हर इंसान की डोर रिश्तों से ही बंधी होती है और ये ही पूरे जीवन हमारी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ रहते हैं। जब रिश्तों की ऐसी परिभाषा फिल्मों में दिखाई जाती है तो हम और भी गहराई से उसकी अहमियत को मासूस करने लगते हैं।
नदिया के पार फिल्म 1982 में रिलीज़ हुयी एक पारिवारिक फिल्म थी, जिसने रिश्तों के ताने – बाने को बड़ी ही संजीदगी से पिरोया है। फिल्म का रिव्यु हर पहलू को बड़ी ही सरलता से समझाता है। इस फिल्म का निर्देशन गोविन्द मुनीस ने किया था।
Story –
फिल्म की कहानी चन्दन के गांव से शुरू होती है, दो भाई अकेले ही सब कुछ सँभालते हैं- घर भी और खेती भी। चन्दन के चाचा बीमार हो जाते हैं और उनके लिए दवाई लेने वैद्य जी के यहाँ पास के गांव में जाता है, वहां पर उसकी मुलाकात वैद्य जी की छोटी बेटी गुंजा से होती है और दोनों का एक दूसरे को परेशान करने का सिलसिला शुरू हो जाता है। वैद्य चन्दन के साथ उसके गांव चला जाते हैं चाचा को देखने, वहां पर वैद्य को चन्दन का बड़ा भाई ओमकार अपनी बड़ी बेटी रूपा के लिए बहुत अच्छा लगता है।
चन्दन और ओमकार दवाई लेने वैद्य जी के यहाँ आते जाते रहते हैं, उसी बीच वैद्य जी का पूरा परिवार ओमकार को पसंद कर लेता है। चाचा के ठीक होने पर एक दिन वैद्य जी उनसे मिलकर रूपा का रिश्ता ओमकार से तय करवा देते हैं, दोनों की शादी हो जाती है और एक नए जीवन और परिवार की शुरुवात भी।
जब रूपा माँ बनाने वाली होती है तो सभी बड़ों के कहने पर वह गुंजा को अपने पास बुला लेती है घर के कामों में मदद करने के लिए। गुंजा आते ही पूरे घर का काम संभाल लेती है, यह देखकर सभी निश्चिन्त हो जाते हैं। चन्दन और गुंजा की नोंक – झोंक धीरे – धीरे प्यार में बदलने लगती है , दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करने लगते हैं पर किसी को भी नही बताते। रूपा के माँ बनते ही गुंजा अपने घर वापस आ जाती है।
कुछ दिनों के बाद एक दुर्घटना में रूपा की मौत हो जाती है, रूपा के अलावा उस परिवार को सँभालने वाला कोई भी नहीं है। परिवार को और बच्चे को सँभालने के लिए वैद्य ओमकार का विवाह अपनी छोटी बेटी गुंजा से करने का प्रस्ताव चाचा और सभी घर वालों के सामने रखते हैं और इसमें सभी की सहमति होती है, चन्दन की भी।
गुंजा और चन्दन परिवार की ख़ुशी के लिए, अपने प्यार को दफनाकर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं। शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और शादी वाले दिन ओमकार को गुंजा और चन्दन के प्यार के बारे में पता चलता है और वो दोनों की शादी करवा देता है और इसी के साथ फिल्म का अंत हो जाता है।
इस फिल्म ने रिश्तों की अहमियत बताई है कि सबसे पहले परिवार होता है बाकि के सभी रिश्ते जो यहीं पर हम बनाते हैं वो बाद में होते हैं। हर रिश्ते की मुस्कुराहट जो हमें ख़ुशी देती है और हर रिश्ते का दुःख जो हमें दर्द देता है। हर बदलते रिश्तों का अहसास जो हमें हर हाल में स्वीकार करना होता है। रिश्ते सब कुछ होते हैं और इन्ही से हमारा वजूद होता है।
Songs & Cast –
गुंजा रे………जोगी जी……. जब तक पूरे न हों फेरे सात……. कौन दिशा में लेकर चला रे …….. इन सभी गानों को हेमलता , सुदेश वाडेकर और जसपाल सिंह ने बड़े ही सुरीले अंदाज में गाया है।
इस फिल्म के कलाकारों – सचिन, साधना सिंह, सविता बजाज , लीला मिश्रा , मिताली और अन्य ने आखिर तक सभी को इस तरह बांधे रखा कि जैसे हम सभी उस गांव में मौजूद हों और उनके जीवन का हिस्सा हो।
Location – इस फिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर के एक छोटे से गांव में हुयी थी। गांव वालों को फिल्म के कलाकारों से इतना स्नेह हो गया था कि उनसे जुड़ा होते समय वह बहुत रोये थे जैसे कि किसी अपने से जुड़ा हो रहे हों।