फिल्म में बताया गया है कि किस तरह एक नारी अपने प्रेम की शक्ति से एक आत्मा से भी लड़ जाती है। इस दुनिया में जब आपके पास किसी अपने का प्रेम होता है। फिल्म में बेहद खूबसूरत गाने हैं जैसे बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको ख़ुशी संसार मिले, यह आज भी शादियों में बजाये जाते हैं।
भगवान जिन दो लोगों को एक बंधन में बांध देते हैं… वोही संसार में जन्म लेकर विवाह बंधन में बंधते हैं
Story – इस फिल्म की कहानी शुरू होती है एक महल में रहने वाले मूर्तिकार चित्रसेन से, जो राजकुमारी नीलकमल से प्रेम करता है और उन्ही की मूर्तियां बनाता है। एक दिन महाराजा और उनके सभी सभागण मूर्तिकार की मूर्तियां देखते है और जैसे ही वह राजकुमारी नीलकमल की मूर्ति देखते हैं तो चित्रसेन पर बहुत नाराज़ होते है और उसको बंदी बना लेते हैं।
और जैसे ही सभी को राजकुमारी नीलकमल के चित्रसेन से प्रेम की बात पता चलती है तो महाराज चित्रसेन को चुनवाने का आदेश दे देते हैं क्योकि नीलकमल का विवाह एक छोटे से मूर्तिकार के साथ वह होने नहीं देना चाहते थे। नील कमल के लिए चित्रसेन का प्रेम अमर रहा और उसकी आत्मा राजकुमारी से मिलने के लिए सदियों तक जीवित रही।
कहानी आज के समय में आती है, जहाँ एक व्यवसायी मिस्टर रायचंद की एकलौती बेटी सीता अपने दोस्तों के साथ घूमने जाती है जहाँ पर नींद में चलने की आदत से वह चलते चलते पटरियों पर चलने लगती है जहाँ एक युवक राम बचाता है।नींद में चलने की आदत से परेशां कॉलेज मिस्टर रायचंद को बुलाते हैं और सीता को वापस ले जाने के लिए कहते हैं।
सीता अपने घर आ जाती है और धीरे धीरे उसकी मुलाकात राम से होती है और यह बहुत जल्दी प्यार में बदल जाती है, और दोनों विवाह कर लेते हैं।नींद में चलने की आदत शादी के बाद भी सीता की नहीं छूटती है, राम कई डॉक्टरों को दिखता है मगर कुछ भी फायदा नहीं होता है।फिर सीता को पता चलता है कि नींद में चलना कोई बीमारी नहीं है मगर उसको कोई बुलाता है और वह वहां जाती है।
उसको पता चलता है कि पिछले जन्म में आज राजकुमारी नीलकमल थी और जो उसको बुलाता है वह उसका प्रेमी चित्रसेन हैं, उसकी आवाज़ सुनकर सीता अपनी सुधबुध खो बैठती है और चल पड़ती है। मगर सीता के ससुराल वालों को ऐसा नहीं लगता, सीता की सास और ननद चंचल को ऐसा लगता है सीता का किसी और दूसरे आदमी के साथ सम्बन्ध है और उससे मिलने सीता राम से छिपकर रात में जाती है।
चंचल के पति गिरधर को ऐसा लगता है कि सीता की इस परेशानी की वजह कुछ और ही है , घरजमाई होने की वजह से गिरधर की कोई नहीं सुनता और ना ही उसकी इज्जत करता है।सीता अपने पर लगे ये सारे इलज़ाम बर्दाश्त नहीं कर पाती और कार लेकर जब जा रही होती है तो उसका एक्सीडेंट हो जाता है और वह एक मंदिर के पुजारी द्वारा बचायी जाती है।
सीता की मृत्यु की खबर सुनकर राम की माँ और बहन उसका दूसरा विवाह कराने की सोचते हैं, मगर गिरधर आकर राम को बता देता है कि सीता जिन्दा है और वह उसके बच्चे की माँ भी बनने वाली है।एक दिन अपने ग़मों से दुखी राम सब कुछ भुलाने के लिए घूमने जाता है और चितरपुर स्टेशन आने पर चेन पुलिंग करके ट्रेन को रोक देता है। उतारकर वह उस महल की तरफ रुख कर लेता है।
वहीँ सीता पहले से ही वहां पहुँच जाती है और चित्रसेन को समझाती है कि जो पिछले जन्म में हुआ वो वहीँ ख़तम हो गया , आज वह किसी की एक पत्नी है और एक बहु भी, आज उसका रिश्ता सिर्फ राम से है और हमेशा रहेगा।सीता का राम के प्रति प्रेम देखकर चित्रसेन की आत्मा मुक्त हो जाती है और सीता बेहोश हो जाती है तभी वहां राम आ जाता है और उसको बचा लेता है।
हर दम दुआएं देना, हर लम्हा आहें भरना ……….. उनका भी काम करलो और अपना भी काम कर ना
Songs & Cast – इस फिल्म का संगीत दिया है रवि शंकर शर्मा ने और इन सदाबहार गीतों को साहिर लुधियानवी ने लिखा है – “रोम रोम में बसने वाले राम “, “बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको ख़ुशी संसार मिले “, “ये जिंदगी अब तक थी जो तेरी “, “खाली डब्बा खाली बोतल”, “आजा तुझको पुकारे मेरा दिल “,”शर्मा के यू ना देख “, और इन गीतों को गाया है आशा भोंसले, मन्ना डे और मोहम्मद रफ़ी ने।
इस फिल्म में वहीदा रहमान ने सीता और राजकुमारी नीलकमल का किरदार निभाया है और मनोज कुमार ने राम एक अच्छे पति के किरदार को बहुत ही संजीदगी से निभाया है और उतनी ही सादगी से चित्रसेन को राज कुमार ने निभाया है। इस फिल्म में बाकी के अन्य कलाकारों जैसे – ललिता पवार (ठकुराइन), महमूद (गिरधर गोपाल अग्रवाल ), शशिकला (चंचल), बलराज साहनी ( मिस्टर रायचंद), रामायण तिवारी, छाया, गोपाल सहगल, मुमताज बेगम, जगदीश राज ने।
इस फिल्म की अवधि 2 घंटे और 45 मिनट्स है और इसका कल्पनालोक कंपनी के तहत निर्माण किया गया था।
Location – इस फिल्म की शूटिंग राजस्थान के अलवर शहर और उसके आस पास की खूबसूरत जगहों पर की गयी थी।
Lights, camera, words! We take you on a journey through the golden age of cinema with insightful reviews and witty commentary.