1950 के दशक की कोरियाई अभिनेत्रियाँ: सौंदर्य, संघर्ष और सिनेमा की सुनहरी यादें

सियोल की एक ठंडी शाम, 1954, एक खाली पड़े सिनेमा हॉल में एक युवती अपनी आँखों में आँसू छुपाते हुए पर्दे पर चल रहे दृश्य […]

साइलेंट सिनेमा और लोकेशन का अनोखा रिश्ता: पर्दे के पीछे की कहानी

1920 के दशक की एक सर्द शाम, मुंबई के चांदनी चौक में एक भीड़ जमा है। बीच सड़क पर एक विशाल सफेद कैनवास लटका हुआ […]

उड़िया सिनेमा का उदय: एक नई फिल्म क्रांति की शुरुआत

एक सुबह, भुवनेश्वर के एक सिनेमा हॉल के बाहर कतार लगी थी। टिकट खिड़की पर युवाओं का हुजूम “सिनेमा हॉल झुक जाएगा” के नारे लगा […]

हिदेको ताकामाइन: 1950 के दशक की जापानी सिनेमा की अमर अदाकारा

गर्मी की एक सुबह, टोक्यो की सड़कों पर चलते हुए, एक युवती ने स्टूडियो के गेट पर खड़े होकर सपने देखे होंगे। उसकी आँखों में […]

1980s की मलयालम फिल्मों में राजनीतिक और सामाजिक विषयों का गहरा असर

1980 का दशक मलयालम सिनेमा के इतिहास में एक स्वर्णिम युग के रूप में याद किया जाता है। यह वह दौर था जब फिल्में सिर्फ […]

1940s की सबसे चर्चित हॉलीवुड एक्ट्रेसेस: ग्लैमर, टैलेंट और स्टारडम की मिसाल

साल 1943, न्यूयॉर्क के एक थिएटर में कैसाब्लांका का प्रीमियर चल रहा है। स्क्रीन पर इंग्रिड बर्गमैन की आँखों में जो दर्द है, वह दर्शकों […]

1930s में फिल्मों की शूटिंग कैसे होती थी?

सुबह के चार बजे। बंबई के दादर इलाके में एक मकान के बाहर बैलगाड़ी रुकी। ड्राइवर ने ढेर सारे लकड़ी के डिब्बे उतारे—कुछ में बल्ब […]

1940 का दशक: बॉलीवुड सिनेमा की वह उथल-पुथल जिसने रचा इतिहास

साल 1942 की एक गर्म रात, बम्बई के मोहन स्टूडियो के सेट पर बल्बों की रोशनी में एक कैमरामैन पसीना पोंछते हुए बुदबुदाया, “फिल्म स्टॉक […]

मार्च ऑफ़ द फूल्स (1975): वो कोरियाई फिल्म जिसने युवाओं के दर्द को ‘बेवकूफ़ी’ का नाम दे दिया

साल 1975, दक्षिण कोरिया में सैन्य तानाशाही का दौर। युवाओं के सपनों पर लोहे के जूते चल रहे हैं, विरोध की आवाज़ें जेल की सलाखों […]