बडवारा बंधु एक कन्नड़ फिल्म, जो दक्षिण भारतीय सिनेमा में दिसम्बर १९७६ में रिलीज़ हुयी थी। फिल्म में राजकुमार और जयमाला ने अपने अभिनय से इस पारिवारिक फिल्म को सुपरहिट फिल्म बना दिया था। फिल्म का निर्देशन विजय ने किया था।
यह फिल्म क्लासिक मूवी कलेक्शन में एक अनोखा मोती साबित हुआ, जो एक ऐसे युवा पर आधारित है जिसने जीवन की हर परिस्थिति का सामना अपनी समझदारी और ईमानदारी से किया और अंत में सभी चीज़ों को सही भी कर दिया।
Story –
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक युवा रंगनाथ से, जो बी.ए. स्नातक होने के बावजूद भी और एक अच्छी नौकरी ना मिलने के कारण,एक होटल अन्नपूर्णा में एक छोटी सी नौकरी करनी पड़ती है। इस होटल का मालिक बद्रीनाथ होता है। रंगनाथ को अपने पिता सम्पत के इलाज और अपनी गरीबी को दूर करने के लिए पैसों की बहुत जरुरत होती है।
रंगनाथ का बचपन बहुत सम्पन्नता में बीता थ। सम्पत एक बहुत बड़े व्यापारी थे और अपने मित्र नागप्पा के धोखे के कारण उन्हें अपना सब कुछ खोना पड़ता है।
रंगनाथ को उसके व्यव्हार के कारण होटल में सभी पसंद करते हैं। वह सभी की मदद और सहायता करता। एक दिन वह एक लड़की सुशीला को आत्महत्या करने से बचाता है और उसे जीने की एक नई राह दिखता है और उसकी मदद करता है। इसके बाद वह एक शराबी चयपथी की शराब छुड़वाकर उसको जीने की एक नयी दिशा बताता है। इतना ही नहीं वह अपने आस पास रहने वाले सभी श्रमिकों से जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान भी निकालता है।
रंगनाथ की इस दिलेरी और ईमानदारी बद्रीनाथ और उसके बेटे गोपीनाथ को बहुत बुरी लगती है। क्योकि हर समय किसी ना किसी वजह से दोनों एक दूसरे के विपरीत खड़े हो जाते हैं। रंगनाथ और सुशीला धीरे धीरे एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। रंगा को पता चलता है किसुशीला अपने घर से भागी है क्योकि उसके पिता ने उसकी सहेली राधा से विवाह किया है।
रंगा, सुशीला के पिता को एक लेटर भेजता है और उनको समझाने की कोशिश करता है कि सुशीला को वापस घर आने दे , मगर वह इंकार कर देते हैं। फिर फिल्म फ्लैशबैक में चली जाती ही जहाँ पता चलता है कि रंगनाथ बद्री का सबसे बड़ा पुत्र है। जिसको बद्री ने बहुत कम उम्र में कि सम्पत को सौंप दिया था। ताकि उसका बेटा गरीबी और भुखमरी में ना मर जाये।
यह बात जब बद्री की पत्नी अन्नपूर्णा को पता चला तो बेटे के गम में बीमार अन्नपूर्णा बहुत जल्द ही मर जाती है। बद्री अपनी पत्नी की मौत के लिए खुद को दोषी मानता है और फैसला करता है किवह अपने बेटे को खोजना शुरू करता है , मगर उसको सफलता नहीं मिलती। इसी बीच बद्री अपने छोटे बेटे गोपी का विवाह सुशीला से तय कर देता है।
बद्री रंगनाथ को सुशीला को भूलने के लिए कहता है मगर वह मना कर देता है तो बद्री और गोपी उसके खिलाफ साज़िश करते हैं। हालांकि, योजना विफल हो जाती है। रंगनाथ मजदूरों के वेतन बढ़ाने से इनकार करने के लिए बद्री के खिलाफ सत्याग्रह करता है। नागप्पा, बद्री को रंगनाथ के पिता को किडनैप करने कि सलाह देता है। बद्री और सम्पत का सामना होता है और उसको अपने बड़े बेटे रंगनाथ के बारे में पता चलता है। वह बहुत खुश होता है और ये दुश्मनी ख़त्म कर देता है। गोपी को भी वह सच बताता है और अंत में पूरा परिवार एक साथ आ जाता है और रंगनाथ का विवाह सुशीला से हो जाता है।
Songs & Cast – फिल्म को संगीत से सजाया है एम रंगा राव ने और इन गीतों को बोल से पिरोया है उदय शंकर ने – “नागा बेदा नागा बेदा ನಾಗ ಬೇಡಾ ನಾಗ ಬೇಡಾ”, “निन्ना कंगला बिसिया हनिगलु ನಿನ್ನಾ ಕಂಗಲಾ ಬಿಸಿಯಾ ಹನಿಗಲು”, “निन्ना नुदियु होन्ना नुदियु ನಿನ್ನಾ ನುಡಿಯು ಹೊನ್ನಾ ನುಡಿಯು “, “नैधिल्यु हुनिमय्या ನೈಧಿಲ್ಯು ಹುನ್ನಿಮೇಯ” और इनको गाया है पी बी श्रीनिवास और राजकुमार ने।
फिल्म में राजकुमार ने मुख्य किरदार रंगनाथ का परिचय अपनी अदाकारी से बहुत ही सरल भाषा में समझाया है और उनका साथ दिया है जयमाला ने सुशीला के रूप में , बालकृष्ण ( नागप्पा ), वज्रमुनि ( गोपीनाथ), संपथ ( रंगनाथ के पिता )।
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 21 मिनट्स है।
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