मदर इंडिया एक ऐसी ब्लॉक बस्टर फिल्म है जिसने भारतीय सभ्यता, संस्कृति और समाज का समायोजन दिखाया है। यह फिल्म 1927 में एक अमेरिकन इतिहारकार Katherine Mayo द्वारा पब्लिश एक नॉवेल पर आधारित है। हिंदी सिनेमा में यह फिल्म 14 फरवरी 1957 को रिलीज़ हुयी थी। इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक दोनों ही महबूब खान थे।
नेशनल और इंटरनेशनल अवॉर्ड विनिंग इस फिल्म में एक किसान के जीवन की हर एक मज़बूरी को बड़ी ही गंभीरता से दिखाया गया है और यह भी बताया है कि किस तरह एक माँ अपने बच्चों और परिवार की खुशियों के लिए किसी भी तरह का त्याग कर सकती है।
माँ में समायी होती है आपकी पूरी दुनिया ,
और आप में समायी होती है माँ की पूरी दुनिया।
Story –
कहानी शुरू होती है एक गाँव में नहर बनने से और जिसका उट्घाटन होता है गांव की माँ राधा के हाथों से। राधा नहर को देखती है और फिर खो जाती है उस हर संघर्ष में जो उसने आज तक अपने जीवन में किया है और वह याद करती है कि कैसे एक छोटे से गाँव की गरीब लड़की राधा का विवाह दूसरे गाँव के एक लड़के शामू से होता है और इस शादी के लिए शामू की माता ने सुखीलाल से कर्जा लिया था।
महज़ 500 रुपये का क़र्ज़ शामू और राधा को जीवन भर की गरीबी के चक्रव्यूह में फॅसा देता है। यह बात सरपंच तक जाती है और सरपंच का फैसला सुखीलाला के हक़ में जाता है और शामू को 500 रुपये के ब्याज के तौर पर अपनी पूरी फसल का एक तिहाई हिस्सा सुखीलाल को देना होगा। शामू, राधा और उनके तीनों बच्चे गरीबी में साथ रहने की आदत डाल चुके हैं मगर शामू अपने परिवार को हर ख़ुशी देना चाहता है।
शामू अपनी गरीबी और सुखीलाला के कर्ज़ से मुक्त होने के लिए अपने खेत में और भी ज्यादा मेहनत करनी शुरू कर देता है, जिसमे उसका साथ उसकी पत्नी राधा देती है। एक दिन जुताई करते – करते पत्थर के नीचे शामू के दोनों हाथ कुचल जाते हैं और उन्हें काटना पड़ता है, जिससे वह खेती करने में असमर्थ हो जाता है। शामू बहुत दुखी होता है मगर राधा उसको संभालती है और खेती का कार्य सारा खुद करने लगती है। फिर भी शामू को अपनी बेबसी और लोगो के तानों ने इतना परेशां कर दिया था कि वह अपने परिवार को छोड़कर हमेशा के लिए चला जाता है और उसके जाने के कुछ दिनों के बाद ही उसकी माँ की भी मृत्यु हो गयी।
राधा अपने तीनों बच्चों के साथ खेती के कार्य को चालू रखती है और अब राधा का एक ही मकसद होता है कि वह अपने तीनो बच्चों की परवरिश अच्छे से करे और सुखीलाला का कर्ज़ उतार सके। सुखीलाला गरीबी से छुटकारा पाने और कर्ज़ माफ़ी के लिए राधा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखता है, जिसे वह साफ़ मना कर देती है।
कुछ समय बाद गाँव में एक बड़ा तूफ़ान आता है, जिससे सभी गांव वालों की पूरी फसल नष्ट हो जाती है और सभी लोग गांव छोड़कर जाने का फैसला कर लेते हैं मगर राधा के समझाने पर सभी वहीँ रहकर फिर से गांव को बसाने की कोशिश में लग जाते हैं। इस तूफ़ान में राधा ने अपना सबसे छोटा बेटा भी खो दिया।
धीरे – धीरे वक्त आगे बढ़ता है और राधा के दोनों बेटे बिरजू और रामू बड़े हो गए। जहाँ रामू बहुत सरल और शांत स्वभाव का है तो वहीँ बिरजू उसके विपरीत, वह गांव की सभी लड़कियों को बहुत परेशां करता है। मन ही मन बिरजू गुरूजी की बेटी चंद्रा को पसंद करता है। एक दिन बिरजू का झगड़ा सुखीलाला से हो जाता है कर्ज़ को लेकर और वह खता पढ़ने की बात करता है फिर उसको पता चलता है कि गांव वालों में से कोई भी पढ़ा लिखा नहीं है।
चंद्रा पढ़ी लिखी होती है तो बिरजू उसके पास कर्ज़ का हिसाब समझने के लिए जाता है। चंद्रा उसको बताती है कि ब्याज़ उसको जीवन भर देना होगा और अंत में ज़मीन भी सुखीलाला की हो जाएगी और मूल वैसा का वैसा ही रह गया। बिरजू को यह बात समझ आ गयी थी कि बरसों से साहूकार हर किसान का शोषण करता आ रहा है, कुछ रुपये उधार देने के चक्कर में वह हर किसान को जीवन भर का अपना गुलाम बना लेता है।
बिरजू बचपन में हुए सुखीलाला के अत्याचारों का बदला लेने के लिए एक दिन सुखीलाला और उसकी बेटी पर हमला कर देता है, जिसकी वजह से बिरजू गांव से निकाला जाता है और वह डाकुओं की टोली में शामिल होकर डाकू बन जाता है। सुखीलाला अपनी बेटी का विवाह दूसरे गांव में तय करता है, विवाह के दिन बिरजू सुखीलाला की बेटी को उठा कर ले जाने की कोशिश करता है, राधा बहुत समझाती है और ऐसा ना करने को कहती है, मगर बिरजू नहीं मानता इसके बाद राधा बिरजू को गोली मार देती है।
बिरजू अपनी माँ राधा की बाँहों में अपना दम तोड़ देता है।और कहानी वर्तमान में आ जाती है जहाँ नहर में आते हुए पानी को देखकर गांव वालों को अपनी हर समस्या का समाधान इस पानी में दिखने लगता है इसी के साथ फिल्म का भी अंत हो जाता है।
Songs & Cast –
फिल्म में संगीत दिया है नोशाद ने और उन्होंने इसे 12 अलग – अलग गानों से सजाया है। “ना मै भगवान् हूँ “, “ओ मेरे लाल आजा “, “मतवाला जिया डोले पिया “, “दुःख भरे दिन बीते रे भैया “, “नगरी -नगरी द्वारे -द्वारे “, “दुनिया में हम आये हैं “, “ओ गाड़ीवाले ” और अन्य गानों को लता मंगेशकर , मन्नाडे , मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले , उषा मंगेशकर और शमशाद बेगम ने गाया है।
नरगिस ने राधा बनकर इस फिल्म में एक ऐसी माँ के किरदार निभाया है जो हर तकलीफ को सह जाती है सिर्फ अपने बच्चों के लिए। इस किरदार को असल रूप में उन्होंने जिया है। राजेंद्र कुमार ( रामू ), सुनील दत्त (बिरजू ), राज कुमार ( शामू ), कुमकुम (चंपा ) और अन्य अदाकारों ने उनका साथ दिया है।
यह फिल्म की अवधि 2 घंटे और 52 मिनट्स (172 मिनट ) की है।
Location – इस फिल्म को मुंबई के महबूब स्टूडियो के अलावा भारत के महाराष्ट्र , गुजरात और उत्तर प्रदेश के कई खूबसूरत गावों में फिल्माया गया है।
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