गुरु दत्त का असली और बचपन का नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था जो बाद में गुरु दत्त पड़ गया। वसंत का जन्म 9 जुलाई 1925 को कर्नाटक के बेंगलोर शहर के एक कोंकणी हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवाशंकर राव पादुकोण और माता वसंती पादुकोण एक ग्रहणी थी।

गुरुदत्त का बचपन कोलकाता के भौवानीपोर में बीता था और उन्होंने अपनी शिक्षा भी वही से की थी। वसंत जब बड़े हुए तो उन्हें कलकत्ता के एक लीवर ब्रदर्स फैक्ट्री में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल गई, मगर जल्द ही उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और बाद में वह अपने माता-पिता के पास बॉम्बे आ गए।

और बहुत जल्दी ही वह अपने चाचा के साथ 1944 में पुणे के प्रभात फिल्म कंपनी के साथ तीन साल के अनुबंध के तहत नौकरी से जुड़ गए और वहां से शुरू हुआ वसंत का फ़िल्मी सफर जहाँ सबसे पहले उनकी दोस्ती हुयो देव आनंद और रहमान से जो आखिरी समय तक भी उनके परम मित्र रहे।

Professional Life – 1944 में जब वह पुणे की एक फिल्म कंपनी से जुड़े तो फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद उन्हें लगने लगा कि उनकी मंज़िल का सफर यही से शुरू होता है। उन्होंने बहुत मेहनत की और 1944 में ही चाँद फिल्म के जरिये उन्होंने कैमरे का सामना किया, इस फिल्म में उन्होंने श्री कृष्ण का एक छोटा सा किरदार निभाया था। उसके बाद 1945 से 1947 तक उन्होंने सहायक निर्देशक के रूप में काम किया।

प्रभात कंपनी से अनुबंध ख़तम होने के बाद क़रीबन 10 माह तक गुरुदत्त के पास कोई काम नहीं था तो उन्होंने स्थानीय साप्ताहिक अंग्रेजी पत्रिका द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया के लिए लघु कहानियां भी लिखीं, वहीँ से उनकी लेखन में रूचि हुयी और फिर उन्होंने कई फिल्मो की कहानियां भी लिखी।

बॉम्बे आने के बाद गुरुदत्त ने कई फ़िल्मी कंपनियों के साथ काम किया। 1951 में उन्होंने देव आनंद की कंपनी नवकेतन के साथ बाज़ी फिल्म से शुरुवात की।  देव आनंद और गुरुदत्त इतने अच्छे दोस्त थे कि देव आनंद ने उनके साथ एक समझौता किया कि जब भी गुरु दत्त  फिल्म निर्माता बनेंगे, तो वे आनंद को अपने नायक के रूप में फिल्म में लेंगे,और अगर आनंद  फिल्म का निर्माण करेंगे, तो वह दत्त को इसके निर्देशक के रूप में लेंगे।

गुरुदत्त ने अपनी पहचान विश्व में एक सफल अभिनेता के साथ – साथ एक सफल निर्माता, निर्देशक और कोरियोग्राफर के रूप में विकसित की। उन्होंने कई उभरते कलाकारों को अपना करियर बनाने में सपोर्ट भी किया था।  वहीदा रहमान को फ़िल्मी जगत में लाने का श्रेय भी गुरुदत्त को जाता है। उन्होंने अपने बहुत छोटे फ़िल्मी सफर में कई सुपर हिट फिल्मे दी।

1959 में उनके द्वारा बनी गयी फिल्म कागज के फूल एक बहुत बड़ी असफल फिल्म साबित हुयी और इस फिल्म ने गुरुदत्त को पूरी तरह से तोड़ दिया था क्योकि इस फिल्म में उन्होंने अपना पूरा पैसा, समय और ऊर्जा का निवेश किया था।  यह फिल्म उनके खुद के जीवन पर आधारित थी। उसके बाद गुरुदत्त ने जितनी भी फिल्मों का निर्देशन किया उन सभी में एक सहायक के तौर पर किया था।  मगर अभिनय में उनकी उसके बाद कई फिल्मे हिट रही जैसे  चौदहवीं का चाँद और साहिब बीबी और ग़ुलाम।

Personal Life – गुरुदत्त अपने पेशे में जितने कामयाब रहे उतना ही उन का निजी जीवन बेहद ही सादा और सरल था। उन्होंने गीता रॉय चौधरी से 26 मई 1953 को विवाह किया था और गीता एक मशहूर गायिका थी। गुरुदत्त के 3 बच्चे – अरुण दत्त और तरुण दत्त दोनों ही फ़िल्मी जगत से जुड़े हुए थे और उनकी एक बेटी नीना दत्त हैं। गुरुदत्त का वैवाहिक जीवन बेहद दुःख भरा रहा, जितने वह काम के प्रति अनुशासन का पालन करते थे उतना ही वह अपने निजी जीवन में अनुशासनहीन थे।

सिगरेट और शराब के शौकीन गुरुदत्त घंटो इनके साथ समय बिताते थे। इसके अलावा गुरुदत्त को खेलों में बैडमिंटन बहुत पसंद था और वह अपने खाली  समय में लिखना, पड़ना और जानवरों का ध्यान रखना पसंद करते थे। खाने के बेहद शौकीन रहे गुरुदत्त को बंगाली और दक्षिण भारतीय भोजन बहुत पसंद था।  

Films –  “प्यासा (1957)”,  “चौदवीं का चाँद (1960)”, “बहारे फिर भी आएँगी (1966)”, “सुहागन (1964)”, “बहुरानी (1963 )”, ” साहेब बीबी और गुलाम (1962)”, “सौतेला भाई (1962)”, “कागज के फूल (1959)”, सैलाब (1956)”, “सी आई डी (1956)”, “मिस्टर एंड मिसेज़ 55 (1955)”, “आर पार (1954)”, “बाज़ी (1951)”, “12 औ क्लॉक (1958)

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
 
हम ग़मज़दा हैं लाएं कहां से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएंगे इस ज़िंदगी से हम
Tags: Best ActorBollywood actorClassic actors
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Comments 2

  1. Satish Bhatia says:
    5 years ago

    बेहद शानदार कलाकार।

    Reply
  2. Satish Bhatia says:
    5 years ago

    अद्भुत कलाकार।

    Reply

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