Sadhna – एक सम्मान भरा जीवन जीने के लिए करने वाले संघर्ष की कहानी

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साधना हिंदी फिल्म 1 जनवरी 1958 को भारतीय सिनेमा में आयी और इस फिल्म के जरिये निर्देशक ने एक सामाजिक परिस्थिति की और सभी का ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की।  इस फिल्म का निर्देशन बी आर चोपड़ा ने किया था।

वेश्यावृत्ति उस समय का एक विवादास्पद विषय था जिसेनिर्देशक ने बड़ी ही सरलता से दिखाया है और पूरे समाज के सामने इस  फिल्म के जरिये वेश्यावृत्ति के बारे में समाज के दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाया। इस फिल्म में एक तवायफ की कहानी को बताया गया है कि किस तरह से एक सम्मान भरा जीवन जीने के लिए उसको संघर्ष करना पड़ता है।

Story –   फिल्म की कहानी शुरू होती है कॉलेज के एक प्रोफेसर मोहन से, जो एक बहुत की ईमानदार युवक है और अपनी बीमार माँ के साथ रहता है। मोहन कॉलेज में साहित्य और कविता पढ़ाता है। एक दिन मोहन की माँ बीमार होने के कारण सीढ़ियों से गिर जाती हैं। यह देखकर मोहन बहुत डर जाता है और डॉक्टर को बुलाता है।

डॉक्टर मोहन की माँ का इलाज करता है, मोहन की माँ उसे अपनी आखिरी ख्वाइश पूरी करने को कहती है, डॉक्टर भी यही सलाह देता है कि शायद उसकी शादी होने से उसकी माँ की सेहत में थोड़ा बहुत सुधार आये। घर के बाहर सभी पडोसी आपस में बातचीत करते है उतने में ही एक पडोसी जीवन जी स्वाभाव से बेहद लालची है।  वह मोहन से आकर बात करता है कि वह एक लड़की को जनता है जो उनकी मंगेतर बनकर आ सकती है मगर उसके पिता को इसके बदले कुछ रकम चाहिए।

मोहन घबराहट में जीवन से हामी भर देता है और कहता है कि जितनी जल्दी हो सके वह उस लड़की को लेकर आये, वह उसके पिता को पैसे दे देगा। जीवन तवायफ चम्पाबाई से सौदा करता है कि बस एक शाम के लिए उसको एक इंसान की मंगेतर बनना है। चम्पाबाई हां कर देती है, और जीवन के साथ मोहन के घर आती है।
 घर पहुँचते ही चम्पाबाई रजनी बनकर मोहन और उसकी माँ से मिलती है। रजनी को देखकर माँ बहुत खुश हो जाती है उस पर बहुत प्यार लुटाती है। वापस  घर आकर चम्पाबाई मोहन और उसकी माँ के व्यव्हार और इतने प्यार को सोचकर बहुत हंसती है कि दुनिया में ऐसे लोग भी होते हैं, जिनको आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है।

इसके बाद वह चम्पाबाई बनकर ग्राहकों का मन बहलाती है।  दूसरे दिन फिर मोहन की माँ रजनी से मिलने की ख्वाइश जाहिर करती है।  मोहन जीवन को बोलता है और फिर उस शाम चम्पाबाई रजनी बनकर घर आती है और मोहन की माँ आज रजनी के हाथों से खाना खाती है और उसको शादी की साड़ी और गहने देती है। यह देखकर रजनी को थोड़ा सा अजीब लगता है।

अपने घर आकर रजनी सोचती रहती है कि मोहन और उसकी माँ कितने अच्छे है।  उसके बाद चम्पाबाई का रजनी बनकर मोहन के घर आने का सिलसिला बन जाता है।  धीरे धीरे रजनी को मोहन और उसकी माँ से लगाव हो जाता है और दूसरी तरफ मोहन की माँ अपनी होने वाली बहू की सेवाएं पाकर ठीक होने लगती है।

मोहन की माँ का निस्वार्थ प्रेम देखकर रजनी यह फैसला करती है कि वह यह साड़ी और गहने और पैसे मोहन को वापस कर देगी, इन सब पर उसका कोई अधिकार नहीं है। रजनी यह सब कुछ वापस लौटने के लिए जब मोहन के घर जाती है तो मोहन उससे अपने प्रेम का इज़हार करता है मगर रजनी यह कहकर भाग जाती है कि वह उसके काबिल नहीं है।

दूसरे दिन चम्पाबाई ग्राहकों को अपना नृत्य दिखने से मना कर देती है जिस पर गुस्सा होकर लल्लू बाई उसको बहुत बुरा सुनाता है और जब लल्लू बाई को पता चलता है कि चम्पाबाई ने प्रतिज्ञा ली है कि वह अब कभी भी नृत्य नहीं करेगी और वह रजनी बनकर रहेगी तो वह चम्पाबाई को घर से निकाल देता है।

चम्पाबाई रजनी बनने का सोचती है मगर उसकी बदनामी मोहन तक पहुँच ही जाती है और मोहन उससे ना मिलने का प्रण लेता है और अपनी माँ को भी समझा देता है कि अब रजनी उनके जीवन में कभी नहीं आएगी।
लल्लू भाई का पूरा व्यापार ही चम्पाबाई पर निर्भर करता था, और वह अब ख़तम हो गया है तो गुस्से में वह मोहन की माँ से मिलने जाता है और उनको सब कुछ सच बता देता है, पहले तो वह नहीं मानती मगर जब मोहन बताता है तो वह रजनी से मिलने की बात करती है और उसी समय रजनी वहां आ जाती है और अपने किये की माफ़ी मांगती है  माँ के पैरों पर गिरकर।

मोहन की माँ रजनी को माफ़ कर देती है और मोहन और रजनी की शादी हो जाती है और रजनी चम्पाबाई से सिर्फ रजनी मोहन की पत्नी बन जाती है। 

Songs & Cast –  इस फिल्म में संगीत दिया है दत्ता नायक ने और फिल्म के गीतों को लिखा है साहिर लुधियानवी ने  और इन खूबसूरत गीतों को अपनी आवाज़ में पिरोया है लता मंगेशकर , मोहम्मद ,रफ़ी गीता दत्त, आशा भोंसले और भूपिंदर सिंह ने  – “औरत ने जन्म दिया मर्दों को”, “कहो जी तुम क्या  खरीदोगे “, “ऐसे वैसे ठिकाने पर जाना बुरा है “, “तोरा मनवा क्यों घबराए “, “आज क्यों हमसे पर्दा है “, “संभल ऐ दिल “

इस फिल्म में वैजयंतीमाला ने बेहद उम्दा अदाकारी दिखाई है, किस तरह से एक वेश्या को सम्पन्न परिवार  में आकर किस तरह एक आदर्श बहु का किरदार निभाना था, वैजयंतीमाला में इसमें चम्पाबाई और रजनी का किरदार निभाया है।  सुनील दत्त ने मोहन बनकर  फिल्म में उनका साथ दिया है और लीला चिटनिस  ने मोहन की माँ किरदार निभाया है। राधाकिशन  ने जीवन राम को निभाया है, मनमोहन कृष्णा लल्लू बाई के रूप में दिखे। 

इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 17 मिनट्स है और इसका निर्माण बी आर फिल्म्स बैनर के तहत हुआ था।

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