Movie Nurture: Bride of Frankenstein

Bride of Frankenstein (1935): सिर्फ एक मॉन्स्टर मूवी नहीं, एक मास्टरपीस है ये फिल्म!

कल्पना कीजिए: बिजली कड़कती है, एक पागल वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला में कुछ बना रहा है, और फिर… वो पल आता है। एक सफेद पट्टियों में लिपटी हुई आकृति धीरे-धीरे जिंदा होती है। उसके बिजली से खड़े किए गए बाल, उसकी फड़कती हुई पलकें, और वो चीख – “हिस्स्स्स्स!” ये दृश्य सिनेमा के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया। ये है “द ब्राइड ऑफ फ्रैंकनस्टाइन” (1935), और ये सिर्फ एक डरावनी फिल्म नहीं है, ये एक कालजयी कलात्मक उपलब्धि है जिसने मॉन्स्टर मूवीज़ को हमेशा के लिए बदल दिया।

पहली फिल्म से भी बेहतर? एक नज़र प्लॉट पर

पहली फिल्म “फ्रैंकनस्टाइन” (1931) में डॉक्टर फ्रैंकनस्टाइन (कॉलिन क्लाइव) अपने जीवन दान किए हुए प्राणी (बोरिस कार्लॉफ) से भाग जाता है, जिसे गाँव वालों ने जिंदा जला दिया था। “दुल्हन” की शुरुआत ही एक धमाकेदार तरीके से होती है। मैरी शेली (एल्सा लैंचेस्टर), जिन्होंने फ्रैंकनस्टाइन की कहानी लिखी थी, बताती हैं कि कहानी यहीं खत्म नहीं हुई! फ्रैंकनस्टाइन बच गया था, लेकिन घायल और तबाह। वह अपनी पत्नी एलिजाबेथ (वैलेरी होब्सन) के साथ शांति से रहना चाहता है।

Movie Nurture: Bride of Frankenstein

लेकिन तभी आता है डॉक्टर प्रीटोरियस (अर्नेस्ट थीसिग)। वो भी जीवन बनाने का प्रयोग करने वाला एक वैज्ञानिक है, लेकिन फ्रैंकनस्टाइन से कहीं ज्यादा शैतान, घमंडी और तानाशाह! वो फ्रैंकनस्टाइन को मनाने की कोशिश करता है कि वे मिलकर एक और प्राणी बनाएं – इस बार एक स्त्री। उसका तर्क है कि इससे मौजूदा प्राणी को एक साथी मिल जाएगा और वो शांत हो जाएगा। फ्रैंकनस्टाइन मना कर देता है।

इधर, फ्रैंकनस्टाइन का प्राणी (बोरिस कार्लॉफ फिर से शानदार) जंगलों में भटक रहा है। वो अकेलापन, नफरत और दर्द झेल रहा है। उसे एक अंधा बूढ़ा (ओ.पी. हेगी) मिलता है जो उसे दोस्ती, संगीत और शराब का स्वाद सिखाता है। ये फिल्म का सबसे दिल छू लेने वाला दृश्य है, जो दिखाता है कि प्राणी भी स्नेह और समझ चाहता है। लेकिन दुर्भाग्य से, जब गाँव वाले उन्हें देख लेते हैं, तो वे उस अंधे बूढ़े को बचाने की कोशिश में प्राणी पर हमला कर देते हैं। प्राणी फिर से भाग जाता है, गुस्से और निराशा से भरा हुआ।

प्रीटोरियस उस प्राणी को ढूंढ लेता है। वो उसे बहकाता है कि अगर वो फ्रैंकनस्टाइन को मजबूर करे तो वो उसके लिए एक साथी बना सकता है। प्राणी, अपने अकेलेपन से तंग आकर, इसके लिए राजी हो जाता है। प्रीटोरियस प्राणी को अपनी छोटी-छोटी “होमुनकुली” (छोटे इंसान) दिखाता है, जो उसने जार में पैदा किए हैं – ये फिल्म के सबसे यादगार और अजीबोगरीब दृश्यों में से एक है।

प्रीटोरियस और प्राणी मिलकर फ्रैंकनस्टाइन की पत्नी एलिजाबेथ का अपहरण कर लेते हैं। उसे बंधक बनाकर वे फ्रैंकन्टाइन को मजबूर करते हैं कि वो प्रयोग दोबारा करे। और फिर आता है वो ऐतिहासिक क्षण – दुल्हन (एल्सा लैंचेस्टर) का जन्म!

Movie Nurture: Bride of Frankenstein

क्यों ये फिल्म इतनी खास है? सिर्फ डरावनी नहीं, बहुत कुछ है इसमें!

  1. दोहरी भूमिका में एल्सा लैंचेस्टर का जादू: लैंचेस्टर ने सिर्फ दुल्हन का किरदार ही नहीं निभाया, बल्कि फिल्म की शुरुआत में मैरी शेली की भी भूमिका निभाई! लेकिन उनका असली जादू दुल्हन में था। बिना एक शब्द बोले, सिर्फ अपनी बॉडी लैंग्वेज, चेहरे के भावों और उस मशहूर हिस्स (हिस्स्स्स्स!) से उन्होंने एक ऐसी छाप छोड़ी जो आज तक कायम है। उनकी चाल, उनकी नज़रें – कभी बच्चों जैसी मासूम, कभी जानवरों जैसी जंगली – सब कुछ बेहद मेमोरेबल है। उनका मेकअप (जैक पीयर्स द्वारा) और उनके बिजली से खड़े बाल आइकॉनिक बन गए।

  2. बोरिस कार्लॉफ: दर्द से भरा दानव: पहली फिल्म की तरह ही, कार्लॉफ का प्राणी सिर्फ एक राक्षस नहीं है। यहाँ उसका चरित्र और गहरा हुआ है। उसके अकेलेपन, उसकी इंसानियत को पाने की चाहत, और फिर उसकी टूटन – कार्लॉफ सब कुछ अपनी आँखों और चेहरे के भावों से कह देते हैं। जब वो कहता है “फ्रेंड? फ्रेंड गुड!” तो दिल दहल जाता है। वो वाकई सिनेमा का सबसे दयनीय और यादगार विलेन बन जाता है।

  3. अर्नेस्ट थीसिग का डॉक्टर प्रीटोरियस: शैतान का साथी: थीसिग का ये किरदार बेहद खलनायकी वाला और मजेदार है। वो एक पागल वैज्ञानिक है जो खुद को भगवान समझता है। उसका अहंकार, उसकी शैतानी हँसी, और उसका प्राणी को हेराफेरी में इस्तेमाल करना – थीसिग ने इसे परफेक्ट किया। वो और कार्लॉफ एक बेहतरीन जोड़ी बनाते हैं।

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     4. जेम्स वेल का डायरेक्शन: स्टाइल और पदार्थ का मेल: डायरेक्टर जेम्स वेल (जो खुद भी गे थे) ने इस फिल्म में जो जादू बिखेरा वो अद्भुत है।

    • दृश्य सौंदर्य: फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है, लेकिन उसकी शूटिंग और लाइटिंग किसी पेंटिंग जैसी लगती है। प्रयोगशाला के दृश्य, गिरजाघर का खंडहर – सब कुछ बेहद खूबसूरत और डरावना है।

    • धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल: फिल्म में क्रॉस, कब्रिस्तान, गिरजाघर के खंडहर जैसे प्रतीकों का बहुत ही दिलचस्प इस्तेमाल हुआ है। ये सब उस सवाल को उठाता है कि क्या इंसान को भगवान बनने का हक है?

    • कैंप और हास्य: वेल ने डर के साथ-साथ हल्का-फुल्का हास्य और कैंप (अजीबोगरीब तरीके से मजेदार) एलिमेंट्स भी डाले हैं। प्रीटोरियस का ड्रामाई अंदाज़, उसके छोटे इंसान – ये सब फिल्म को सिर्फ डरावनी नहीं, मनोरंजक भी बनाते हैं।

    • समलैंगिक संकेत (Queer-Coded): आलोचकों का मानना है कि प्रीटोरियस और फ्रैंकनस्टाइन के बीच के तनाव और प्रीटोरियस के अतिरंजित व्यवहार में समलैंगिकता के छिपे हुए इशारे हैं, जो उस ज़माने के लिए बहुत बोल्ड था। ये फिल्म को एक और लेयर देता है।

  1. साउंडट्रैक और स्पेशल इफेक्ट्स: फ्रांज वैक्समैन का म्यूजिक फिल्म के मूड को पूरा करता है – डरावना, ड्रामाई और कभी-कभी दुखद। 1935 के हिसाब से स्पेशल इफेक्ट्स (खासकर बिजली के प्रभाव और जन्म के दृश्य) शानदार हैं।

Movie Nurture: Bride of Frankenstein

वो यादगार अंत: जो सब कुछ बदल देता है

फिल्म का अंत शायद सबसे शक्तिशाली हिस्सा है। दुल्हन को जन्म देने के बाद, प्राणी उसे देखकर खुश होता है। वो उसके पास जाता है, उसे दोस्ती का हाथ बढ़ाता है। लेकिन दुल्हन उसकी बदसूरती और भयानक रूप देखकर डर जाती है और चीखती है – ठीक वैसे ही जैसे हर कोई प्राणी को देखकर करता था। इस एक चीख से प्राणी की सारी उम्मीदें टूट जाती हैं। उसे एहसास होता है कि उसके लिए कोई जगह नहीं है, न इस दुनिया में, न ही प्रेम में। वो दर्द से भरकर कहता है: “वी बेलॉन्ग डेड!” (हम मुर्दों की दुनिया के हैं!) और फिर वो प्रयोगशाला के एक लीवर को खींच देता है, जिससे पूरी जगह विस्फोट हो जाता है। खुद को, प्रीटोरियस को और दुल्हन को नष्ट कर देता है। फ्रैंकनस्टाइन और एलिजाबेथ बच जाते हैं।

ये अंत सिर्फ ट्रैजिक नहीं है, ये दार्शनिक है। ये सवाल उठाता है कि क्या बनाने का मतलब जिम्मेदारी लेना भी है? क्या अलग दिखने वालों को कभी स्वीकारा जा सकेगा? प्राणी का ये आत्म-विनाश उसके दर्द और अस्वीकृति का चरम है।

क्या ये फिल्म आज भी देखने लायक है?

बिल्कुल! और सिर्फ डर के लिए नहीं। ये फिल्म है:

  • कला का नमूना: इसकी सिनेमैटोग्राफी, डायरेक्शन, परफॉर्मेंस सब टाइमलेस हैं।

  • दिल को छू लेने वाली: प्राणी का दर्द आज भी दर्शकों को भावुक कर देता है।

  • सोचने पर मजबूर करने वाली: भगवान बनने की चाहत, अलगाव का दर्द, स्वीकृति की चाहत – ये थीम्स आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

  • इतिहास का हिस्सा: ये देखना कि 1935 में किस तरह की जबर्दस्त फिल्में बनती थीं।

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निष्कर्ष: एक ऐसा क्लासिक जो आज भी जिंदा है

“द ब्राइड ऑफ फ्रैंकनस्टाइन” सिर्फ एक सीक्वल या मॉन्स्टर मूवी नहीं है। ये हॉरर जेनर का एक पॉयटिक, विचारोत्तेजक और बेहद स्टाइलिश मास्टरपीस है। एल्सा लैंचेस्टर की दुल्हन, बोरिस कार्लॉफ का दुखी प्राणी, अर्नेस्ट थीसिग का शैतानी प्रीटोरियस और जेम्स वेल का जादुई डायरेक्शन मिलकर एक ऐसी फिल्म बनाते हैं जिसे देखना सिनेमा प्रेमी होने का एक जरूरी अनुभव है। ये फिल्म डराती भी है, हंसाती भी है, दुखी भी करती है और सोचने पर मजबूर भी करती है। अगर आपने इसे नहीं देखा है, तो किसी डार्क रूम में, अच्छी क्वालिटी में देखिए – आप एक सिनेमाई चमत्कार का गवाह बनेंगे। ये सचमुच “जिंदा” फिल्म है!

Bride of Frankenstein (1935): सिर्फ एक मॉन्स्टर मूवी नहीं, एक मास्टरपीस है ये फिल्म! - Movie Nurture

Director: James Whale

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