1930 का वह समय जब देश में महिलाओं को लेकर काफ़ी रुढ़िवादिता थी उस समय में वीरा रमानी வீர ரமணி तमिल फिल्म के पोस्टर ने तमिलनाडु राज्य की जनता को आश्चर्य में डाल दिया था। जहाँ पर महिलाएं कभी घर से बाहर नहीं निकलती थी और अगर निकलना पड़ा भी तो वह अपने पिता , भाई या पति के साथ निकलती थी, वहीँ पर फिल्म के पोस्टर में एक लड़की पेंट शर्ट पहने, सिगरेट पीती हुयी मोटरसाईकल चला रही थी।
फिल्म के पोस्टर में दिखी महिला कोई और नहीं उस समय की स्टंट क्वीन के नाम से जानी जाने वाली अभिनेत्री के. टी. रुक्मिणी थी। फिल्म के पोस्टर रिलीज़ होने के बाद जनता के रिएक्शन से सभी को ऐसा लगा कि शायद यह फिल्म जनता को पसंद नहीं आएगी। मगर 11 फरवरी 1939 को जब फिल्म सिनेमा घरों में आयी तो जनता द्वारा काफ़ी सराहा गया। और जनता द्वारा फिल्म को सुपरहिट फिल्मों की श्रेणी में रखा गया।
अमरनाथ द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म का निर्माण मोहन पिक्चर्स द्वार किया गया। रुक्मिणी और श्रीनिवास राव द्वारा अभिनीत इस फिल्म को तमिल सिनेमा में आये बदलाव का एक कारण माना जाता है। रुक्मिणी द्वारा किये गए स्टंट फिल्म की जान थे, सिगरेट पीने से लेकर गुंडों की पिटाई तक जनता को सब कुछ बेहद पसंद आया।
Story Line
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक युवती शांता से जिसको अपने मोहल्ले में रहने वाले एक बेरोज़गार युवक मूर्ति से प्रेम हो जाता है। और उससे रोज़ मिलने के लिए शांता अपने चाचा से मूर्ति को उसका टीचर नियुक्त करने की बात करती है, जिससे वह रोज़ मूर्ति से मिल सके। मगर वहीँ दूसरी तरफ मूर्ति शांता से नहीं उसी मोहल्ले में रहने वाली मीनाक्षी से प्रेम करता है।
मूर्ति से जहाँ इतने लोग प्रेम करते हैं वहीँ पर कुछ उससे नफरत भी करते हैं। उनमे से एक मूर्ति को चोरी के झूठे आरोप में जेल भिजवा देता है। उसके बाद शांता अपने चाचा की मदद से मूर्ति को जेल से छुड़वा लेती है। जेल से छूटने के बाद मूर्ति अपने जीवन में वापस आने की कोशिश करता है और मीनाक्षी से विवाह करने का प्रस्ताव रखता है जिसे मीनाक्षी और उसके घर वाले अस्वीकार कर देते हैं।
हताश मूर्ति काम की खोज में जाता है मगर उसको कोई काम नहीं देता। परेशान मूर्ति अपने जीवन यापन के लिए चोरी करना शुरू कर देता है। परेशानियों से घिरे मूर्ति को जब ऐसी स्थिति में शांता देखती है तो वह अपने प्रेम और प्रेमी की रक्षा के लिए लड़के का वेश धारण करके मूर्ति का सपोर्ट करती है।
सबसे पहले वह आसपास के दुश्मनों से मूर्ति को बचाती है उसके लिए नौकरी का इंतेज़ाम करती है जिससे वह चोरी करना छोड़ दे। मूर्ति को शक ना हो जिसके लिए वह उसके साथ सिगरेट भी पीती है। फिल्म में दोनों के बीच की नोंकझोंक, दोनों का एक दूसरे का सपोर्ट करना , लड़ना इस फिल्म को और भी खूबसूरत बनाती है। इस फिल्म के अंत में मूर्ति को शांता की सच्चाई पता चलती है और उसका प्रेम भी।
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