नवरंग (1959): रंगों का वह ख्वाब जो आज भी महकता है

कभी-कभी टीवी चैनल बदलते हुए या ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की गहराइयों में खोज करते हुए हमारी नज़र किसी ऐसी फिल्म पर पड़ जाती है जो […]

मूक सिनेमा के अनकहे संघर्ष: एक–एक परत खोलती रिसर्च सीरीज़

आप आज के इस दौर की कल्पना कीजिए, जहाँ सिनेमा हॉल में बैठकर आप हीरो की आवाज़ का एक-एक स्वर सुन सकते हैं, संगीत के […]

1960 का सुनहरा दौर: प्यार, कुर्बानी और इज़्ज़त की बॉलीवुड कहानियाँ

कल्पना कीजिए उस ज़माने की, जब सिनेमा हॉल में घुसते ही आपको महसूस होता था कि आप सिर्फ एक फिल्म नहीं देखने जा रहे, बल्कि […]

हॉलीवुड मूक फिल्मों से भारतीय सिनेमा ने क्या सीखा?

नमस्कार, कल्पना कीजिए कि आप सिनेमा हॉल में बैठे हैं। परदे पर कोई डायलॉग नहीं बोल रहा, कोई गाना नहीं गूँज रहा, सिर्फ़ एक पियानो […]

Kurosawa के कैमरे से निकली एक करुण पुकार – Stray Dog की कहानी

जापानी सिनेमा के इस दौर में, जहाँ एनीमे की चटकीली दुनिया और जीवंत पात्रों का बोलबाला है, वहीं एक वक्त वह भी था जब पर्दे […]

हाव-भाव की भाषा: हीरो-हीरोइन की प्रैक्टिस के अनसुने किस्से

क्या आपने कभी गौर किया है कि दिलीप कुमार की आँखों में एक अदद नजाकत क्यों दिखती है? या माधुरी दीक्षित की मुस्कुराहट में एक […]

तोशीरो मिफ्यून: जापानी सिनेमा का ज्वालामुखी जिसने दुनिया को झकझोरा

वो दृश्य याद कीजिए। बारिश में भीगता हुआ एक आदमी। चेहरे पर बेचैनी, आँखों में एक जंगली चमक, जैसे कोई पिंजरे में कैद शेर हो। […]

साउंड रेकॉर्डिस्ट की कहानी – हर सांस रिकॉर्ड होती है

सुबह की पहली किरण ने अभी पेड़ों की पत्तियों को छुआ भी नहीं था। जंगल की उस गहरी शांति में, जहाँ हवा भी सांस रोके […]

द ममीज़ कर्स (1944): हॉलीवुड के श्राप और सस्पेंस की क्लासिक कहानी

यक़ीन मानिए, अगर आपने कभी भी किसी पुरानी, धूल भरी अलमारी में रखे फिल्मी पोस्टरों को पलटा हो, तो आपकी नज़र ज़रूर उस तस्वीर पर […]

केवल प्रेम कहानी नहीं—‘अनमोल घड़ी’ में छुपा समाज और वर्ग का संदेश!

कल्पना कीजिए। साल 1946। देश आज़ादी की लड़ाई के आख़िरी दौर से गुज़र रहा है। हर तरफ उथल-पुथल, अनिश्चितता और बदलाव की हवा बह रही […]