1971 का साल, जब पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम की आग भड़क चुकी थी, और पश्चिम बंगाल की सड़कों पर नक्सलवादी आंदोलन का […]
Category: Movie Review
चारियट्स ऑफ़ फायर” (1981): जब जीत सिर्फ मेडल नहीं, खुद से लड़ाई होती है
1981 सिनेमाघरों में एक फिल्म आई, जिसका नाम था—”चारियट्स ऑफ़ फायर”। इस फिल्म की शुरुआत हुई समंदर किनारे धीमी गति में दौड़ते एथलीट्स के साथ। […]
मयूरा (1975): कन्नड़ सिनेमा का वो ऐतिहासिक रत्न जिसने गढ़ी नई परंपरा
साल 1975 भारतीय सिनेमा में ऐतिहासिक फिल्मों का दौर चल रहा था। हिंदी में “शोले” का जलवा था, तो दक्षिण में कन्नड़ सिनेमा ने भी […]
हाउसबोट 1958: बच्चों की नज़र से एक प्यारा सफर
क्या आपने कभी सोचा है कि 1950 के दशक की एक फिल्म, जिसमें सोफिया लॉरन और कैरी ग्रांट जैसे सितारे हों, वह बच्चों के लिए […]
बैंड वैगन (1940): वो ब्रिटिश कॉमेडी जिसने युद्ध के बीच में बिखेरी थी हँसी की चिंगारी
1940 का साल। यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध की आग धधक रही थी, और ब्रिटेन के आसमान पर जर्मन बमवर्षकों के छाये होने के बावजूद, सिनेमाघरों […]
Five Golden Flowers (1959): चीन की वो फिल्म जिसमें खिले थे प्यार और समाजवाद के रंग
साल 1959 की बात है। चीन में ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ का दौर चल रहा था—जहाँ एक तरफ़ लोहे के कारख़ाने धुआँ उगल रहे थे, वहीं […]
Chinatown (1974): वह फ़िल्म जिसने हॉलीवुड को सिखाया ‘अंधेरे में उजाला ढूंढना’
क्या कोई फ़िल्म आपकी ज़िंदगी को बदल सकती है? अगर हाँ, तो रोमन पोलांस्की की “Chinatown” उन चंद फ़िल्मों में से एक है जो आपको […]
घरौंदा: 1977 की एक सदाबहार बॉलीवुड क्लासिक
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, जिसे अक्सर बॉलीवुड के नाम से जाना जाता है, सिनेमाई उत्कृष्टता का खजाना रही है। इसकी कई क्लासिक फिल्मों में से, “घरौंदा” […]
प्रेमदा कनिके: एक ऐसी फिल्म जो कभी पुरानी नहीं होती
कन्नड़ फिल्म उद्योग, जिसे सैंडलवुड के नाम से जाना जाता है, ने दुनिया को कई सिनेमाई रत्न दिए हैं। उनमें से, “प्रेमदा कनिके” 1970 के […]
मैडम फ्रीडम (1956): आधुनिकता, इच्छा और सामाजिक परिवर्तन की एक टाइमलेस खोज
हान ह्युंग-मो द्वारा निर्देशित मैडम फ्रीडम (1956) दक्षिण कोरिया की सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली फिल्मों में से एक है। जियोंग बि-सोक के धारावाहिक उपन्यास से […]