देव आनंद द्वारा बनाई गयी एक सुपरहिट फिल्म बाज़ी (Gambling) 1951 की एक थ्रिलर फिल्म थी जिसमे जहाँ एक तरफ पिता की चाहत अपनी बेटी की खुशियों के लिए थी तो वहीँ दूसरी तरफ एक प्रेमी का समर्पण अपने प्रेम के लिये।
बाज़ी एक क्लासिक बॉलीवुड हिंदी फिल्म है जो भारतीय सिनेमा में 6 अप्रैल 1951 को रिलीज हुई और इसका निर्देशन गुरु दत्त ने किया था। यह पहली ऐसी फिल्म थी जिसका लेखन बलराज साहनी ने किया था।
Story –
कहानी शुरू होती है मदन नाम के एक संपन्न युवक से, जो अपनी नोकरी चले जाने के कारण पैसों के आभाव में बहुत गरीबी में जिंदगी जीने को मजबूर हो जाता है। वह अपनी बीमार बहन मंजू के साथ एक झोपड़ी में रहता है।
जब बहुत ढूंढने पर भी नोकरी नहीं मिलती तो मदन जुआ खेलना शुरू कर देता है। हर दिन उसके जुए की रकम और समय बढ़ता चला जा रहा था। क्योंकि जुएं में उसका भाग्य हर समय उसका साथ देता था । और बहुत जल्द ही वह एक प्रोफेशनल जुआरी बन गया।इसके बाद एक दिन पेड्रो नाम का एक अजनबी उसे माणिक के बारे में बताता है , जिसे अपने स्टार क्लब होटल के लिए एक एम्प्लॉई की जरुरत है। यह सुनकर मदन उसके साथ होटल जाता है, जहाँ उसकी मुलाकात एक डांसर लीना से होती है। माणिक के द्वारा जो जॉब मदन को ऑफर की जाती है काम सही ना होने की वजह से वह उसको ठुकरा देता है।
इसके कुछ समय बाद मदन की मुलाकात सुसंस्कृत डॉ रजनी से होती है। जिसने अपने इलाके के गरीबों और जरूरतमंदों के इलाज के लिए एक मुफ्त क्लिनिक खोला है और वह बीमारी से पीड़ित मदन की बहन का इलाज कर रही है। समय बीतता जाता है और दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाते है और यह आकर्षण जल्द ही प्यार में बदल जाता है। रजनी के पिता को मदन बिलकुल भी पसंद नहीं था। उसकी गरीबी और उसका काम (जुआ ) दोनों से ही उन्हें नफरत है। वह मदन को रजनी से दूर रहने की चेतावनी भी देते हैं , मगर मदन नहीं मानता।
और बहुत जल्द ही रजनी के पिता उसका विवाह उसके बचपन के दोस्त इंस्पेक्टर रमेश से तय कर देते हैं,जो उससे प्यार करता है। इधर मदन के सामने कुछ ऐसी परेशनिवां आ जाती हैं कि उसे स्टार क्लब की नोकरी को स्वीकार करना पड़ता है। कुछ ही समय में क्लब डांसर लीना उसकी अच्छी दोस्त बन जाती है। और मदन उसके साथ उसकी परेशानियों और विचारों पर चर्चा करता रहता है।
एक दिन मदन और लीना दोनों साथ में होते हैं, तभी एक व्यक्ति सामने आकर मदन पर पिस्टल से फायरिंग करता है तभी सामने लीना आकार उसको बचा लेती है। मगर उसमे लीना को गोली लग जाती है और उसकी मौत हो जाती है। तभी इंस्पेक्टर रमेश वहां आ जाता है और मदन को लीना की हत्या करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लेता है।
जब तक मदन कुछ भी समझ पाता पुलिस उसको जेल में डाल देती है, क्योंकि लीना की हत्या जिस हतियार (पिस्टल) से हुयी थी उस पर फिंगर प्रिंट्स मदन के थे। यह हत्या रजनी के पिता के द्वारा रचाई गयी एक साज़िश थी। क्योकि उसके पिता मदन से नफरत करते हैं और वह नहीं चाहते कि उनकी बेटी का भविष्य मदन के साथ बर्बाद हो जाये। इतना ही नहीं वह मदन को चुप रहने की धमकी भी देते हैं वरना वह उसकी बहन की भी हत्या कर देंगे। मदन को अदालत फाँसी की सजा सुनाती है। मदन खामोश रहता है और सुबह 6 बजे फांसी की सजा होने का इंतज़ार करता है।
इंस्पेक्टर रमेश को मदन की बेगुनाही के कुछ सबूत मिलते हैं। और उसे जरा सा भी समय नहीं लगता यह समझने में कि यह किसने किया होगा। और वह रजनी के पिता के लिए एक जाल बिछाता है और उन्हें विश्वास दिलाता है कि मदन को फाँसी दे दी गई है, और इस खुशी में, वह अपना गुनाह कबूल कर लेते हैं। फिर, रजनी के पिता को गिरफ्तार कर लिया जाता है और मदन को जुआ गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में तीन महीने की सजा सुनाई जाती हे। सजा काटने के बाद वह रजनी से विवाह कर लेता है।
Songs & Cast –
इस फिल्म में संगीत दिया है एस डी बर्मन ने और इन गीतों को लिखा है साहिर लुधियानवी ने -“सुनो गजर क्या गाए”,”देख के अकेली मोहे बरखा सताए”, “ये कौन आया क्या मेरी दिल में”, “आज की रात पिया”,”तुम भी ना भूलो बालम”, “शर्माये कौन घबराए काहे” और इन गीतों को अपनी आवाज़ से सजाया है गीता दत्त,शमशाद बेगम और किशोर कुमार ने।
फिल्म में देव आनंद ने मदन का किरदार निभाया और गीता बाली ने क्लब डांसर लीना का । डॉक्टर रजनी के किरदार में कल्पना कार्तिक दिखी और उनके पिता को निभाया के एन सिंह ने, और जहाँ इंस्पेक्टर रमेश के किरदार में कृष्ण धवन नज़र आये।
फिल्म की अवधि 2 घंटे और 28 मिनट्स हैं।
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