ज़िन्दगी एक पारिवारिक सुपरहिट फिल्म जो सिनेमा घरों में 1964 को आयी थी और आते ही सभी सिनेमा घरों में ब्लॉक बस्टर साबित हुयी। इस फिल्म का निर्देशन रामानंद सागर ने किया था। इस फ़िल्म को तमिल में वाज़काई पडागु (1965) और तेलुगु में आडा ब्राथुकु (1965) के नाम से बनाया गया था।
इस फिल्म में यह बताने का प्रयास किया गया है कि जब हमारे हालात हमारे साथ ना हो तो हमें उसी बहाव में बहाना चाहिए जिसमे हमें जिंदगी ले जाती है , अंत में सब कुछ सही हो जाता है।
Story – फिल्म की कहानी शुरू होती है एक स्टेज अभिनेत्री बीना से जो अपनी जीविका गोपाल के छोटे छोटे स्टेज शोज करके करती है और अपनी विधवा माँ के साथ गरीबी में अपना जीवन व्यतीत कर रही है। दोनों माँ बेटी अपना जीवन ख़ुशी से जी रही है। एक दिन जब बीना अपने काम से घर लौट रही होती है तो एक गुंडा बांके अपने दो मित्रों के साथ बीना को जबरदस्ती अपनी गाड़ी में ले जा रहा होता है।
बीना के चिल्लाने की आवाज़ वहां पास ही की नदी में अपने कुत्ते के साथ नाव की सैर कर रहे राजन को सुनाई देती है और वह बिना को बचाने के लिए जाता है और उनसे बचाकर राजन बीना को सही सलामत उसके घर तक पहुँचाता है। यह जाकर बीना की माँ उसका आभार व्यक्त करती है।
उसके बाद दोनों में पहचान होती है और धीरे धीरे यह पहचान मोहब्बत में बदल जाती है और दोनों एक दूसरे से बेहद मोहब्बत करने लगते हैं मगर इन दोनों की मोहब्बत राजन के पिता राय बहादुर गंगाशरण को पसंद नहीं थी क्योकि बीना एक गरीब और राजन एक अमीर घर से तालुक्कात रखते थे। मगर राजन की घर छोड़ने की धमकी राय बहादुर गंगाशरण को झुका देती है और वह दोनों का विवाह करवाने के लिए राजी हो जाते हैं।
बीना और राजन का विवाह होता है और दोनों ख़ुशी ख़ुशी अपना वैवाहिक जीवन शुरू करते हैं। विवाह के बाद बीना गोपाल को काम करने से मना कर देती है। एक दिन दोनों का दुश्मन बांके उनकी गाड़ी की हवा निकल देताहै और कुछ दूर जाकर राजन को पता चलता है कि उसकी गाड़ी का पहिया पंचर हो गया है और वह बीना को गाड़ी में बिठाकर पंचर वाले को लेने जाता है।
उसी समय बांके के गुंडे वहां आ जाते हैं और बीना को परेशां करने लगते हैं, बिना वहां से भागती है और उनसे बचने के लिए एक घर में पनाह लेती है और वह घर गोपाल का होता है, जो मन ही मन बीना को पसंद करता है मगर उससे कभी नहीं कहता। सुबह होती है और रात भर से परेशान बिना का परिवार उसको देखकर राहत की सांस लेता है।
उसी दिन सुबह जब बीना गोपाल के घर से चली जाती है तो उसके घर में पुलिस आती है एक आदमी की हत्या के जुर्म में गोपाल को गिरफ्तार करने के लिए। अदालत में सुनवाई होती है जिसमे गोपाल अपराधी साबित होने वाला होता है रतनलाल के क़त्ल के जुर्म में, उतने में ही वहां बीना आ जाती है और बताती है कि उस रात गोपाल के साथ वह खुद थी।
यह बात सुनकर राजन और उसका परिवार समझ ही नहीं पाता कि बीना यह क्या कह रही है। मगर जैसे ही बीना अपनी सफाई देती है राजन उसको घर से निकल देता है और कहता है कि वह यह शहर भी छोड़ कर चली जाए। गर्भवती बीना अपनी माँ के साथ शहर छोड़कर जाती है और थोड़ी दूर जाकर वह थककर गिर जाती है, उसको एक घर में आश्रय मिलता है। शेर खान बीना और उसकी माँ को अपने घर में आश्रय देता है शेर खान की पत्नी और उसके दो बच्चे बिना को अपने परिवार की तरह रखते हैं।
कुछ समय बाद बिना एक प्यारे से बच्चे को जन्म देती है और दूसरी तरफ राजन शराब के नशे में डूब जाता है और एक दिन नशे की हालत में वह गाड़ी से अपने कुत्ते के साथ जाता है और उसका एक्सीडेंट हो जाता है। कुत्ता बीना को राजन के पास ले जाता है और बिना शेर खान की मदद से राजन को घर पर लेकर आती है और उसका इलाज करवाती है।
कुछ समय में ही राजन ठीक हो जाता है और अपने ही बेटे के साथ बड़े प्यार से खेलता है, उसके बाद वह अपने पिता के साथ घर चला जाता है। दूसरी तरफ गोपाल को पता चलता है कि उस पर जो इलज़ाम लगा था वह बांके की वजह से हुआ था और वह बांके पकड़कर सच उगलवाने का प्रयास करता है उसने उसको ही चोट लग जाती है और बांके को पुलिस पकड़ लेती है , सभी के सामने वह अपने जुर्म को स्वीकार कर लेता है कि रतनलाल की हत्या उसी ने की।
यह जानकर राजन और उसका परिवार बीना को ढूढने जाते हैं वैसे ही शहर में भूकंप आ जाता है और सब कुछ बिखर जाता है राय बहादुर गंगाशरण अपनी बहू बीना से मिल जाते हैं मगर उन दोनों को राजन का कुछ भी पता नहीं चलता है। फिर एक दिन बीना को ऐसा लगता है कि उसका पति राजन उसे पुकार रहा है और वह पहाड़ियों के पास जाती है अपने ससुरजी के साथ। वहां पर उसको उनके कुत्ते की आवाज़ सुनाई देती है और कुत्ते के जरिये बिना पत्थरों में दबे अपने पति राजन को खोज लेती है। राजन उससे माफ़ी मांगता है।
Songs & Cast – इस फिल्म में संगीत शंकर जयकिशन ने दिया है और इन गानों को लिखा है शेलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने – “पहले मिले थे सपनों में “, “छूने ना दूंगी “, “एक नए मेहमान “, “मुस्कुरा लड़के मुस्कुरा “, “हम प्यार का सौदा करते हैं “, “प्यार की दुल्हन सदा सुहागन “, और इन गीतों को आवाज़ दी है लता मंगेशकर ,मोहमद रफ़ी ,मन्ना डे और आशा भोसले ने।
फिल्म में तीन सुपर स्टार की तिकड़ी ने कमाल की अदाकारी की है जहाँ राजेंद्र कुमार ने राजन और राज कुमार ने गोपाल के किरदार को फिल्म में जीवित किया है वहीँ पर वैजन्तीमाला ने भी बीना के चरित्र को एक अलग पहचान दी है। और इन सब का साथ फिल्म में महमूद (जग्गू ), जयंत (शेर खान), जीवन (बांके), हेलेन (चमेली), लीला (बीना की माँ) आदि ने।
इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म की अवधि 2 घंटे और 37 मिनट्स हैं और इसका निर्माण रामानंद सागर ने जेमिनी पिक्चर्स के तहत किया था।
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