कभी कभी कुछ फिल्मे ऐसी बनती हैं जो सिर्फ हमें हसाती ही नहीं हैं, बल्कि हमारे दिलों में हमेशा के लिए जीवित हो जाती हैं। जब भी उस फिल्म का जिक्र करो तो पूरी कहानी सामने आ जाती है, वो भी एक मुस्कराहट के साथ।
चुपके चुपके, ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्मित एक ऐसी ही फिल्म है। यह फिल्म 1975 में रिलीज़ हुयी कुछ संजीदा और हास्य कलाकारों के साथ।
Story –
फिल्म प्रोफ़ेसर परिमल त्रिपाठी से शुरू होती है, जो कि एक कॉलेज में बॉटनी पढ़ाते हैं। परिमल छुट्टियाँ मानाने एक हिल स्टेशन पर जाता है, जहाँ उसे एक महिला कॉलेज की बॉटनी स्टुडेंट सुलेखा चतुर्वेदी से मोहब्बत हो जाती है। जिस बंगले में सुलेखा और उसकी सहेलियां रुकी होती हैं वहां के बुजुर्ग चौकीदार को परिमल उसके गांव भेजता है, बीमार पोते से मिलने के लिए और परिमल बुजुर्ग की जगह बंगले में चौकीदारी करने लगता है। इस बात का पता चलते ही सुलेखा भी परिमल से मोहब्बत करने लगती है। दोनों शादी कर लेते हैं, सुलेखा अपने जीजा राघवेंद्र की बहुत इज्जत करती है और उन्हें बहुत ही बुद्धिमान और अपना आदर्श भी मानती है, कि उसके जीजाजी इंसान को एक पल में पहचान जाते हैं।
परिमल स्वभाव से बहुत ही जिंदादिल और मज़ाकिया होता है। सुलेखा से अपने जीजाजी की इतनी तारीफ सुनकर वो सोचता है कि एक बार जीजाजी से मिला जाये, पता चल जायेगा कि में ज्यादा बुद्धिमान हूँ या फिर वो। जीजाजी हरिपद भैया को चिट्ठी में एक ड्राइवर को भेजने का बोलते हैं क्योकि उनका ड्राइवर जेम्स डिकोस्टा अच्छे से हिंदी नहीं बोल पाता है।
परिमल जीजाजी के यहाँ पर ड्राइवर प्यारे मोहन इलाहाबादी बनकर पहुँच जाता है। उसकी हिंदी सुनकर जीजाजी बहुत ही खुश हो जाते हैं। उसके बाद कहानी में ट्विस्ट आता है जब सुलेखा भी जीजाजी के यहाँ आ जाती है। जीजाजी को हमेशा यह लगता है कि सुलेखा अपनी शादी से खुश नहीं है और वह प्यारे मोहन को बहुत पसंद करती है।
इसके बाद कहानी में परिमल के दोस्त सुकुमार सिन्हा की एंट्री घर में सुलेखा के पति परिमल बन कर होती है और सुकुमार जो कि एक इंग्लिश के प्रोफ़ेसर हैं , अपने ही दोस्त पी के श्रीवास्तव की पत्नी की बहन वसुधा से प्रेम करते हैं। इसके बाद कहानी बढ़ने के साथ – साथ कई मज़ेदार किस्से जुड़ते जाते हैं और बहुत सारी गलतफहमियां भी बढ़ती जाती हैं।
जीजाजी का सुलेखा और प्यारे मोहन पर शक करना, वसुधा का यह समझना कि वह सुकुमार और सुलेखा के प्रेम के बीच में आ गयी है, प्यारे मोहन का जीजाजी की हिंदी को सुधारना और ऐसे बहुत सारे मज़ेदार दृश्य हैं फिल्म में।
फिल्म के अंत में सुकुमार और वसुधा मंदिर में शादी कर लेते हैं और प्यारे मोहन को मारकर परिमल वापस आ जाता है और सुलेखा यह मान जाती हैं कि उसके जीजाजी कितने भी बुद्धिमान हो मगर गलतियां तो सभी से हो जाती हैं , इंसान को पहचानने में।
फिल्म की कहानी में यह बताने की कोशिश की गयी है कि चाहे कितना भी अनुभव हो मगर जब नयी सोच आती है तो उसकी उड़ान भी अलग होती है और उसकी दिशा भी । अनुभव नयी सोच की उड़ान में एक सहयोग मात्रा ही होता है।
Songs & Cast – अब के सजन सावन में …….. बागों में कैसे ये फूल खिले ……… सा रे ग मा …….. चुपके चुपके चल रे पुरवइया . ऐसे सुरीले गाने हैं इस फिल्म में।
फिल्म में धर्मेंद्र , अमिताभ बच्चन ,जया बच्चन, शर्मीला टैगोर , ओम प्रकाश, असरानी और अन्य कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ कहानी को एक दिलचस्प मोड़ दिया है।
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