• About
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
Tuesday, October 14, 2025
  • Login
Movie Nurture
  • Bollywood
  • Hollywood
  • Indian Cinema
    • Kannada
    • Telugu
    • Tamil
    • Malayalam
    • Bengali
    • Gujarati
  • Kids Zone
  • International Films
    • Korean
  • Super Star
  • Decade
    • 1920
    • 1930
    • 1940
    • 1950
    • 1960
    • 1970
  • Behind the Scenes
  • Genre
    • Action
    • Comedy
    • Drama
    • Epic
    • Horror
    • Inspirational
    • Romentic
No Result
View All Result
  • Bollywood
  • Hollywood
  • Indian Cinema
    • Kannada
    • Telugu
    • Tamil
    • Malayalam
    • Bengali
    • Gujarati
  • Kids Zone
  • International Films
    • Korean
  • Super Star
  • Decade
    • 1920
    • 1930
    • 1940
    • 1950
    • 1960
    • 1970
  • Behind the Scenes
  • Genre
    • Action
    • Comedy
    • Drama
    • Epic
    • Horror
    • Inspirational
    • Romentic
No Result
View All Result
Movie Nurture
No Result
View All Result
Home 1920

भारत में साइलेंट फिल्मों को कैसे संरक्षित किया जा रहा है?

Sonaley Jain by Sonaley Jain
June 17, 2025
in 1920, 1930, Bollywood, Films, Hindi, Indian Cinema, old Films, Top Stories
0
Movie Nurture: Slient Cinema
0
SHARES
0
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

कल्पना कीजिए, एक धुंधली सी स्क्रीन पर छाया-छवियाँ नाच रही हैं। कोई डायलॉग नहीं, सिर्फ़ एक पियानो या हारमोनियम की धुन, और कभी-कभी दर्शकों की सामूहिक सांसों की आवाज़। ये थीं भारत की मूक फिल्में, जिन्होंने हमारे सिनेमा की नींव रखी। लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि जब आज की चमकदार, डिजिटल फिल्में भी जल्दी खराब हो सकती हैं, तो सौ साल पुरानी ये नाज़ुक फिल्में कैसे बची हुई हैं? आपको जानकर हैरानी होगी कि इन्हें बचाने की एक बड़ी और ज़रूरी लड़ाई चल रही है। आइए, जानते हैं कि कैसे भारत अपनी इन फिल्मी धरोहरों को संजो रहा है।

क्यों है इतनी ज़रूरत? (संरक्षण की अहमियत)

Movie Nurture: Indian Silent Cinema

पहली बात समझनी होगी कि इन फिल्मों को बचाना सिर्फ़ पुरानी चीज़ें इकट्ठा करना नहीं है। ये हमारे इतिहास का जीवंत हिस्सा हैं:

  1. हमारी फिल्मी जड़ें: दादासाहेब फाल्के की “राजा हरिश्चंद्र” (1913) से लेकर बाद की कई मूक फिल्मों ने ही तय किया कि भारतीय सिनेमा कैसा दिखेगा, कैसे कहानियाँ सुनाएगा। इनके बिना हमारी फिल्म यात्रा अधूरी है।

  2. सामाजिक झलक: ये फिल्में उस ज़माने के समाज, फैशन, रीति-रिवाज़ और सोच को दर्शाती हैं। ये चलती-फिरती ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं।

  3. तकनीकी विकास: इन फिल्मों को देखकर हम समझ सकते हैं कि कैसे शूटिंग, एडिटिंग, स्टोरीटेलिंग के तरीके विकसित हुए।

  4. गंवाई हुई विरासत: दुख की बात है कि 1300 से ज़्यादा बनी मूक फिल्मों में से सिर्फ़ 20-30 ही किसी तरह बची हैं! बाकी सब गायब, जल चुकी, या खराब हो चुकी हैं। हर बची हुई फिल्म एक कीमती खज़ाना है।

चुनौतियाँ तो बहुत बड़ी हैं (संरक्षण में दिक्कतें)

इन फिल्मों को बचाना कोई आसान काम नहीं। सामने हैं कई बड़ी मुश्किलें:

  1. नाइट्रेट का खतरा: शुरुआती फिल्में ‘नाइट्रेट फिल्म स्टॉक’ पर बनी थीं। ये सामग्री बेहद ज्वलनशील होती है – आग पकड़ने के लिए सिर्फ़ गर्मी काफी है! ऐसी फिल्मों को रखना खतरे से खाली नहीं था और कई आग की भेंट चढ़ गईं।

  2. समय की मार: फिल्म का स्टॉक, चाहे नाइट्रेट हो या बाद वाला ‘सेफ्टी फिल्म’ (जो कम ज्वलनशील थी), वक्त के साथ खराब होता है। सिकुड़ना, टूटना, रंग उड़ना, फफूंदी लगना – ये सब आम समस्याएं हैं। गर्मी, नमी और धूल इन्हें और जल्दी नष्ट कर देते हैं।

  3. लापरवाही और अनजाना: लंबे समय तक हमें इन फिल्मों के ऐतिहासिक महत्व का पूरा अहसास नहीं था। कई फिल्में स्टूडियो के गोदामों में पड़ी-पड़ी सड़ गईं, या फिर कबाड़ में बिक गईं।

  4. तकनीकी ज्ञान की कमी: पुरानी फिल्मों को रीस्टोर करने और संरक्षित करने के लिए खास तरह की विशेषज्ञता चाहिए। पहले ऐसे प्रशिक्षित लोगों और उपकरणों की कमी थी।

Movie Nurture: Silent Cinema

तो फिर कैसे बचाई जा रही हैं ये अनमोल फिल्में? (संरक्षण के तरीके)

इन सारी मुश्किलों के बावजूद, कुछ संस्थाएं और लोग मिशन की तरह इन फिल्मों को बचाने में जुटे हैं:

    1. नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (NFAI), पुणे: ये है हमारा सबसे बड़ा हथियार! NFAI भारत सरकार की फिल्म संरक्षण की प्रमुख संस्था है। उनके पास विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया आधुनिक स्टोरहाउस है, जहाँ:

      • ठंडा और सूखा माहौल: फिल्मों को नुकसान पहुँचाने वाली गर्मी और नमी पर कड़ा नियंत्रण।

      • आग से सुरक्षा: विशेष फायर सप्रेसन सिस्टम, ताकि नाइट्रेट फिल्मों से भी आग न फैले।

      • नाइट्रेट से सेफ्टी में बदलाव: जहाँ संभव होता है, नाइट्रेट फिल्मों की प्रतिलिपि कम जोखिम वाले सेफ्टी फिल्म स्टॉक पर बनाई जाती है।

      • डिजिटल संरक्षण: यह सबसे आधुनिक और कारगर तरीका है। पुरानी फिल्म को स्कैन किया जाता है और हाई-रिज़ॉल्यूशन डिजिटल फाइल (जैसे 4K) में बदला जाता है। इससे:

        • फिल्म की मूल प्रति को बार-बार चलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, उसे सुरक्षित रखा जा सकता है।

        • डिजिटल कॉपी को आसानी से स्टोर, कॉपी और दुनिया भर में शेयर किया जा सकता है।

        • डिजिटल तकनीक से फिल्म को ‘रिस्टोर’ भी किया जा सकता है – खरोंचें हटाना, रंग सुधारना, फ्रेम फिक्स करना।

📌 Please Read Also –बिना आवाज़ के जादू: कैसे संगीत ने साइलेंट फिल्मों की आत्मा बचाई रखी?

  1. फिल्म फेस्टिवल्स और स्क्रीनिंग्स: सिर्फ़ संग्रहालय में रख देने से काम नहीं चलता। NFAI और अन्य संस्थाएं (जैसे इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज – INTACH) समय-समय पर इन मूक फिल्मों की स्क्रीनिंग करवाती हैं। कई फिल्म फेस्टिवल्स (जैसे मुंबई फिल्म फेस्टिवल, कोची-मुज़िरिस बिएनाले) में इन्हें दिखाया जाता है, अक्सर लाइव म्यूजिक के साथ। इससे लोगों को इन फिल्मों को देखने और उनकी अहमियत समझने का मौका मिलता है। यह जागरूकता भी फैलाता है।

  2. अनुसंधान और दस्तावेज़ीकरण: सिर्फ़ फिल्म बचाना ही काफी नहीं, उसके बारे में जानकारी भी जुटाना ज़रूरी है। कौन से निर्देशक, कलाकार थे? कब और कहाँ बनी? कैसी प्रतिक्रिया हुई? शोधकर्ता पुराने अखबारों, पत्रिकाओं, किताबों और लोगों के साक्षात्कार से इस जानकारी को इकट्ठा कर रहे हैं। इससे फिल्म के संदर्भ को समझने में मदद मिलती है।

  3. निजी संग्रह और प्रयास: कई बार फिल्में निजी संग्रहकर्ताओं, फिल्म परिवारों या पुराने सिनेमा हॉल के मालिकों के पास मिल जाती हैं। ऐसे लोग जो इनकी कद्र करते हैं, वे अक्सर इन्हें सहेज कर रखते हैं और कभी-कभी NFAI जैसी संस्थाओं को दान भी दे देते हैं। ये निजी प्रयास भी बहुत मायने रखते हैं।

कुछ जगमगाते उदाहरण (सफलता की कहानियाँ):

  • दादासाहेब फाल्के की फिल्में: NFAI ने फाल्के साहब की “कालिया मर्दन” (1919) और “सत्यवान सावित्री” (1917) जैसी कुछ फिल्मों के हिस्सों को बड़ी मेहनत से बचाया, रिस्टोर किया और डिजिटाइज़ किया है। इन्हें कई जगहों पर दिखाया भी गया है।

  • “भक्त विदुर” (1921): बंगाली मूक फिल्म “भक्त विदुर” को भी संरक्षित करने और उसकी डिजिटल प्रतिलिपि बनाने का काम हुआ है।

  • “मार्तंड भवन” (1931): केरल की यह मलयालम मूक फिल्म भी खोजी गई और संरक्षित की गई है, जो क्षेत्रीय सिनेमा के इतिहास के लिए अहम है।

Movie Nurture: Indian Silent Cinema

आगे की राह: हम सबकी क्या भूमिका हो सकती है?

संरक्षण का काम सिर्फ़ संस्थाओं का नहीं है। हम सब भी अपना योगदान दे सकते हैं:

  • जागरूक बनें: सबसे पहले तो यह जानें और समझें कि ये पुरानी फिल्में क्यों मायने रखती हैं। दोस्तों, परिवार में इस बारे में बात करें।

  • दिखाएँ दिलचस्पी: जब भी कहीं मूक फिल्मों की स्क्रीनिंग हो, जाने की कोशिश करें। यह अनोखा अनुभव होता है!

  • जानकारी शेयर करें: अगर आपको पता चले कि किसी के पास पुरानी फिल्में या उनसे जुड़ी चीज़ें (पोस्टर, तस्वीरें, समीक्षाएं) हैं, तो NFAI या किसी विश्वसनीय संस्था को इसकी जानकारी देने में मदद कर सकते हैं।

  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का सहयोग: कई संस्थाएँ ऑनलाइन भी रिस्टोर की हुई फिल्मों के हिस्से या जानकारी शेयर करती हैं। इन्हें देखें, शेयर करें। इससे संस्थाओं को भी प्रोत्साहन मिलता है कि लोगों को ये चीज़ें पसंद आ रही हैं।

निष्कर्ष: एक जीवित विरासत के लिए संघर्ष

भारत में साइलेंट फिल्मों का संरक्षण एक निरंतर चलने वाली लड़ाई है। बहुत कुछ खो चुका है, जिसका दुख हमेशा रहेगा। लेकिन जो कुछ बचा है, उसे बचाने के लिए NFAI जैसी संस्थाएँ और कई समर्पित लोग दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। डिजिटल तकनीक ने इस लड़ाई में एक नई उम्मीद जगाई है। ये फिल्में सिर्फ़ पुराने फिल्मी रील नहीं हैं; ये हमारी सांस्कृतिक पहचान का वो पहला अध्याय हैं जिसने देश को सिनेमा के जादू से परिचित कराया। इन्हें बचाना और इन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना, हम सबकी साझा ज़िम्मेदारी है। तो अगली बार जब आप किसी फिल्म फेस्टिवल में मूक फिल्म दिखाने की खबर देखें, तो ज़रूर जाएँ। हो सकता है, आप भी उस जादू को महसूस कर सकें जिसने कभी पूरे देश को मंत्रमुग्ध कर दिया था, बिना एक शब्द बोले। ये खोई हुई आवाज़ें, इनके चित्रों के ज़रिए आज भी हमसे बातें करना चाहती हैं।

Tags: Bollywood HeritageCinema ArchivesFilm Restoration in IndiaIndian Classic MoviesIndian Film PreservationSilent Cinema IndiaSilent Films Historyभारतीय साइलेंट फिल्में
Previous Post

भूली-बिसरी साइलेंट एरा की 5 महिला सुपरस्टार्स

Next Post

कहाँ शूट होती थीं Silent Movies? जानिए दिलचस्प लोकेशन्स

Next Post
Movie Nurture: कहाँ शूट होती थीं Silent Movies? जानिए दिलचस्प लोकेशन्स

कहाँ शूट होती थीं Silent Movies? जानिए दिलचस्प लोकेशन्स

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Facebook Twitter

© 2020 Movie Nurture

No Result
View All Result
  • About
  • CONTENT BOXES
    • Responsive Magazine
  • Disclaimer
  • Home
  • Home Page
  • Magazine Blog and Articles
  • Privacy Policy

© 2020 Movie Nurture

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In
Copyright @2020 | Movie Nurture.