• About
  • Advertise
  • Careers
  • Contact
Friday, July 18, 2025
  • Login
No Result
View All Result
NEWSLETTER
Movie Nurture
  • Bollywood
  • Hollywood
  • Indian Cinema
    • Kannada
    • Telugu
    • Tamil
    • Malayalam
    • Bengali
    • Gujarati
  • Kids Zone
  • International Films
    • Korean
  • Super Star
  • Decade
    • 1920
    • 1930
    • 1940
    • 1950
    • 1960
    • 1970
  • Behind the Scenes
  • Genre
    • Action
    • Comedy
    • Drama
    • Epic
    • Horror
    • Inspirational
    • Romentic
  • Bollywood
  • Hollywood
  • Indian Cinema
    • Kannada
    • Telugu
    • Tamil
    • Malayalam
    • Bengali
    • Gujarati
  • Kids Zone
  • International Films
    • Korean
  • Super Star
  • Decade
    • 1920
    • 1930
    • 1940
    • 1950
    • 1960
    • 1970
  • Behind the Scenes
  • Genre
    • Action
    • Comedy
    • Drama
    • Epic
    • Horror
    • Inspirational
    • Romentic
No Result
View All Result
Movie Nurture
No Result
View All Result
Home 1970

Chinatown (1974): वह फ़िल्म जिसने हॉलीवुड को सिखाया ‘अंधेरे में उजाला ढूंढना’

by Sonaley Jain
March 31, 2025
in 1970, Films, Hindi, Hollywood, Movie Review, old Films, Top Stories
0
Movie Nurture: Chinatown (1974): वह फ़िल्म जिसने हॉलीवुड को सिखाया 'अंधेरे में उजाला ढूंढना'
0
SHARES
0
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

क्या कोई फ़िल्म आपकी ज़िंदगी को बदल सकती है? अगर हाँ, तो रोमन पोलांस्की की “Chinatown” उन चंद फ़िल्मों में से एक है जो आपको यह यकीन दिला देगी कि सिनेमा सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सदमा है—एक ऐसा सदमा जो आपको समाज के उस आईने के सामने खड़ा कर देता है जिसे देखने से हम अक्सर कतराते हैं। 1974 में रिलीज़ हुई यह नॉयर क्लासिक आज भी उतनी ही ताज़ा और मनोरंजक लगती है, जितनी 50 साल पहले थी। यहाँ कोई हीरो नहीं, कोई हैप्पी एंडिंग नहीं… बस एक कड़वा सच है जो आपके गले में अटक जाएगा।

Movie Nurture: Chinatown (1974): वह फ़िल्म जिसने हॉलीवुड को सिखाया 'अंधेरे में उजाला ढूंढना'

स्टोरी लाइन: जब ‘पानी’ बन जाए खून की नदी

फ़िल्म की शुरुआत लॉस एंजेलिस के धूप-भरे दिनों से होती है, मगर यह धूप झूठी जैसी लगती है। जेक गिट्टीस (जैक निकोलसन), एक प्राइवेट डिटेक्टिव है, जिस को लगता है कि वह सिर्फ़ एक अमीर औरत (फेय डनावे) के पति की नज़रबंदी कर रहा है। मगर जल्द ही उसको  पता चलता है कि यह केस पानी की राजनीति से जुड़ा हुआ है। शहर के बाहर सूखा है, मगर कुछ लोगों के खेत हरे-भरे हैं। ज़मीन की लूट, नेताओं का भ्रष्टाचार, और परिवारों का टूटना—यह सब एक साथ उस रहस्य में गुथा हुआ है जिसे सुलझाने की कोशिश में जेक खुद उलझता चला जाता है।

यहाँ पानी सिर्फ़ एक संसाधन नहीं, बल्कि सत्ता का प्रतीक है। फ़िल्म का सबसे डरावना पात्र कोई गुंडा नहीं, बल्कि एक “सज्जन” नोह क्रॉस (जॉन हस्टन) है, जो पानी के दम पर पूरे शहर को अपनी मुट्ठी में कर लेता है। यह वही किरदार है जो आपको याद दिलाता है कि “बुराई अक्सर सूट-बूट में आती है।”

जैक निकोलसन: वह एक्टर जिसकी आँखों में छुपा है दर्द

जैक निकोलसन ने जेक गिट्टीस को सिर्फ़ निभाया नहीं—वह उसमें जीने लगे थे। उनका यह रोल उनकी करियर की सबसे परिपक्व अदाकारी है। गिट्टीस एक ऐसा डिटेक्टिव है जो खुद को “स्मार्ट” समझता है, मगर जल्द ही पता चलता है कि वह भी इस गंदे खेल का एक मोहरा है। निकोलसन की मुस्कुराहट में एक व्यंग्य छुपा है, और उनकी आँखों में एक ऐसी थकान जो कहती है, “मैंने बहुत कुछ देख लिया है।”

एक सीन में, एक गुंडा उनकी नाक पर चाकू रखकर कहता है, “तुम्हारी नाक को दखलंदाज़ी की आदत है।” और फिर वह नाक काट देता है। असल ज़िंदगी में यह चाकू असली था, और निकोलसन का दर्द असली था। यह सीन देखकर आपकी साँसें रुक जाएँगी—न सिर्फ़ हिंसा की वजह से, बल्कि इसलिए कि यह फ़िल्म की पूरी कहानी को समेट देता है: “सच्चाई की कीमत अक्सर खून होती है।”

फेय डनावे: खूबसूरती जो एक श्राप बन जाए

फेय डनावे का किरदार, इवलिन मुलरे, सिनेमा की उन चंद औरतों में से है जो आपको हफ़्तों तक सताती रहेंगी। वह एक ऐसी औरत है जिसके चेहरे पर मासूमियत का नकाब है, मगर आँखों में एक गहरा रहस्य। जब वह कहती है, “वह मेरी बहन है… वह मेरी बेटी है,” तो आपके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह डायलॉग सिर्फ़ एक प्लॉट ट्विस्ट नहीं, बल्कि उस समाज पर एक तंज़ है जहाँ औरतों को उनके अतीत का बोझ ढोना पड़ता है।

डनावे की अदाकारी इतनी नाज़ुक है कि आप उनके चेहरे पर हर झूठ को पढ़ सकते हैं। जब वह आखिरी सीन में गोली खाकर गिरती है, तो आपको एहसास होता है कि यह फ़िल्म औरतों की त्रासदी की भी कहानी है—एक ऐसी त्रासदी जहाँ उन्हें चाहे जितना भाग लो, पुरुषों के खेल में मरना ही होता है।

Movie Nurture: Chinatown (1974): वह फ़िल्म जिसने हॉलीवुड को सिखाया 'अंधेरे में उजाला ढूंढना'

रोमन पोलांस्की: अंधेरे को कैमरे में कैद करने वाला शख्स

पोलांस्की ने यह फ़िल्म तब बनाई थी जब वह खुद एक व्यक्तिगत त्रासदी से गुज़र रहे थे—1969 में उनकी प्रेग्नेंट पत्नी, शेरोन टेट, को चार्ल्स मैनसन के गैंग ने बेरहमी से मार डाला था। शायद इसीलिए “Chinatown” इतनी निर्मम और निराशावादी है। पोलांस्की ने लॉस एंजेलिस की चकाचौंध को एक ऐसे शहर में बदल दिया जहाँ हर कोना अंधेरे से भरा है।

उनकी कैमरा वर्क आपको बेचैन कर देती है। वाइड शॉट्स में दिखने वाले सूखे खेत, क्लोज़-अप्स में पसीने से तर चेहरे, और शैडोज़ जो पात्रों से लंबे होते जाते हैं—यह सब एक साथ मिलकर एक ऐसा माहौल बनाते हैं जहाँ आपको हर पल डर लगता है कि “कुछ बुरा होने वाला है।”

आखिरी सीन: जिसने हॉलीवुड को हिला दिया

फ़िल्म का अंत वह है जिसे याद करके आज भी दर्शक सिहर उठते हैं। जेक गिट्टीस बेबसी से देखता रह जाता है कि उसकी प्रेमिका मर जाती है, उसका दोस्त उसे धोखा देता है, और नोह क्रॉस अपनी बेटी/पोती को लेकर चला जाता है। पुलिस उसे चेतावनी देती है: “भूल जाओ यह सब, जेक… यह चाइनाटाउन है।”

यह डायलॉग सिर्फ़ एक जगह का नाम नहीं, बल्कि उस सिस्टम का प्रतीक है जहाँ न्याय मर चुका होता है। पोलांस्की ने इस एंडिंग के साथ हॉलीवुड के “हैप्पी एंडिंग” के फॉर्मूले को तोड़ दिया। यहाँ बुराई जीत जाती है, और हीरो की हैसियत एक मज़ाक बनकर रह जाती है।

थीम: आज भी क्यों जलती है यह फ़िल्म?

  1. भ्रष्टाचार का सर्पिल: “Chinatown” दिखाती है कि सत्ता और पैसे के आगे आम आदमी बेबस है। आज भी, चाहे वह बड़े कॉर्पोरेट हों या सरकारें, यह कहानी हर जगह दोहराई जाती है।
  2. परिवार का अँधेरा पक्ष: नोह क्रॉस का अपनी बेटी के साथ संबंध उस समाज पर कड़वा व्यंग्य है जहाँ “परिवार” के नाम पर अपराध छुपाए जाते हैं।
  3. अकेलापन: जेक गिट्टीस की तरह, हर इंसान किसी न किसी “चाइनाटाउन” में फँसा हुआ है—एक ऐसी जगह जहाँ उसकी कोई नहीं सुनता।

संगीत: जज़्बातों की बारिश

फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर (जैरी गोल्डस्मिथ द्वारा) आपको 1940s के लॉस एंजेलिस में ले जाता है। ट्रंपेट की वह धुन जो हर मोड़ पर बजती है, वह न सिर्फ़ नॉयर जेनर की याद दिलाती है, बल्कि एक चेतावनी भी है—“सावधान, तुम जिस रास्ते जा रहे हो, वहाँ कोई रोशनी नहीं है।”

आलोचना: क्या यह फ़िल्म परफेक्ट है?

नहीं। कुछ लोग कहते हैं कि प्लॉट बहुत जटिल है, या फेय डनावे का किरदार थोड़ा ओवर-द-टॉप लगता है। मगर यही तो इसकी खूबसूरती है—यह फ़िल्म आपको आराम से बैठने नहीं देती। आपको लगातार सोचना पड़ता है, डरना पड़ता है, और अंत में एक ऐसे सवाल के साथ छोड़ दिया जाता है जिसका कोई जवाब नहीं: “क्या सच्चाई जानना हमेशा अच्छा होता है?”

Movie Nurture: Chinatown (1974): वह फ़िल्म जिसने हॉलीवुड को सिखाया 'अंधेरे में उजाला ढूंढना'

फ़िल्म की विरासत: आज के सिनेमा पर असर

“Chinatown” ने हॉलीवुड को सिखाया कि दर्शकों को बेवकूफ़ नहीं समझना चाहिए। यह फ़िल्म “द डार्क नाइट” (2008) से लेकर “नो कंट्री फॉर ओल्ड मेन” (2007) तक हर उस मॉडर्न क्लासिक की दादी है जहाँ विलन जीत जाता है। यहाँ तक कि भारतीय सिनेमा में भी, “गैंग्स ऑफ़ वासेपुर” जैसी फ़िल्मों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है।

तो… देखें या नहीं?

अगर आप सिर्फ़ मस्ती के लिए फ़िल्में देखते हैं, तो “Chinatown” आपके लिए नहीं है। यह फ़िल्म आपको एक ऐसे कुएँ में धकेल देगी जहाँ से निकलने का रास्ता नहीं है। मगर अगर आप उन लोगों में से हैं जो सिनेमा को ज़िंदगी का आईना मानते हैं, तो यह फ़िल्म आपकी सोच को हमेशा के लिए बदल देगी।

एक बात और: इस फ़िल्म को देखने के बाद, आप कभी भी “पानी” को सिर्फ़ पानी नहीं समझ पाएँगे। यह आपको याद दिलाएगी कि हर बूंद के पीछे कोई न कोई खूनी राज छुपा होता है।

अंतिम शब्द:
“Chinatown” सिर्फ़ एक मूवी नहीं—यह एक चेतावनी है। एक ऐसी चेतावनी जो हमें बताती है कि “इतिहास खुद को दोहराता है, क्योंकि इंसान कभी नहीं सीखता।” और शायद, यही इसकी सबसे बड़ी विडंबना है।

Sonaley Jain

Sonaley Jain

Lights, camera, words! We take you on a journey through the golden age of cinema with insightful reviews and witty commentary.

Next Post
Movie Nurture: Five Golden Flowers (1959): चीन की वो फिल्म जिसमें खिले थे प्यार और समाजवाद के रंग

Five Golden Flowers (1959): चीन की वो फिल्म जिसमें खिले थे प्यार और समाजवाद के रंग

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recommended

Movie Nurture:jesal toral

जेसल तोरल (1971): ए सिनेमैटिक टेल ऑफ़ लव, रिडेम्पशन, एंड स्पिरिचुअल अवेकनिंग

2 years ago
MovieNurture: Greta Garbo

Greta Garbo : ऑल टाइम फेवरेट एक्ट्रेस

4 years ago

Popular News

  • Movie Nurture: क्लासिक स्टार्स की आखिरी फिल्में: वो अंतिम चित्र जहाँ रुक गया समय

    क्लासिक स्टार्स की आखिरी फिल्में: वो अंतिम चित्र जहाँ रुक गया समय

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • इन गानों को ना भूल पाये हम – ना भूल पायेगी Bollywood!

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • Late Spring: ओज़ू की वो फिल्म जो दिल के किसी कोने में घर कर जाती है

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • जब तक फिल्म चुप थी, लोग दूर थे…जब बोली, सबके दिल से जुड़ गई!

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • Badavara Bandhu : क्लासिक मूवी कलेक्शन का एक अनोखा मोती

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • दिलीप कुमार: वो पांच फ़िल्में जहाँ उनकी आँखों ने कहानियाँ लिखीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • Bride of Frankenstein (1935): सिर्फ एक मॉन्स्टर मूवी नहीं, एक मास्टरपीस है ये फिल्म!

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Connect with us

Newsletter

दुनिया की सबसे अनमोल फ़िल्में और उनके पीछे की कहानियाँ – सीधे आपके Inbox में!

हमारे न्यूज़लेटर से जुड़िए और पाइए क्लासिक सिनेमा, अनसुने किस्से, और फ़िल्म इतिहास की खास जानकारियाँ, हर दिन।


SUBSCRIBE

Category

    About Us

    Movie Nurture एक ऐसा ब्लॉग है जहाँ आपको क्लासिक फिल्मों की अनसुनी कहानियाँ, सिनेमा इतिहास, महान कलाकारों की जीवनी और फिल्म समीक्षा हिंदी में पढ़ने को मिलती है।

    • About
    • Advertise
    • Careers
    • Contact

    © 2020 Movie Nurture

    No Result
    View All Result
    • Home

    © 2020 Movie Nurture

    Welcome Back!

    Login to your account below

    Forgotten Password?

    Retrieve your password

    Please enter your username or email address to reset your password.

    Log In
    Copyright @2020 | Movie Nurture.