गुरुदत्त भारतीय सिनेमा में एक ऐसा नाम है जिनकी फिल्मे हमेशा से हर युग ने पसंद की है। ऐसी ही एक फिल्म है उनकी जो अपने ज़माने की सुपर हिट फिल्मो में आती है – “आर पार ” यह फिल्म 9 जुलाई 1954 को हिंदी सिनेमा में रिलीज़ हुयी थी।
इस फिल्म का निर्देशन गुरुदत्त साहब ने खुद ही किया था। इस फिल्म में एक ऐसे गरीब व्यक्ति की कहानी है जो पहले टैक्सी चलाता है और फिर गैराज में काम करता है और इसी के साथ वह एक बहुत बड़ी साजिश में भी फस जाता है। जिंदगी में जैसे – जैसे पहलू आते तरह से प्रतिक्रिया देता है पर कभी हार नहीं मानता।
Story – फिल्म की कहानी शुरू होती है जेल से जहाँ पर कालू बिरजू 610 नंबर का कैदी होता है जिस को जेलर द्वारा बताया जाता है कि वह अपने अच्छे व्यव्हार की वजह से 2 महीने पहले ही छूट जाता है। यह जानकर वह बहुत खुश होता है और जाने से पहले चाचा से मिलता है जो उसको कहते हैं कि स्ट्रीट होटल में जाकर कैप्टन से मिले और उसको एक सन्देश देना है।
जेल से बाहर निकलते है कालू को टेक्सी ड्राइवर का मालिक मिल जाता है। कालू उनकी टेक्सी चलाता था और एक एक्सीडेंट करने पर उसको जेल हुयी थी। टेक्सी मालिक अपनी गाड़ी की चाबी देने को मना कर देता है क्योकि टैक्सी में जो टूट फूट हुयी है उसका पैसा आज तक इंश्योरेंस कंपनी से नहीं मिला है। कालू वहां से चला जाता है और निक्की से टकराता है और उसकी मदद करने में कालू का कोट उसकी कार में ही छूट जाता है।
कालू अपनी बहन के घर आता है उससे मिलने के लिए , वहीँ पर उसका पार्टनर इलायची मिलता है और वह दोनों उस रात एक दुकान के बाहर ही सो जाते हैं। दूसरे दिन कालू को वही गाड़ी दिखती है जिसमे उसका कोट रह गया था। गाड़ी की पड़ताल करने वह गेराज में जाता है , जहाँ उसको पता चलता है कि यह गेराज लालाजी का है और निक्की उनकी बेटी है।
कालू को लालाजी के गेराज में नौकरी मिल जाती है। कुछ समय बाद कालू होटल जाता है जहाँ पर वह एक नर्तकी को एक आदमी द्वारा छेड़ने से बचाता है , जिसका नाम शकीला है और कालू उससे कैप्टन से मिलने की बात और एक संदेशा देने को कहता है। शकीला और रुस्तम कहते हैं कि अभी कैप्टन नहीं है तो वह सन्देश उनको दे सकता है, मगर कालू ऐसा नहीं करता।
जहाँ कालू और निक्की का प्रेम परवान चढ़ता है वहीँ दूसरी तरफ कैप्टन बैंक में चोरी करने की प्लानिंग कर रहा होता है। कैप्टन कालू को अपने हर गलत धंधे में शामिल कर लेता है इसके लिए वह एक टैक्सी खरीद कर कालू को टैक्सी चलाने को दे देता है। इस बात से कालू बहुत खुश होता है और कप्तान को बोलता है कि जब भी उसको जरुरत होगी तो वह हाज़िर हो जायेगा।
कालू और निक्की में कुछ ग़लतफ़हमी हो जाती है और वह उसको छोड़कर होटल में आ जाता है जहाँ शकीला होती है और शकीला मन ही मन कालू को बहुत पसंद करती है, वह कालू के साथ अपना जीवन बिताना चाहती है मगर कालू मना कर देता है। एक दिन कैप्टन और उसके साथी एक सुनसान जगह पर ट्रेन के आने का इंतज़ार करते हैं। ट्रेन आती है और उसमे से 3 -5 बक्से फेंके जाते हैं जिन बक्सों को लेकर कैप्टन और उसके साथी वापस आ जाते हैं। कालू को शक होता है वह उन बक्सों को खोलकर देखता है तो उसमे पिस्तौल होती है गोलियों के साथ।
उस वक्त कालू को कैप्टन के असली धंधों के बारे में पता चलता है। कैप्टन कालू , निक्की और उसके पार्टनर को पकड़ लेता है ताकि कालू अपनों के लिए यह आखिरी काम कर सके और वह हां कर लेता है। बैंक में चोरी करने के लिए कप्तान और उसके साथी कालू की टेक्सी का उपयोग करते हैं
बैंक के बाहर कालू टेक्सी लेकर इंतज़ार करता है उतने में ही रुस्तम की प्रेमिका वहां आ जाती है और रुस्तम कालू से अपना इरादा बदलने की बात करता है और दोनों टेक्सी लेकर भाग जाते हैं, उनका पीछा कैप्टन और उसके साथी करते हैं। दोनों तरफ से गोलियां चलती है और थोड़ी देर में पुलिस आ जाती है और कैप्टन और उसके साथी पकड़े जाते हैं। अंत में लालजी अपनी बेटी का विवाह कालू से तय कर देते हैं।
Songs & Cast – इस फिल्म को औ पी नय्यर ने 8 खूबसूरत गानों से सजाया है और वह गाने है – “सुन सुन सुन सुन ज़ालिमा “, “बाबूजी धीरे चलना प्यार में जरा संभालना “, “हूँ अभी में जवान ऐ दिल “, “मोहब्बत करलो जी “, “ना ना ना ना ना तौबा तौबा “, “कभी आर कभी पार”, “ये लो मै हारी पिया “, “जा जा जा बेवफ़ा ” आदि और इनको आवाज़ दी है गीता दत्त , मोहम्मद रफ़ी और शमशाद बेगम ने।
इस फिल्म में गुरुदत्त ने कालू का किरदार निभाया है जो अपनी जीवन के संघर्ष में व्यस्त रहता है और उनका साथ दिया है श्यामा ( निक्की ), जगदीश सेठी (लालाजी ), जॉनी वाकर (रुस्तम ), रशीद , कुमकुम , शकीला और अन्य ने।
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 26 मिनट्स (146 मिनट्स ) है और इसका निर्माण गुरुदत्त ने किया था।
Location – इस फिल्म की शूटिंग ज्यादातर मुंबई शहर में हुयी थी और कुछ मुंबई के आस पास के खूबसूरत लोकेशंस पर।
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