“पत्थला भैरवी” పాతాళ భైరవి एक तेलुगु फैंटेसी फिल्म, जो 15 मार्च 1951 को दक्षिण भारतीय सिनेमा में रिलीज़ हुयी थी। पत्थला भैरवी की कहानी एक लोकप्रिय तेलुगु नाटक काशी मजीली कथालु पर आधारित है और यह काफी हद तक अलादीन की कहानी से मिलती जुलती है। पत्थला भैरवी का अंग्रेजी में अर्थ नेदरवर्ल्ड की देवी से है। निर्देशक कादिरी वेंकट रेड्डी ने इस फिल्म को एक साथ तेलुगु और तमिल भाषा में बनाया। फिल्म में एन.टी. रामाराव और एस.वी. रंगा राव मुख्य भूमिकाओं में हैं। फिल्म एक ऐसे युवक की कहानी बताती है जो एक राजकुमारी से विवाह करने के लिए खतरों और जादूगरी से भरी हुयी एक ऐसी दुनिया की यात्रा करता है, जो होती तो है मगर उसका अस्तित्व इस दुनिया के लिए नहीं है।
फिल्म फैंटेसी, रोमांच और रोमांस का एक सही मिश्रण है। सिनेमैटोग्राफी और स्पेशल इफेक्ट प्रभावशाली हैं, जिस समय अवधि में यह फिल्म बनाई गई थी। फिल्म में घंटासला वेंकटेश्वर राव का यादगार संगीत भी है, जिसमें लोकप्रिय गीत “रागम अनुरागम” भी शामिल है।

एन.टी. पांडुरंग के रूप में रामा राव ने शानदार अभिनय किया है, जिसमें उन्होंने अपने अभिनय और नृत्य कौशल दोनों का प्रदर्शन किया है। मालती के साथ उनकी केमिस्ट्री बेहद आकर्षक है और उनकी प्रेम कहानी फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। एस.वी. रंगा राव ने नेपाली जादूगर के रूप बेहद उम्दा प्रदर्शन किया है। पत्थला भैरवी के रूप में गिरिजा का अभिनय भी बेहद प्रभावशाली रहा हैं।
Story Line
फिल्म की कहानी शुरू होती है उज्जैन के राज महल से , जहाँ रानी अपनी बेटी इंदुमती का विवाह अपने रिश्तेदार सुरसेना से करवाना चाहती है, जो कि एक बेहद डरपोक इंसान है। मगर राजा अपनी बेटी का विवाह एक ऐसे शूरवीर से करना चाहता है जो उनको जादूगर से बचाये और आगे चलकर राज्य भी संभाले। वहीँ दूसरी तरफ राज्य में एक बेबाक युवक रामुडु भी रहता था, जिसका एक दिन सुरसेना से झगड़ा हो जाता है।
यह बात महल तक पहुँच जाती है और राजा रानी के प्रभाव में आकर रामुडु को मौत की सज़ा सुना देता है, मगर उसी समय राजा रामुडु में निडरता और वीरता का गुण देख लेता है। अपनी मृत्यु से एक दिन पहले रामुडु राजकुमारी इंदु से मिलकर अपने प्रेम का इज़हार कर देता है। यह देखकर राजा उसके सामने एक शर्त रखते हैं , जिसमे उसे राजा के जितना धन कमाना होता है।

रामुडु कैद से आज़ाद होकर धन कमाने के लिए जाता है और उसकी मुलाकात एक नेपाली जादूगर से होती है। जिसको अपनी तपस्या पूरी करने और सारी मनोकामना पूरी करने वाली मूर्ति को प्राप्त करने के लिए एक निडर युवक की बलि देनी होती है। यह सोचकर वह जादूगर रामुडु को बहला फुसला कर अपने साथ ले जाता है। और एक नदी में शुद्व होने के लिए रामुडु को स्नान करने को कहता है। रामुडु नदी में मगरमच्छ से लड़ाई करता है और मुनि द्वारा शापित युवती को आज़ाद करता है और वह उसे जादूगर की सच्चाई बताती है।
उसके बाद रामुडु जादूगर को मारकर वह जादुई मूर्ति हासिल कर लेता है और वापस आकर राजा को अपनी शर्त पूरी करने की बात बताता है। महल में दोनों की शादी की तैयारियां चल रही होती हैं कि उसी समय नेपाली जादूगर, जो अपने शिष्य के जादू से पुनः जीवित होकर वह मूर्ति हासिल करता है। इसके बाद इंदु और रामुडु दोनों गरीब हो जाते हैं। रामुडु वापस मूर्ति हासिल करने का प्रयास करता है और इस यात्रा में अपने भाई के साथ संघर्ष करते हुए वह मूर्ति, महल और इंदु को उज्जैन ले आता है और अंत में बुराई की पराजय के साथ जादूगर और उसकी जादुई दुनिया ख़त्म हो जाती है।

कुल मिलाकर, “पत्थला भैरवी” एक क्लासिक तेलुगु फिल्म है जो उद्योग के कुछ सबसे प्रतिष्ठित अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं की प्रतिभा को प्रदर्शित करती है। फिल्म के प्रभावशाली स्पेशल इफेक्ट्स , आकर्षक कहानी और यादगार प्रदर्शनों ने इसे भारतीय सिनेमा इतिहास में एक लोकप्रिय क्लासिक बना दिया है। इसने तेलुगु और तमिल दोनों में अच्छा व्यवसाय किया। तेलुगु में तो यह फिल्म 200 दिनों तक सिनेमाघरों में चली। 1985 में हिंदी में “पाताल भैरवी” के नाम से इसको रीमेक किया।