Raat Aur Din फिल्म नरगिस की आखिरी फिल्म थी यह फिल्म उनके भाई जाफरी हुसैन ने बनायीं और इसको बनाने में 6 वर्षों का समय लगा। यह फिल्म एक ऐसी महिला की कहानी है जो रात और दिन में दो अलग अलग किरदारों के साथ जीती है।
प्रताप वरुणा के पीछे पीछे घर आ जाता है और जब वह उसके कमरे में जाने की कोशिश करता है तो नौकर कहते हैं कि वरुणा रही है। प्रताप वहीँ बैठा रात की सुबह कर देता है। वरुणा कमरे से बाहर आती है और जब प्रताप उससे सवाल करता है तो वह कहती है कि कल पूरी रात वह अपने कमरे में थी, उसी समय दिलीप भी आ जाता है और वह कल रात वरुणा का उसके साथ होने का दावा करता है मगर वरुणा उसको देखकर घबरा जाती है और रोते हुए यही कहती है कियह सब झूठ है।
प्रताप और दिलीप वरुणा को डॉक्टर के पास लेकर जाते है मगर डॉक्टर्स यही कहते हैं कि शायद कोई ऐसी बात है जो उसके दिल में बैठ चुकी है और उसके बाद प्रताप वरुणा से मिलने की कहानी बताता है कि शिमला में उसकी गाड़ी एक घर के पास ख़राब हो गयी थी और उसे उस घर में शरण लेनी पड़ी वह वरुणा का घर था। वहीँ पर दोनों में प्रेम हुआ और दोनों ने शादी कर ली।
एक दिन प्रताप के घर पार्टी होती है और उस पार्टी में प्रताप के दोस्त वरुणा को शराब ऑफर करते हैं तो वह मना कर देती है और थोड़ी डियर बाद जब प्रताप वरुणा को ढूंढता है तो वह एक जगह शराब में धुत पड़ी होती है, प्रताप को यह बात समझ नहीं आती और वह वरुणा को कमरे में सुला देता है।
सुबह जल्दी में वह अपने बिज़नेस के सिलसिले में शहर से बाहर चला जाता है और 4 -5 दिनों में वापस आकर देखता है कि शराब की बोतले खली पड़ी हुयी हैं तो इस बारे में वह वरुणा को पूछता है तो वह कहती है कि उसे इसके बारे में कुछ भी नहीं पता। उसी दिन रात में प्रताप वरुणा को नाइट क्लब में पाता है। डॉक्टर्स प्रताप को बोलते हैं कि वरुणा को मानसिक अस्पताल में भर्ती करवाने की जरुरत है।
वरुणा यह खबर अपने पति को सुनाने के लिए घर जाती है मगर उसकी सास उस पर धोखा देने का आरोप लगाकर उसको घर से निकल देती है। दुखी वरुणा सड़को पर पागलों की तरह घूमती रहती है और थोड़ी देर बाद वह बेहोश हो जाती है। वरुणा को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है जहाँ पर वरुणा के पिता उसके साथ हुयी एक घटना के बारे में सभी को बताते हैं कि वह एक बहुत बड़ा जुआरी था और इस वजह से उसकी पत्नी वरुणा के साथ उसे छोड़कर शिमला चली गयी थी।
वरुणा की माँ का व्यव्हार उसके प्रति बहुत कठोर था। कुछ दिनों के बाद उसके पड़ोस में एक ईसाई लड़की पेग्गी आयी जिससे उसकी दोस्ती हुयी बिना उसकी माँ के बताये हुए। पेग्गी को डांस करने का बहुत शौक था और यह शौक वरुणा को भी हो गया। वरुणा पेग्गी की तरह जीवन जीना छाती थी मगर उसकी माँ ऐसा करने से मना करती थी।
वरुणा बड़ी हुयी और एक दिन वह पेग्गी के घर पार्टी में वरुणा डांस करती है और वहीँ पर दिलीप ने उसको पहली बार देखा था। यह सब कुछ वरुणा की माँ देख लेती है और उसको अपनी बेटी मानने से इंकार कर देती है, वरुणा अपनी माँ को समझाने के लिए उनके पीछे जाती है। माँ उस पर गुस्सा होती है और अचानक पहाड़ी से गिर जाती है और इस हादसे का जिम्मेदार वह खुद को मानती है और खुद से नफरत करती है और पेग्गी से प्रेम।
प्रताप डॉक्टर के साथ मिलकर वरुणा को वहीँ लेकर जाते हैं जहाँ पर उसकी माँ की मृत्यु हुयी थी। वरुणा को सब कुछ याद आ जाता है और वह ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगती है, प्रताप उसको सभालता है और डॉक्टर वरुणा को बताता है कि उसकी माँ की मौत हार्ट अटैक से हुयी है ना की वरुणा की वजह से। यह जानकर वरुणा कुछ दिनों के बाद धीरे धीरे ठीक होने लगती है।
Songs & Cast – इस फिल्म में प्रसिद्ध संगीतकार शंकर जयकिशन ने दिया था और इन गीतों को हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र ने लिखा था, जैसे -“रात और दिन दिया जले “, “आवारा ऐ मेरे दिल “, ” जगत में कोई ना”, “जीना हमको राज़ ना “, “ना छेड़ो कल के अफ़साने को “, “दिल की गिरह खोल “, “फ़ूल सा चेहरा “, और इन सभी गानों को आवाज़ दी है लता मंगेशकर ,मुकेश, भूपिंदर सिंह और मोहम्मद रफ़ी ने।
यह नरगिस के विवाह के बाद की पहली ऐसी अद्भुत अभिनय वाली फिल्म साबित हुयी थी। इस फिल्म में नरगिस ने वरुणा और पेग्गी का किरदार निभाया था और उनका साथ दिया अभिनेता प्रदीप कुमार ने प्रताप के किरदार के साथ और इस फिल्म को सुपरहिट बनाने में अन्य कलाकारों का भी सहयोग रहा जैसे – फ़िरोज़ खान (दिलीप), के एन सिंह ,लीला मिश्रा ,अनूप कुमार, अनवर हुसैन (डॉक्टर )
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 15 मिनट्स हैं और इस फिल्म के निर्माता जाफर हुसैन थे।
Lights, camera, words! We take you on a journey through the golden age of cinema with insightful reviews and witty commentary.