मंज़िल एक क्लासिक बॉलीवुड फॅमिली ड्रामा फिल्म है , जो 1 जनवरी 1960 को भारतीय सिनेमा में रिलीज़ हुयी। फिल्म का निर्देशन मंडी बर्मन ने कमला पिक्चर्स के तहत किया। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म औसत ही मानी गयी थी मगर इस फिल्म ने उस साल 7 लाख से ज्यादा की कमाई की थी। उस समय में यह एक बहुत बड़ी बात होती थी।
Story Line –
कहानी शुरू होती है 1929 से , भरता के एक शहर शिमला से। शहर के प्रतिष्ठित मेहता फेमिली का एकलौता बेटा राजकुमार मेहता , जो अभी अभी इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई पूरी करके आता है। पिता चाहते हैं कि उनका बेटा उनके साथ मिलकर बिज़नेस को संभाले , मगर राजकुमार के मन में तो संगीत के प्रति इतना प्रेम होता है कि वह अपना पूरा फोकस उसी पर करे।
मगर मिस्टर मेहता की नज़रों में संगीत सीखना भिखारियों का काम होता है। इसी वजह से दोनों में हर दिन बहुत झगड़े होते रहते हैं। यह बात राजकुमार अपनी बचपन की दोस्त पुष्पा के साथ शेयर करता है। और वह हमेशा ही राजू का साथ देती है। राजू म्यूजिक की शिक्षा लेता है।
कुछ समय बाद राजू को अहसास होता है कि वह पुष्पा से प्रेम करता है और बहुत जल्द ही वह इसका इज़हार भी उससे कर देता है। पुष्पा भी मुस्कराहट के साथ अपनी सहमति जताती है। कैप्टन प्रेमनाथ पुष्पा से शादी करने की इच्छा व्यक्त करता है मगर पुष्पा उसको सिर्फ अपना दोस्त ही समझती है। और पुष्पा के कहने पर कुछ समय के लिए शहर से दूर चला जाता है।
जब कुछ समय बाद प्रेमनाथ वापस आता है तो राजू को पुष्पा के साथ देखकर वह राजू को पहचान जाता है और उसको कहता है कि पिछली बार जब मिले थे तो उसने पियानो बजाते हुए राजू को बैंडमास्टर समझ लिया था। यह बात सुनकर मिस्टर मेहता राजू पर बहुत नाराज़ होते हैं। गुस्से में राजू घर छोड़ देता है और बॉम्बे जाने का फैसला लेता है इस वेड के साथ कि वह सफलता मिलते ही वापस पुष्पा के पास आ जायेगा।
जैसे ही राजू बॉम्बे पहुँचता है एक पर्यटन गाइड द्वारा लूट लिया जाता है। उसको सहारा मिलता है टिल्टिबाई के यहाँ पर , और उसके बाद अपने संगीत के हुनर से राजू बहुत जल्द ही सफलता की उचाईयों पर पहुँचता है। टिल्टिबाई मन ही मन राजू से प्रेम करती है और वह हर समय राजू की यादों से पुष्पा को निकलने की कोशिशें करती रहती है।
बहुत समय बीतने के बाद भी राजू के ना आने पर पुष्पा की माँ अपने भाई को बॉम्बे भेजती है राजू की खबर लेने के लिए , और वापस आकर बताता है कि राजू किसी टिल्टिबाई के साथ रह रहा है और वह खुश है। मगर इस बात को पुष्पा नहीं मानती और एक दिन वह बॉम्बे पहुँच जाती है। अपनी ाक़ों से टिल्टिबाई के साथ राजू को खुश देखकर वह वापस लोट आती है और प्रेमनाथ से विवाह करने का निर्णय लेती है।
राजू वापस शिमला पहुँचता है मगर पुष्पा के विवाह के दिन। राजू बहुत दुखी होता है पुष्पा की बहन उसको बताती है कि पुष्पा ने राजू को टिल्टिबाई के साथ बहुत खुश देखा और उसको लगा कि वह राजू को खो चुकी है। राजू शोहरत और पैसों से दूर हर समय शराब के नशे में रहने लगा।
और दूसरी तरफ पुष्पा भी अपने विवाह से खुश नहीं थी , हर समय उसको राजू की याद सताती थी मगर वह पूरी कोशिश कर रही थी अपने विवाह को निभाने की। मगर एक दिन राजू और पुष्पा की मुलाकात हो ही जाती है और वह बताता है कि उसका और टिल्टिबाई के बीच कोई सम्बन्ध हो ही नहीं सकता। पुष्पा कुछ भी कह पाती उतने में ही वहां पर प्रेमनाथ आ जाता है। उसको लगता है कि पुष्पा उसको धोखा दे रही है और वह पिस्टल निकलकर राजू को मारने की कोशिश करता है। मगर पुष्पा उसको सब कुछ बता देती है और वह पुष्पा के साथ अपने विवाह को समाप्त करके दोनों को खुश रहने का आशीर्वाद देकर वहां से चला जाता है।
Songs & Cast –
फिल्म में संगीत दिया है एस डी बर्मन ने और इन सुरीले गानों को मजरूह सुल्तानपुरी साहेब ने लिखा है, जैसे – ” याद आ गयी वो नशीली निगाहें “, “हमदम से गए , हमदम के लिए حماد گیا ، حماد گیا “, “चुपके से मिले प्यासे प्यासे چھپ چھپے پیاسے “, “दिल तो है दीवाना ना मानेगा बहाना دل پاگل ہے اور عذر نہیں دے گا “, “ऐ काश चलते मिलके ये तीन राही दिल के میری خواہش ہے کہ یہ تینوں مسافر دل سے ملیں “, और ” अरे हटो काहे को झूठी बनाओ बतियां ارے چلو ، جھوٹ بولیں” , इन गानो को गाया है हेमंत कुमार , मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी , गीता दत्त और आशा भोंसले ने।
फिल्म में देव आनंद ने राजकुमार मेहता उर्फ़ राजू को निभाया है और उनका प्यार पुष्पा बनी है नूतन , इसके अलावा बाकि के कलाकारों में कृष्ण धवन ( प्रेमनाथ ), के एन सिंह ( मिस्टर मेहता ) आदि अन्य ने फिल्म को एक अलग ही पहचान दी है अपने अभिनय से।
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