अपराजितो सत्यजीत रे की एक सुपरहिट बंगाली फिल्म है, जो 11 अक्टूबर 1956 में रिलीज़ हुयी थी। यह फिल्म सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित की गयी फिल्म पाथेर पांचाली का दूसरा भाग है। और यह फिल्म वहां से शुरू हुयी जहाँ पर पाथेर पांचाली ख़तम हुयी थी। यह फिल्म विभूतिभूषण बनर्जी के उपन्यास अपराजितो से प्रेरित है।
Story Line –
बंगाली सुपरहिट फिल्म की कहानी शुरू होती है 1920 से , जहाँ पर एक परिवार एक छोटे से गांव से निकलकर कलकत्ता में आकर बसता है।हरिहर रॉय, अपनी पत्नी सर्बजया और बेटे अप्पू के साथ एक फ्लैट में ख़ुशी ख़ुशी रहने लगते हैं। हरिहर पास में बने एक मंदिर में पुजारी की नौकरी करने लगते हैं। सब कुछ सही चल रहा होता है उनके जीवन में , मगर सब कुछ बदल जाता है उस समय जब हरिहर की मृत्यु हो जाती है।
सर्बजया अपने और अप्पू का पालन पोषण करने के लिए नौकरानी का काम करना शुरू कर देती है। मगर कुछ ही समय बाद अप्पू अपने चाचा की मदद से अपनी माँ के साथ वापस अपने गांव मानसपोटा में आ जाते हैं। जहाँ पर अप्पू मंदिर में पुजारी का काम करके अपने परिवार की जीविका चला रहा होता है।
पढ़ने में रूचि अप्पू को हमेशा स्कूल की तरफ आकर्षित करती रहती थी , वह पढ़ना चाहता था मगर घर की जिम्मेदारियां उसको ऐसा करने से रोकती थी। मगर एक दिन किसी के द्वारा समझने पर वह स्कूल जाने का निर्णय लेता है और जिसमे उसकी माँ उसका सहयोग करती है। पढ़ाई में होशियार अप्पू बहुत जल्दी ही स्कूल के सभी शिक्षकों का प्रिय बन जाता है।
समय बीतता है और अप्पू युवा हो जाता है। आगे की पढ़ाई करने के लिए अप्पू को छात्रवृत्ति मिलती है और वह कलकत्ता जाने का विचार करता है। दुखी माँ अपने बेटे की ख़ुशी के लिए उसको कलकत्ता जाने की मंजूरी दे देती है। अप्पू शहर पहुंचकर कॉलेज की पढ़ाई के बाद अपनी जीविका के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगता है।
शुरू में तो वह हर हफ्ते अपनी माँ से मिलने गांव आ जाता था। मगर जसे – जैसे समय बीतता गया वैसे – वैसे अप्पू की व्यस्तता उसको उसकी माँ से दूर ले जाती गयी। अब वह बहुत कम गांव जाने लगा था अपनी माँ से मिलने के लिए। अपने बेटे के विरह में दुखी सर्बजया बीमार रहने लगी। मगर उसने अप्पू को उसकी बीमारी के बारे में कभी भी नहीं बताया। क्योकिउसको लगता था कि कहीं इस वजह से अप्पू की पढ़ाई में कोई भी परेशानी ना आये ।
जब यह बात अप्पू को पता चलती है तो वह गांव अपनी बीमार माँ को देखने आता है। मगर जैसे ही वह आता है तो उसको पता चलता है कि उसी सुबह उसकी माँ की मृत्यु हो गयी है। बहुत दुखी अप्पू यह सोचकर पछताता है कि काश वह कुछ समय पहले ही आ गया होता अपनी माँ से मिलने के लिए। एक बेटे को उसकी माँ कि मौत इतना आहत करती है कि उसको अपनी माँ की तरफ ध्यान ना देना और उसकी व्यस्तता काटने को दौड़ती है।
Songs & Cast –
इस बंगाली फिल्म में अप्पू रॉय की भूमिका पिनाकी सेन गुप्ता ने निभाई थी और उसके पिता हरिहर रॉय और माता सर्बजया रॉय के चरित्र को कानू बनर्जी और करुणा बनर्जी ने परदे पर जीवित किया था।
Review –
अपराजितो बंगाली सुपरहिट ब्लॉकबस्टर फिल्म है। इस फिल्म को सत्यजीत रे नई लिखा भी था और निर्देशित भी किया था। यह फिल्म सत्यजीत रे ने एक ऐसे टॉपिक को लिया जो एवरग्रीन है और हर रिश्ते में सबसे बड़ा रिश्ता है। रे ने माँ – बेटे के रिश्ते को इस तरह से परदे पर दिखाया है कि यह फिल्म जिसने भी देखी उसने इस माँ बेटे के रिश्ते को अपने में पाया।
रे ने यह फिल्म विभूतिभूषण बनर्जी के उपन्यास अपराजितो के पहले भाग से प्रेरित होकर बनायीं थी। यह पहली बार था कि रे ने किसी उपन्यास कि कहानी लेकर उसमे बहुत सारे परिवर्तन किये। यह फिल्म आज भी टॉप 50 फिल्मो में आती है। इस फिल्म को भारत के बाहर बेहद सकारात्मक समीक्षा मिली। इसने वेनिस फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन लायन और क्रिटिक्स अवार्ड सहित 11 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते, और यह दोनों अवार्ड्स एक साथ जीतने वाली पहली फिल्म बनी।
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